'गढ़चिरोली मॉडल' से मिलेगा छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को करारा जवाब! रणनीति में बदलाव की अब जरूरत

By फहीम ख़ान | Published: April 5, 2021 12:46 PM2021-04-05T12:46:37+5:302021-04-05T12:47:07+5:30

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले में अब तक 22 जवान शहीद हुए हैं और एक जवान अब भी लापता है. नक्सलियों से पार पाने के लिए क्या अब नई रणनीति के साथ काम करने की जरूरत है. पढ़िए...

Fahim Khan blog chhattisgarh maoist attack time to change policy to fight against naxal | 'गढ़चिरोली मॉडल' से मिलेगा छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को करारा जवाब! रणनीति में बदलाव की अब जरूरत

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुकाबले के लिए रणनीति में बदलाव जरूरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlights छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में अब 22 जवान शहीद, एक अभी भी लापता छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए अब सुरक्षाबलों के लिए रणनीति में बदलाव करना जरूरी महाराष्ट्र के गढ़चिरोली का उदाहरण सामने है, जहां अब पुलिस और प्रशासन नक्सलियों पर भारी पड़ते हैं

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले में अब तक 22 जवानों के शव बरामद हुए हैं और एक जवान अब भी लापता है. इससे पूर्व हाल में नक्सलियों के हमले में  जवान शहीद हो चुके है. छग में नक्सलियों के हमले और सुरक्षा बलों को नुकसान में इजाफा हो रहा है. लेकिन अगर ये जंग है तो फिर इस जंग को खत्म करना भी जरूरी हो गया है.

किसी भी जंग को खत्म करने के लिए आपको दुश्मन की रणनीति को समझना और इसे समझकर अपनी रणनीति बनाना बेहद जरूरी होता है. छग में सुरक्षा बलों अब यही करना होगा. वरना ये जंग जल्दी खत्म नहीं होगी.

जो गढ़चिरोली में संभव हुआ वह छत्तीसगढ़ में भी संभव है

महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले में अक्सर नक्सली उत्पात होता रहता था. लेकिन एक ऐसा दौर भी था जब गढ़चिरोली पुलिस ने हिंसा का चरम दौर भी देखा है. लगातार तीन ऐसी बड़ी वारदातों को नक्सलियों ने अंजाम दिया कि पुलिस को अपने 40 से ज्यादा जवानों को खोना पड़ गया.

ये समय बेहद कठीन था. लेकिन गढ़चिरोली पुलिस इसमें से न सिर्फ बाहर निकली बल्कि आज वह नक्सलियों पर भारी पड़ती भी नजर आ रही है. ऐसा क्या कर दिया इस पुलिस ने कि जो छग में सुरक्षा बलों को भी करना चाहिए?

असल में जब आप नक्सलियों की रणनीति पर नजर डालेंगे तो यह पाएंगे कि नक्सलियों के पास ऐसे लोग मौजूद है जो जंगल को अच्छी तरह से समझते है. ये वह लोग होते है जो स्थानीय इलाकों के ही होते है.

गढ़चिरोली पुलिस की बड़ी ताकत उसका सी 60 कमांडो दस्ता है. जिसमें ज्यादातर जवान लोकल है. ये वह जवान है जिनका बचपन इन्हीं जंगलों की खाक छानने में बीत गया. यही वजह है कि अक्सर वारदातों के बाद चकमा देकर भाग खड़े होने वाले नक्सली भी गढ़चिरोली पुलिस के सामने अब हथियार डालते नजर आ रहे है.

तेजी से नक्सलियों की नर्ई भर्ती की राह को भी यहां पर काट दिया गया है. डर के मारे नक्सली यहां आत्मसमर्पण करने लगे है. छग में भी सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ इसी तरह की रणनीति अपनानी होगी.

संख्या पर नजर न डाले, ये सायकोलॉजीकल वार है

अक्सर किसी भी घटना के बाद यह दावे होने लगते है कि घटना के समय सैकड़ो, दर्जनों नक्सली मौजूद थे. नक्सली हमेशा से ही सायकोलॉजीकल वार लड़ते आए है. बीजापुर की घटना के बाद भी कर्ई लोग ये कहते है कि उस समय 800 से ज्यादा नक्सली मौजूद थे.

कुछ ये कह रहे है कि 200 से ज्यादा थे. इसका कारण ये है कि नक्सली हमेशा घटना को अंजाम देने वाली अपनी मुख्य टीम के साथ ऐसे ग्रामीणों को भी लेकर चलती है जो दुपट्टा बांधे रहते है और उनकी हाथों में नकली बंदूके होती है.

इसका मुख्य उद्देश्य सिर्फ सुरक्षा बल या पुलिस पर सायकोलॉजीकल दबाव बनाना होता है. साथ ही जब मुख्य टीम वारदात को अंजाम दे देती है तो इसके बाद इन नकली नक्सलियों की आड में वह मुख्य टीम वहां से चकमा देकर फरार भी हो जाती है.

यदि नकली नक्सली मारे भी जाते है तो भी अगले दिन प्रेस नोट जारी कर नक्सली संगठन सुरक्षा बलों पर ग्रामीणों को मारने का आरोप लगा देगा. ये रणनीति समझना होगा.

नक्सली संसाधन और हथियारों का इस्तेमाल कम करते है

अब तक यह भी देखा गया है कि नक्सलियों ने जब भी किसी बड़ी वारदात को अंजाम दिया है या हमला किया है तो बहुत ज्यादा संख्ता में उसने हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया है.

इसकी बड़ी वजह यह भी है कि नक्सलियों की रणनीति यह होती है कि कम से कम संसाधन और हथियारों का इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा नुकसान किया जाए. लेकिन किसी भी घटना की योजना बनाते समय इतना ज्यादा सटिक होते है कि कामयाबी का दर बढ़ जाता है.

इस मुकाबले में सुरक्षा दल अक्सर ज्यादा हथियार, असला होकर भी मात खा जाता है. क्योंकि नक्सलियों के गुरिल्ला वारफेयर को समझना बेहद जरूरी हो गया है. आप सिर्फ ज्यादा संख्या में या अत्याधुनिक शस्त्रों से जंगल में नक्सलियों को हराने के बारे में नहीं सोच सकते है. आपको कारगर रणनीति बनानी होगी.

हो सकता है कि सुरक्षा बलों की स्पेशल छोटी टीमें ही भविष्य में सही रणनीति पर काम करने पर नक्सलियों पर भारी पड़ने लग जाए. लेकिन इसके लिए सोच समझकर रणनीति बनानी पड़ेगी.

चर्चा में युवा नक्सली नेता हिडमा

बिजापुर के इस हमले के पीछे टॉप नक्सल कमांडर हिडमा का नाम सामने आ रहा है. हिडमा की उम्र करीब 40 साल है. वो सुकमा जिले के पुवर्ती गांव का रहने वाला है. उसने 90 के दशक में नक्सली हिंसा का रास्ता चुना और तबसे कई निर्दोष लोगों की जान ले चुका है.

नक्सल कमांडर माडवी हिडमा और भी कई नामों से जाना जाता है. मसलन, संतोष उर्फ इंदमुल उर्फ पोडियाम भीमा. बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ पुलिस समेत कई नक्सल प्रभावित राज्यों की पुलिस इस मोस्टवांटेड नक्सली की तलाश में है.

वह माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) बटालियन-1 का प्रमुख है और ऐसे जानलेवा हमले करता रहता है. वह माओवादियों की दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सदस्य है. सबसे खास बात यह है कि वह सीपीआई (माओवादी) की 21 सदस्यीय सेंट्रल कमेटी का युवा सदस्य है.

उसकी हाल की कोई तस्वीर भी सुरक्षा बलों के पास उपलब्ध नहीं है. उसके सिर पर सुरक्षा बलों ने 40 लाख का इनाम रखा हुआ है. हिडमा अपने पास एके-47 जैसे खतरनाक हथियार रखता हैं.

टीसीओसी में ही अंजाम देते है बड़ी वारदातों को

जनवरी से जून के महीने के बीच में नक्सली संगठन अक्सर टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) चलाते हैं. इस दौरान सुरक्षाबलों को खतरनाक हमलों के जरिए निशाना बनाते हैं. जो लोग भी जंगल के बारे में जानते है, समझ रखते है वह यह भलीभांति जानते होंगे कि इन महीनों के दौरान पेड़ों से पत्ते गिर चुके होते हैं.

ऐसे में सुरक्षाबलों की गतिविधियां जंगल में से नक्सलियों को साफ नजर आती हैं. दूर बैठकर ही नक्सली सुरक्षाबलों की गतिविधियां भांप लेते हैं और फिर समय मिलते ही अपने मंसूबों को पूरा करते है.

अगर पिछली कुछ बड़ी घटनाओं को देखे जैसे बीते साल मार्च में सुकमा में नक्सलियों ने 17 लोगों की जान ली थी. अप्रैल 2019 में बीजेपी विधायक भीमा माडवी, उनके ड्राइवर और तीन सुरक्षाकर्मियों की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. साल 2010 के अप्रैल महीने में तडमेटला इलाके में 76 जवानों की नक्सलियों ने जान ले ली थी.

Web Title: Fahim Khan blog chhattisgarh maoist attack time to change policy to fight against naxal

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