डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: धर्मनिरपेक्षता पर मंडराता खतरा

By डॉ एसएस मंठा | Published: December 30, 2019 08:29 AM2019-12-30T08:29:52+5:302019-12-30T08:29:52+5:30

जैसा कि सबको मालूम है, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक आधार पर पीड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मावलंबियों को भारत की नागरिकता देने वाला कानून है. यह एक तथ्य है कि सीएए मुस्लिम विरोधी कानून नहीं है.

Dr. S.S. Mantha's blog: The danger looming over secularism | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: धर्मनिरपेक्षता पर मंडराता खतरा

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: धर्मनिरपेक्षता पर मंडराता खतरा

Highlightsइसके बावजूद यदि आंदोलन हो रहा है तो क्या कारण हो सकता है?शरणार्थियों की समस्या से पहले से ही परेशान देश में जब और भी नए लोगों को आने की अनुमति मिलेगी तो क्या यहां के लोग प्रभावित नहीं होंगे? 

विश्वविद्यालय के छात्रों और आम आदमी का सड़कों पर निकल कर आंदोलन करना किसी भी देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए. खासकर जब वे किसी ऐसे कारण से प्रेरित हों जिसके बारे में उन्हें लगता हो कि यह उनके भविष्य को प्रभावित करेगा. यह शिक्षा से संबद्ध नहीं होने पर भी अगर छात्र सड़क पर उतर रहे हैं तो यह खतरे की घंटी है. निश्चित रूप से हिंसा और बर्बरता का किसी भी आंदोलन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए और यह जहां भी हो उसकी निंदा की जानी चाहिए.

जैसा कि सबको मालूम है, सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक आधार पर पीड़ित हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मावलंबियों को भारत की नागरिकता देने वाला कानून है. यह एक तथ्य है कि सीएए मुस्लिम विरोधी कानून नहीं है.

इसके बावजूद यदि आंदोलन हो रहा है तो क्या कारण हो सकता है? कहने को तो कहा जा रहा है कि सीएए से किसी भी भारतीय को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, लेकिन शरणार्थियों की समस्या से पहले से ही परेशान देश में जब और भी नए लोगों को आने की अनुमति मिलेगी तो क्या यहां के लोग प्रभावित नहीं होंगे? 

पूरे पूवरेत्तर, विशेषकर असम, त्रिपुरा के साथ प. बंगाल में इसे लेकर असंतोष है. घुसपैठियों की पहचान के लिए ही असम में एनआरसी की गई. अब सीएए से उनका एक बड़ा हिस्सा क्या वैधता नहीं पा जाएगा? उत्पीड़न कथित हो या वास्तविक, हर देश में धार्मिक, नस्लीय या राजनीतिक आधार पर कम-ज्यादा होता है.

भारतीय कानून के तहत कई समूहों जैसे तिब्बतियों और श्रीलंकाई तमिलों को आमतौर पर वैध शरणार्थी के रूप में स्वीकार किया जाता है. अमेरिका में भी शरणार्थियों के बारे में कानून हैं. वास्तव में प्रत्येक देश में वास्तविक शरणार्थियों और शरण पाने के इच्छुकों के लिए कानून होते हैं. फिर सीएए की क्या जरूरत थी?

पूवरेत्तर के लोग चिंतित हैं कि यह उनकी जनसांख्यिकी को प्रभावित करेगा और पहले से ही तनावग्रस्त क्षेत्र के संसाधनों पर और बोझ डालेगा. इसके अलावा यह भी सवाल है कि क्या इससे भारतीय संविधान का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बरकरार रह पाएगा?

Web Title: Dr. S.S. Mantha's blog: The danger looming over secularism

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