डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: मतदाताओं को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देना ठीक नहीं

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 22, 2019 03:09 PM2019-04-22T15:09:06+5:302019-04-22T15:09:06+5:30

लोकसभा चुनाव 2019: हमारा लोकतंत्र अब तक सबसे अच्छी संकल्पना साबित हुआ है, जिसके माध्यम से रोजगार निर्माण और समृद्धि को हासिल किया जा सकता है. नेताओं को समझना चाहिए कि इसमें लोगों को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देने की जरूरत नहीं है.

Dr. S. S. Blog of Mantha: It is not okay to give the temptation of free items to voters | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: मतदाताओं को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देना ठीक नहीं

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: मतदाताओं को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देना ठीक नहीं

Highlightsडिजिटल हथियार का इस्तेमाल करके आज लोकतांत्रिक सत्ता को तानाशाही में परिवर्तित करने की कोशिशें की जा रही हैं. इंटरनेट का व्यवसायीकरण बढ़ने के साथ यह उम्मीद की गई थी कि इससे लोकतंत्र के वैश्विक प्रसार में तेजी आएगी.

ह मारे लोकतंत्र का भविष्य क्या है? क्या लोगों का प्रतिनिधित्व कर सत्ता में आने के लिए जनप्रतिनिधि लोगों को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देते रहेंगे? सरकार के पास लोगों का पैसा होता है और वह लोगों के पास वापस जाना ही चाहिए. लेकिन क्या उन्हें उसे अजिर्त नहीं करना चाहिए? कुछ लोग कमाएं और कुछ लोग उसे मुफ्त में खर्च करें, ऐसा कब तक चलता रहेगा? वस्तुओं का मुफ्त में बांटा जाना क्या हमारी अर्थव्यवस्था वहन कर सकती है? हकीकत यह है कि मुफ्त जैसी कोई चीज नहीं होती क्योंकि किसी न किसी को उसका मूल्य चुकाना ही होता है.

 सरकार अगर किसी को कुछ मुफ्त में देती भी है तो किसी न किसी से उसे मूल्य चुकाकर खरीदना ही पड़ता है. और कभी-कभी तो जिसे मुफ्त वस्तु प्रदान की जाती है उससे किसी न किसी बहाने पैसा भी वसूल लिया जाता है. इसे हाथ की सफाई कहेंगे या राजनीतिक चालाकी? चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दल ऐसी चालाकी दिखाने की कोशिश करते हैं, लेकिन कोई भी इस तरफ ध्यान नहीं देता कि इससे हमारा लोकतंत्र कमजोर होता है.

मुफ्त की वस्तुएं कब बांटनी चाहिए? जब वे प्रचुर मात्र में उपलब्ध हों. लेकिन सरकार के पास क्या वस्तुएं प्रचुर मात्र में हैं?  हकीकत तो यह है कि मुफ्त की वस्तुओं से समाज में आर्थिक विसंगति पैदा होती है. हमारे राजनेता वोट के भूखे होते हैं, और वोट पाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं. सत्ता हासिल करने का उन्हें यह आसान तरीका लगता है. डिजिटल क्रांति की वजह से समाज में बुनियादी परिवर्तन हो रहे हैं. इससे अनेक परंपरागत व्यवसाय बंद पड़ गए हैं. राजनीति भी इसकी वजह से  प्रभावित होगी और नई संकल्पनाओं व संस्थाओं का उदय होगा. क्या कोई नेता समाज के इस विभाजन को मिटा पाने में समर्थ है? आज की राजनीति और समाज के बारे में क्या लोगों के मन में आक्रोश नहीं है? कुछ लोग यदि नेशनल रजिस्टर को लेकर आक्रोशित हैं तो कुछ लोग धर्म को राजनीति का केंद्र बनाए जाने से क्षुब्ध हैं. चरम ध्रुवीकरण के चलते सभी लोकतांत्रिक देशों में प्रचार अभियान कटु होता जा रहा है. नेताओं की किसी भी कीमत पर सत्ता हासिल करने की लालसा के चलते लोकतंत्र की जड़ों पर ही प्रहार किया जा रहा है. डिजिटल क्रांति को इस गिरावट का हथियार बनाया जा रहा है. इसके लिए फेक न्यूज, फेक अकाउंट, द्वेषपूर्ण भाषण, बदनामीकारक प्रचार मुहिम चलाकर लोगों को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है. क्या ऐसे विषैले वातावरण में लोकतंत्र सांसें ले पाएगा?

डिजिटल हथियार का इस्तेमाल करके आज लोकतांत्रिक सत्ता को तानाशाही में परिवर्तित करने की कोशिशें की जा रही हैं. अब नागरिकों या विरोधियों की निजता नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. कीमत चुकाकर कोई भी उनकी डाटा के रूप में मौजूद जानकारी हासिल कर सकता है. इंटरनेट का व्यवसायीकरण बढ़ने के साथ यह उम्मीद की गई थी कि इससे लोकतंत्र के वैश्विक प्रसार में तेजी आएगी. माना गया था कि इंटरनेट से लोग एक-दूसरे से मुक्त रूप से संपर्क कर सकेंगे, विचारों का आदान-प्रदान होगा और उदारमतवादी विचारों का प्रसार होगा. लेकिन इंटरनेट और सोशल मीडिया नेताओं के हाथ में ऐसा शक्तिशाली उपकरण  है जो उनकी निरंकुशता में सहायक बन रहा है. इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से वे नागरिकों पर प्रभाव डालकर लोकतांत्रिक व्यवहार को बदल रहे हैं. 

हमारा लोकतंत्र अब तक सबसे अच्छी संकल्पना साबित हुआ है, जिसके माध्यम से रोजगार निर्माण और समृद्धि को हासिल किया जा सकता है. नेताओं को समझना चाहिए कि इसमें लोगों को मुफ्त की वस्तुओं का प्रलोभन देने की जरूरत नहीं है.

Web Title: Dr. S. S. Blog of Mantha: It is not okay to give the temptation of free items to voters