National Education Policy: पीएम मोदी की गांधीवादी शिक्षा नीति का विपक्ष क्यों कर रहा विरोध?
By आलोक मेहता | Updated: April 22, 2025 05:14 IST2025-04-22T05:11:34+5:302025-04-22T05:14:29+5:30
महात्मा गांधी ने विखंडित पड़े संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधने के लिए, उसे संगठित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का अहसास करते हुए कहा था, ‘‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है.’’

file photo
‘‘शिक्षित समाज के लिए एक भाषा अवश्य होनी चाहिए. वह हिंदी ही हो सकती है. हिंदी द्वारा करोड़ों लोगों को साथ लेकर काम किया जा सकता है. इसलिए हिंदी को उचित स्थान मिलने में जितनी देरी हो रही है, उतना ही अधिक देश का नुकसान हो रहा है.’’ यह बात 1917 में महात्मा गांधी ने बाकायदा एक सर्कुलर में अपने लाखों समर्थकों को लिखकर भेजी थी. यही नहीं कुछ महीने बाद 1918 में उन्होंने तमिल प्रदेश मद्रास में सी पी रामस्वामी की अध्यक्षता में एक सम्मेलन करवाया, जिसका उद्घाटन एनी बेसेंट ने किया और ‘हिंदी वर्ष’ मनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया.
इस आयोजन और आगे अभियान बढ़ाने के लिए अपने बेटे देवदास गांधी को भेजा. फिर अपने एक तमिल सहयोगी को पत्र लिखकर कहा, ‘‘जब तक तमिल प्रदेश के प्रतिनिधि सचमुच हिंदी के बारे में सख्त नहीं बनेंगे, तब तक महासभा में से अंग्रेजी का बहिष्कार नहीं होगा. मैं देखता हूं कि हिंदी के बारे में करीब-करीब खादी के जैसा हो रहा है. वहां जितना संभव हो, आंदोलन किया करो.’’
महात्मा गांधी ने विखंडित पड़े संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधने के लिए, उसे संगठित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता का अहसास करते हुए कहा था, ‘‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है.’’ पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन सहित द्रमुक नेताओं ने शिक्षा नीति में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के महत्व का प्रादेशिक स्वयत्तता के नाम पर कड़ा विरोध व्यक्त किया.
अब महाराष्ट्र में मराठी और इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के लिए कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर अनिवार्य किए जाने पर प्रतिपक्ष उग्र विरोध कर रहा है. जबकि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट कहा है कि ‘राज्य में मराठी बोलना अनिवार्य होगा. हमने पहले ही नई शिक्षा नीति लागू कर दी है.
नीति के अनुसार, हम प्रयास कर रहे हैं कि सभी को मराठी के साथ-साथ देश की भाषा भी आनी चाहिए. नीति पूरे भारत में एक आम संवादात्मक भाषा के प्रयोग की वकालत करती है, और महाराष्ट्र सरकार ने मराठी का व्यापक प्रयोग सुनिश्चित करने के लिए पहले ही कदम उठाए हैं.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहन विचार-विमर्श और संसद में बहस के बाद 2020 की शिक्षा नीति में हिंदी सहित भारतीय भाषाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आग्रह किया है. इसमें बच्चे चाहें तो अपनी मातृभाषा के साथ कोई दो अन्य भारतीय भाषा ले सकते हैं या तीसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी, फ्रेंच जैसी विदेशी भाषा भी पढ़ सकते हैं.
इतनी व्यावहारिक स्पष्टता के बावजूद समाज को बांटकर वोट की राजनीति करने वाले नेता और उनके संगठन तमिलनाडु विधानसभा या इसी साल होने वाले मुंबई महानगरपालिका के चुनावों के लिए हिंदी के उपयोग के विरुद्ध जनता को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं.
तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना, केरल और महाराष्ट्र के हिंदी शिक्षा विरोधी नेता, अभिनेता यह कैसे भूल जाते हैं कि हाल के पांच वर्षों के दौरान उनकी ही क्षेत्रीय भाषाओं तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम की हिंदी डबिंग फिल्मों ने हजारों करोड़ रु. कमाए हैं और बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड को भी चकित कर दिया है!