डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: निंदारस में लीन होती राजनीति
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: May 20, 2019 06:18 IST2019-05-20T06:18:01+5:302019-05-20T06:18:01+5:30
चुनावों ने अब मानो लड़ाई का रूप ले लिया है. एक-दूसरे की कमियां खोजने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है. बदनामी करने वाली प्रचार मुहिम का फायदा मिलने से राजनीतिक दल इसके लिए करोड़ों रु. खर्च करने को तैयार रहते हैं.

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डॉ. एस.एस. मंठा
पिछले कुछ महीनों से राजनीति से जुड़े लोग एक-दूसरे की निंदा और गाली-गलौज में लगे दिखाई दे रहे हैं. उनके भाषणों में अपशब्दों की भरमार है. इसके पहले देश की राजनीति में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ था. इसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य की राजनीति कैसी होगी. व्यक्तिगत आरोप लगाने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है. पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में फ्रांस के भविष्यवक्ता नास्रेदमस की भविष्यवाणी की तरह, 1946 में पुलित्जर पुरस्कार हासिल करने वाले उपन्यास ‘ऑल द किंग्स मेन’ के लेखक रॉबर्ट पेन ने भी जैसा वर्णन किया था कि भविष्य की राजनीति किस तरह निंदात्मक होने वाली है, आज वैसा ही देखने को मिल रहा है.
वर्तमान दौर में फर्जी खबरें बड़ी संख्या में देखने को मिल रही हैं. नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर आपराधिक स्वरूप के आरोप लगाए जा रहे हैं. हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे आरोप लगाने वालों पर अदालत में मुकदमा क्यों नहीं चलाया जाता! कोई भी आरोप लगाते समय उसके सबूत उपलब्ध होने चाहिए. लेकिन देखने में आ रहा है कि बिना सबूतों के लगाए जा रहे आरोपों की चुनाव आयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनदेखी कर रहा है.
ऐसा नहीं है कि चुनावों में एक-दूसरे की निंदा पहले नहीं की जाती थी, लेकिन तकनीकी विकास के चलते आज ऐसी निंदा को सर्वत्र फैलने में देर नहीं लगती. चुनावों ने अब मानो लड़ाई का रूप ले लिया है. एक-दूसरे की कमियां खोजने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है. बदनामी करने वाली प्रचार मुहिम का फायदा मिलने से राजनीतिक दल इसके लिए करोड़ों रु. खर्च करने को तैयार रहते हैं.
बंगाल में चुनावी युद्ध के घमासान के बीच एक वरिष्ठ राजनेता ने कहा था, ‘‘तानाशाही में हास्य-व्यंग्य का कोई स्थान नहीं है, तानाशाहों को पसंद नहीं है कि उनकी ओर देखकर कोई हंसे.’’ अगर राजनेता अपनी इस स्थिति को लेकर आत्मनिरीक्षण करें तो सुधार की गुंजाइश बन सकती है. लेकिन दुर्भाग्य से देश में राजनीतिक गिरावट इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब उसे पहले के सामान्य स्तर पर वापस लाना संभव नहीं दिखाई देता.