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संपादकीय: पहले अपनी नीयत तो साफ रखें इमरान 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 28, 2019 07:20 IST

सन् 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तब पड़ोसियों खासकर पाकिस्तान से संबंधों को नया आयाम देने के लिए उन्होंने पड़ोसी देशों के शासन प्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के प्रति भारत की जो सख्त नीति थी, वह उनके दूसरे कार्य काल में भी जारी रहेगी. रविवार को जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हमारे प्रधानमंत्री को फोन कर दोनों देशों के बीच  शांति वार्ता फिर से शुरू करने का अनुरोध किया तो मोदी ने भारत के रवैये को स्पष्ट कर दिया. 

सन् 2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तब पड़ोसियों खासकर पाकिस्तान से संबंधों को नया आयाम देने के लिए उन्होंने पड़ोसी देशों के शासन प्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था. यह पहल उन्होंेने तब की जब पाकिस्तान के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे. शांति तथा मैत्री के लिए भारत के तमाम प्रयासों के बावजूद पाकिस्तान सीमा पर लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन करने के साथ-साथ कश्मीर में आतंकवादियों की घुसपैठ करवा रहा था. 

मोदी की सद्भावना का पाकिस्तान ने सकारात्मक उत्तर नहीं दिया. मोदी पाकिस्तान भी गए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के परिवार में विवाह समारोह में भी शामिल हुए. दुर्भाग्य से पीठ में छुरा घोंपने की पाकिस्तान की आदत नहीं गई. पाकिस्तान ने उड़ी में कायराना हमला किया. भारत ने सजिर्कल स्ट्राइक से करारा जवाब तो दिया मगर वह हमेशा प्रयासरत रहा कि पाकिस्तान की सेना तथा हुक्मरानों को सद्बुद्धि आए और वे भारत विरोधी हरकतों को बंद कर दें. क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान ने जब पाकिस्तान की कमान संभाली, तब उनका रवैया भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही रहा. 

एक ओर तो वह भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का राग आलापते रहे तो दूसरी ओर कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को आजादी का योद्धा बताते रहे. हद तो तब हो गई जब आतंकवादियों ने  कश्मीर के पुलवामा में इस वर्ष फरवरी में हमारे 40 जवानों की जान ले ली. इस शहादत को मोदी सरकार ने व्यर्थ जाने नहीं दिया और पाकिस्तान में घुसकर एयर स्ट्राइक की तथा आतंकवादियों के अड्डे ध्वस्त कर दिए.

 ऐसे में जब मोदी को फोन कर इमरान बधाई देने के साथ-साथ बातचीत की बात करते हैं तो उस पर विश्वास कैसे किया जा सकता है. मोदी जानते हैं कि इमरान खान अपने देश की सेना तथा खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथों की कठपुतली हैं. इसके अलावा भारत विरोध की राजनीति तथा कश्मीर को हासिल करने के दिवास्वप्न के बिना उनका तथा उनकी पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व टिका नहीं रह सकता. 

वह अपनी राजनीति और कुर्सी को बचाए रखने के लिए कश्मीर के नाम पर आतंक का समर्थन करते रहेंगे और करेंगे वही जो पाकिस्तान की सेना कहेगी. पाकिस्तान आतंकवाद को पालने-पोसने की बड़ी कीमत अदा कर रहा है. उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है और इमरान खान दुनियाभर में मदद के लिए झोली फैला रहे हैं. उन्हें यह समझना होगा कि भारत ही पाकिस्तान का सबसे बड़ा हितैषी है. भारत से अगर संबंध दोस्ताना बनाने हैं तो उन्हें अपनी नीयत भी साफ रखनी होगी. 

टॅग्स :नरेंद्र मोदीइमरान खानपाकिस्तान
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