संपादकीयः आखिर कब खत्म होगा ऊंच-नीच का भेदभाव

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: August 17, 2022 15:24 IST2022-08-17T15:22:57+5:302022-08-17T15:24:23+5:30

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में वर्ष 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 

Editorial When will the discrimination of high and low end inequality | संपादकीयः आखिर कब खत्म होगा ऊंच-नीच का भेदभाव

संपादकीयः आखिर कब खत्म होगा ऊंच-नीच का भेदभाव

ऊंची जाति के अध्यापक के मटके से महज पानी पी लेने के कारण एक दलित बच्चे को इतना पीटना कि उसकी मौत हो जाए, स्तब्ध कर देता है। यह घटना दिखाती है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी, समानता के तमाम नारों-दावों के बावजूद, हम अभी तक सामाजिक विषमता को दूर नहीं कर पाए हैं। बताया जाता है कि राजस्थान के जालौर में एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले नौ वर्षीय छात्र इंद्र मेघवाल का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने अपने स्कूल के एक सवर्ण अध्यापक के लिए अलग से रखे हुए मटके से पानी निकाल कर पी लिया था। उस मासूम बच्चे को यह पता भी नहीं रहा होगा कि वह उस मटके से पानी पीकर कोई ‘अपराध’ कर रहा है, जिसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी होगी। 

बताया जाता है कि आरोपी अध्यापक छैल सिंह ने इंद्र को इतना पीटा कि 23 दिन तक अस्पतालों में रखे जाने के बाद 13 अगस्त को उसकी मौत हो गई। किसी भी संवेदनशील मनुष्य की यह सोच कर ही रूह कांप सकती है कि कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है कि किसी मासूम बच्चे को इतनी बुरी तरह से पीटे कि उसकी मौत ही हो जाए! हालांकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना की निंदा करते हुए मामले की त्वरित जांच कराने और मृतक के परिजनों को आर्थिक मदद उपलब्ध कराने का आदेश दिया है, लेकिन यह घटना दिखाती है कि ऊंच-नीच का भेदभाव अभी भी कितनी गहराई तक हमारे समाज में जड़ें जमाए हुए है। सरकार द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार वर्ष 2018-2020 के दौरान देश में दलितों पर अत्याचार के 129000 मामले दर्ज हुए थे। इसमें सर्वाधिक मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए और इसके बाद बिहार तथा मध्यप्रदेश का नंबर था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जातियों के साथ अपराध के मामलों में वर्ष 2019 में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 

साल 2018 में जहां 42793 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2019 में 45935 मामले सामने आए। यह भी हकीकत है कि उत्पीड़न के सारे मामले दर्ज नहीं हो पाते हैं, क्योंकि उत्पीड़न करने वाले के रौबदाब और धमकियों के कारण सभी उत्पीड़ित थाने तक जाने का साहस नहीं जुटा पाते और कई बार तो शिकायत दर्ज भी नहीं की जाती, मामले को दबा दिया जाता है। बहरहाल, दर्ज मामलों की संख्या भी कम नहीं है और विडंबना यह है कि यह हमारी राष्ट्रीय राजनीति की बहस या चर्चा का विषय भी नहीं बन पाता। यह सही है कि ऐसे अपराधों के खिलाफ कानून में दंड के प्रावधान हैं, लेकिन इसके बावजूद अगर इन पर रोक नहीं लग पा रही है तो इससे पता चलता है कि इस संबंध में जनजागृति की जरूरत है और सभी दलों के नेताओं को भी ऐसे अपराधों के खिलाफ ठोस रवैया अपनाते हुए मजबूती के साथ सामने आना होगा।

Web Title: Editorial When will the discrimination of high and low end inequality

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे