‘स्टोर रूम’ में ‘स्टोर्ड’ नगदी पर उठते सवाल

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 24, 2025 09:00 IST2025-03-24T08:59:26+5:302025-03-24T09:00:24+5:30

उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय को प्रारंभिक पूछताछ करने को कहा था, जिसके बाद न्यायमूर्ति उपाध्याय ने मामले में एक ‘गहरी जांच’ की जरूरत को दर्शाया है

Delhi High Court Judge Yashwant Varma cash news Questions arise on the cash stored in the store room | ‘स्टोर रूम’ में ‘स्टोर्ड’ नगदी पर उठते सवाल

‘स्टोर रूम’ में ‘स्टोर्ड’ नगदी पर उठते सवाल

अनेक उद्यमियों, व्यापारियों, अधिकारियों और कर्मचारियों के बाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के घर कथित रूप से मिली नगदी सवालों के घेरे में है. वह कितनी थी, कहां से आई, किसने रखी और क्यों रखी गई, जैसे प्रश्नों के उत्तर फिलहाल किसी के पास नहीं हैं, लेकिन न्याय व्यवस्था में नगदी अनेक चिंताओं को जन्म दे रही है. घटनाक्रम कहता है कि दिल्ली न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के निवास स्थान पर उनकी अनुपस्थिति में आग लगी, जिसके बाद पुलिस और अग्निशमन दल के पहुंचने पर उनके ‘स्टोर रूम’ में कुछ जले हुए नोट मिले.

नोटों की संख्या भी अधिक थी. पुलिसकर्मियों ने घटना की जानकारी उच्च अधिकारियों तक पहुंचा दी और मामला उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना तक पहुंचा. उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया और कॉलेजियम की बैठक बुलाई, जिसने तुरंत स्थानांतरण करने का फैसला लेते हुए न्यायमूर्ति वर्मा काे उनके मूल इलाहाबाद उच्च न्यायालय भेज दिया है. उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय को प्रारंभिक पूछताछ करने को कहा था, जिसके बाद न्यायमूर्ति उपाध्याय ने मामले में एक ‘गहरी जांच’ की जरूरत को दर्शाया है.

हालांकि न्यायमूर्ति वर्मा ने दावा किया है कि स्टोर रूम में उन्होंने या उनके परिवार वालों ने कभी नगद नहीं रखा. यह उनके खिलाफ साजिश रची गई है. न्यायमूर्ति वर्मा अक्तूबर 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय आए थे. अब उनके इस्तीफे की मांग उठ रही है. इस बीच, न्यायमूर्ति वर्मा को न्यायिक कार्य दिए जाने पर भी रोक लगा दी गई है. अब समूचे प्रकरण पर जिस प्रकार कार्रवाई की जा रही है, वह कहीं न कहीं मामले की गंभीरता की ओर संकेत दे रही है. दूसरी ओर जांच में कोई कमी या कमजोरी छोड़ने की कोशिश नहीं की जा रही है.

यह बात सही है कि न्यायिक व्यवस्था में लाखों में एक ऐसे मामले आते हैं, किंतु छोटा-सा दीमक भी बड़ी से बड़ी वस्तु को ढहा देता है. इसलिए यह एक मामला भी स्पष्ट और पारदर्शिता के साथ सामने आना चाहिए. देश में अन्याय के खिलाफ आशा की अंतिम किरण न्यायालय से ही निकलती दिखाई देती है. इसलिए हर व्यक्ति न्याय पाने की अपेक्षा से विश्वास के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाता है.

किंतु ऐसे मामले सामने आने के बाद न्याय व्यवस्था भी सवालों के घेरे में आने लगती है, जो गंभीर चिंता का विषय है. विशिष्ट सुरक्षा में रहने वाले न्यायाधीशों के घर पर इतनी आसानी से धन का पहुंचना और उसके बाद आग लगना साधारणत: समझ में आने वाली घटना नहीं है. यदि इसमें साजिश है तो वह भी बड़ी है.

उससे परदा उठना चाहिए. उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश ने जांच समिति का भी गठन किया है, जिसकी रिपोर्ट आने के बाद कुछ बातें साफ होंगी. किंतु कानून के रक्षक के घर बिना सुरक्षा नगद रकम पहुंचना और अचानक आग से जल जाना न्याय व्यवस्था पर कुछ छींटे तो हैं ही, यद्यपि उनके असली रंग-रूप की पहचान जांच के बाद ही सामने आएगी.

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