डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: धरती को बचाने के लिए हम सबको लेना होगा संकल्प

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 22, 2020 07:06 AM2020-04-22T07:06:38+5:302020-04-22T07:06:38+5:30

इस पृथ्वी ने उपहार में हमें नदियां, समुद्र, वन, पर्वत, वायु, पशु-पक्षी, मिट्टी, औषधियां, वनस्पति, बादल सुखी और निरोगी रहने के लिए प्रदान किए हैं. प्रकृति द्वारा प्रदत्त सभी उपहारों से पूर्व में मनुष्य की आत्मीयता थी किंतु सभ्यता के बढ़ते चरणों ने मनुष्य को प्रकृति की अवहेलना करना सिखा दिया.

Dr. Vishala Sharma Blog: Earth Day We all have to take a resolution to save the earth | डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: धरती को बचाने के लिए हम सबको लेना होगा संकल्प

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (Image Source: Pixabay)

पर्यावरण संकट को लेकर पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है. वैश्विक स्तर पर इस मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील देश मिलकर चिंतन-मनन कर रहे हैं. इसी श्रृंखला में ‘पृथ्वी दिवस’ राष्ट्रीय सीमाओं से परे भौगोलिक सीमाओं के साथ विश्व को एक सूत्न में जोड़ता है. यह मनुष्य के मन में ब्रम्हांड में प्रकृति के सबसे शक्तिशाली होने के भाव को जागृत करता है. हम जानते हैं कि इस ब्रह्मांड में प्रकृति सबसे शक्तिशाली है क्योंकि वही सृजन और विकास करती है और वही ह्रास तथा नाश करती है.

इस पृथ्वी ने उपहार में हमें नदियां, समुद्र, वन, पर्वत, वायु, पशु-पक्षी, मिट्टी, औषधियां, वनस्पति, बादल सुखी और निरोगी रहने के लिए प्रदान किए हैं. प्रकृति द्वारा प्रदत्त सभी उपहारों से पूर्व में मनुष्य की आत्मीयता थी किंतु सभ्यता के बढ़ते चरणों ने मनुष्य को प्रकृति की अवहेलना करना सिखा दिया.

प्रकृति जीवन में समता, मैत्नी भाव, अहिंसा, दया आदि गुणों को जीवन के साथ समाविष्ट करने की प्रेरणा देती थी वहीं मनुष्य की विकृति ने वैषम्य, विरोध, बैर, हिंसा भाव, क्रूरता को अपनाकर प्रकृति का उल्लंघन किया है. पृथ्वी दिवस पर्यावरण संरक्षण के समर्थन को प्रदर्शित करने हेतु संकल्प का दिन है. पृथ्वी की सुंदरता को बनाए रखने का संकल्प कर मनुष्य पर्यावरण की रक्षा कर सकता है.

मानव जीवन की सुरक्षा हेतु भी पृथ्वी को संरक्षित करना आवश्यक है. हम विकास के नाम पर विनाश के टापुओं को खड़ा कर रहे हैं. कहीं ऐसा न हो कि जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियां फिर सत्य हो उठें- ‘हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छांह, एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह’.

यद्यपि 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर्यावरण संरक्षण के लिए सन् 1970 से मनाया जा रहा है लेकिन आज के समय में यह अनेक प्रश्नों को लेकर समाज के समक्ष उपस्थित है. आज विश्व अनेक प्रकार के पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है.

हिमसागर पिघल रहे हैं जिससे वहां पर रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है तो दूसरी तरफ हिम के पिघलने के कारण कितने ही शहरों का अस्तित्व खतरे में आ गया है.  

प्रश्न उठता है कि ये हिम क्यों पिघल रहे हैं? स्पष्ट है कि आधुनिक समय की प्रतिस्पर्धा ने हमें केवल प्रकृति का दोहन करना सिखाया है. हम लगातार वृक्षों को काटते जा रहे हैं जिसने पारिस्थितिकी तंत्न में असंतुलन उत्पन्न कर दिया है. पहाड़ के पहाड़ वृक्षविहीन हो गए हैं. इसने एक तरफ तो समय आधारित वर्षा के चक्र  को प्रभावित किया तो दूसरी तरफ हवा को भी दूषित किया है.  

आज के समय का प्रदूषण औद्योगिकता की ही देन है. उद्योगों के लिए जंगल के जंगल काट दिए गए जिससे उस जंगल में रहने वाले जीव-जंतु भी प्रभावित हुए. विवश होकर उन जीव-जंतुओं को अपने प्राकृतिक परिवेश से बाहर आकर रहने के लिए बाध्य होना पड़ा. इस प्रकार जंगल का पारिस्थितिकी तंत्न प्रभावित हुआ. हमारे अनावश्यक दखल ने मनुष्य और जीव-जंतु के प्राकृतिक संबंध और उनकी दूरी को कृत्रिमता में बदलने का कार्य किया.

विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या ने प्रकृति के दोहन पर अधिकाधिक बल दिया. जल, जंगल और जमीन इस बढ़ती हुई जनसंख्या के भार को ढोने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं क्योंकि प्रकृति के प्रति हमने अपने उत्तरदायित्व को समझा ही नहीं.  
इस प्रकृति में जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदी-तालाब, पशु-पक्षी के साथ-साथ ही मानव का भी अस्तित्व है. हमने जबसे केवल मानव के अस्तित्व को प्राथमिकता दी है, प्रकृति की विभीषिका हमारे सामने किसी न किसी रूप में आ जाती है.

अत: आवश्यक है कि प्रकृति के सान्निध्य एवं संरक्षण में ही हम इस सभ्यता को आगे ले जाने का कार्य करें अन्यथा प्रकृति के उपहारों का दुरुपयोग हमें विनाश की तरफ ही ले जाएगा.

प्रकृति की इसी विराटता को उद्धत करते हुए जयशंकर प्रसाद ने  लिखा है- ‘प्रकृति रही दुर्जेय, पराजित हम सब थे भूले मद में/भोले थे, हां तिरते केवल सब, विलासिता के नद में’.

Web Title: Dr. Vishala Sharma Blog: Earth Day We all have to take a resolution to save the earth

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