संपादकीय: सत्ता के लिए शुचिता के अपने सिद्धांत को भूली भाजपा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 21, 2019 07:26 IST2019-04-21T07:26:24+5:302019-04-21T07:26:24+5:30
लोकसभा चुनाव 2019: भाजपा ने भोपाल लोकसभा क्षेत्र से साध्वी प्रज्ञा को अचानक अपना उम्मीदवार बना दिया. इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी राजनीतिक दल ने आतंकवाद की किसी घटना के आरोपी को टिकट दिया हो! कारण सीधा सा है. भाजपा चाहती है कि भोपाल में इतना सांप्रदायिक जहर घुल जाए कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग खेमे में पहुंच जाएं.

मध्य प्रदेश की जनता ने भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंका है इसलिए भाजपा डरी हुई है कि 30 साल से उसके कब्जे वाला भोपाल लोकसभा क्षेत्र हाथ से न निकल जाए.
भारतीय जनता पार्टी ने जब अपना वजूद बड़ा करना शुरू किया था तो उसने जनता से कुछ वादे किए थे. इनमें सबसे बड़ा वादा था, राजनीति में शुचिता, लेकिन आज लोग महसूस कर रहे हैं कि शुचिता नाम की चीज भाजपा के भीतर ही नहीं बची है. सत्ता का ऐसा चस्का लगा है कि अब चाहे जो भी करना पड़े, सत्ता हासिल करना है.
ऐसी ही सोच का नतीजा है कि भाजपा ने भोपाल लोकसभा क्षेत्र से साध्वी प्रज्ञा को अचानक अपना उम्मीदवार बना दिया. इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी राजनीतिक दल ने आतंकवाद की किसी घटना के आरोपी को टिकट दिया हो! कारण सीधा सा है. भाजपा चाहती है कि भोपाल में इतना सांप्रदायिक जहर घुल जाए कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग खेमे में पहुंच जाएं.
मध्य प्रदेश की जनता ने भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंका है इसलिए भाजपा डरी हुई है कि 30 साल से उसके कब्जे वाला भोपाल लोकसभा क्षेत्र हाथ से न निकल जाए. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें साध्वी प्रज्ञा ने शुरू भी कर दी हैं. इसी बीच उन्होंने मुंबई हमले में शहीद हुए जांबाज पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे के खिलाफ ऐसी अपमानजनक टिप्पणी कर दी कि पासा उनके खिलाफ पलटता नजर आ रहा है.
उन्होंने कहा कि करकरे को सर्वनाश का श्रप उन्होंने दिया था. हालांकि अब अपना बयान उन्होंने वापस ले लिया है लेकिन इस देश का आम आदमी शहीद के अपमान से गुस्से में है. लोग पूछ रहे हैं कि भाजपा ने ऐसा उम्मीदवार ही क्यों उतारा जिस पर बम ब्लास्ट का आरोप है. भाजपा ने साध्वी के बयान से खुद को अलग कर लिया है. लेकिन यह मुंह छुपाने जैसी बात हो गई. भाजपा इस देश की एक बड़ी पार्टी है, इसलिए उसे अपने विचार भी बड़े रखने चाहिए.
छोटी सोच कद को छोटा कर देती है, यह बात भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को हमेशा याद रखनी चाहिए. यह कहने में हर्ज नहीं है कि भाजपा के बड़े-बड़े नेताओं की जुबान बेलगाम हो गई है. भाजपा के लिए यह चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि इस देश ने उससे कुछ अलग उम्मीदें की थीं और पूरे बहुमत से सत्ता सौंपी थी. न केवल केंद्र में बल्कि कई राज्यों में. यदि भाजपा शुचिता के अपने वादे से मुकर गई तो इस देश का मतदाता उसे माफ नहीं करेगा.