Delhi Chunav 2025: अरविंद केजरीवाल ने राहुल गांधी को निहत्था कर दिया?, अब आमने-सामने की लड़ाई
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 28, 2025 11:38 IST2025-01-28T11:37:16+5:302025-01-28T11:38:21+5:30
Delhi Chunav 2025: अरविन्द केजरीवाल ने जनता के बीच साफ तौर से यह बात रखी है कि अब उन्हें ही यह तय करना है कि सरकार का पैसा कहां खर्च होना चाहिए।

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रंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव का नया नैरेटिव गढ़ा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को दिल्ली नहीं देश बचाने का चुनाव बताया है। इसे विचारधाराओं की लड़ाई करार दिया है। आम आदमी पार्टी के संयोजक व पूर्व मुख्यमंत्री ने केजरीवाल मॉडल बनाम बीजेपी मॉडल के तौर पर दिल्ली में चुनाव की लड़ाई तय कर दी है। उन्होंने कहा है कि यह चुनाव इस बात को तय करने के लिए है कि फ्री बीज़ जनता के कल्याण के लिए होगा या फिर उनके अरबपति दोस्तों के लिए। गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजनीति की धारा जनसरोकार या फिर उद्योगपतियों का हित- इस विषय पर अरविनद केजरीवाल ने बहस छेड़ दी है। एक तरह से राहुल गांधी की ओर से मोदी सरकार को अडानी परस्त सरकार बताते रहने को आम भाषा में चुनावी मुद्दा बना दिया है। फर्क इतना है कि अरविन्द केजरीवाल सरकार के पास केजरीवाल मॉडल है जबकि राहुल गांधी के पास यह मॉडल नहीं है।
सरकारी खजाना किस पर खर्च हो- जनता पर या उद्योगपतियों पर?
अरविन्द केजरीवाल ने जनता के बीच साफ तौर से यह बात रखी है कि अब उन्हें ही यह तय करना है कि सरकार का पैसा कहां खर्च होना चाहिए। सरकारी पैसे से जनता के लिए कल्याण की योजनाएं बनाई जानी चाहिए या कि इससे उद्योगपतियों का कल्याण करना चाहिए। कर्ज देकर बाद में कर्ज माफ करने वालों का साथ दिया जाए या फिर उनका जो स्कूल बनाते हैं, मोहल्ला क्लीनिक चलाते हैं, फ्री बस, फ्री शिक्षा, फ्री इलाज पर काम करते हैं। अरविन्द केजरीवाल ने फ्री सुविधाओं के कारण आम जनता को हो रही बचत समझाते हुए कहा कि करीब 26 हजार रुपये हर परिवार के हर महीने बच रहे हैं।
बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो ये रुपये बचने बंद हो जाएंगे। ऊपर से यह खर्च बन आएगा। केजरीवाल ने आम जनता से जानना चाहा है कि क्या वे 26 हजार का खर्च सहन कर सकते हैं? फिर निरपेक्ष होकर केजरीवाल कहते दिखते हैं कि अगर आप ऐसा कर सकते हैं यानी 26 हजार रुपये खर्च सहन कर सकते हैं तो उन्हें ही वोट दीजिए।
संक्षेप में कहें तो अरविन्द केजरीवाल ने मतदाताओं से साफ-साफ कह दिया है कि अगर 26 हजार रुपये महीने बचाना चाहते हैं तो आम आदमी पार्टी को वोट करें और नहीं बचाना चाहते हैं तो बीजेपी को वोट करें। यह बड़ा विमर्श केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में गढ़ दिया है।
बीजेपी-मीडिया मिडिल क्लास को डरा रहे हैं?
अरविन्द केजरीवाल ने मीडिया पर भी फ्री बीज को लेकर मिडिल क्लास में ग्लानिभाव भरने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि मीडिया कभी यह नहीं दिखाता कि अरबपतियों को वास्तव में फ्री बीज दिए जा रहे हैं। उन्हें अरबों रुपये कर्ज दिए जाते हैं और बाद में उन्हें माफ कर दिया जाता है। उल्टे मीडिया, एंकर, संपादक सब यह बताने में लगे रहते हैं मानो मिडिल क्लास को अगर कुछ लाभ सरकार की ओर से मिलता है तो वह बहुत बड़ा पाप हो जाता है। आज फ्री पानी, फ्री बिजली, फ्री शिक्षा, फ्री दवा, फ्री इलाज, फ्री यात्रा (महिलाओं को) दिया जा रहा है तो इसमें मिडिल क्लास भी शामिल है।
बीजेपी और मीडिया मिलकर ऐसा माहौल बना रही है जिससे मिडिल क्लास में ग्लानि पैदा हो। अरविन्द केजरीवाल ने मिडिल क्लास से साफ तौर पर पूछा कि क्या आप भी हर महीने 25 हजार रुपये का फायदा छोड़ने की स्थिति में हो? सच यह है कि ऐसा हुआ तो आपको भी दिल्ली छोड़कर जाना पड़ जा सकता है। यह चुनाव दिल्ली ही नहीं देश की दिशा तय करेगा। केजरीवाल मॉडल से दिल्ली चलेगी तो यह देश के लिए भी बड़े संदेश देने वाला होगा। अगर, नहीं तो उसके बुरे परिणाम देश को भी भुगतने होंगे।
राहुल से उनका नारा ही छिन गया
वास्तव में अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली चुनाव लड़ते-लड़ते राहुल गांधी का नारा ही नहीं हड़प लिया है बल्कि देशव्यापी स्तर पर आम आदमी पार्टी के मॉडल या केजरीवाल मॉडल के बहाने अपनी सियासत को भी राष्ट्रव्यापी बनाने की पहल कर दी है। दिल्ली चुनाव से राष्ट्रीय स्तर पर संदेश देने, विमर्श पैदा करने और राजनीति को आगे बढ़ाने की सियासत आम आदमी पार्टी ने चल दी है।
जब राहुल गांधी दो विचारधाराओं की लड़ाई बताते हैं तो वे आरएसएस-बीजेपी बनाम कांग्रेस की विचारधारा बोलते हैं जिसमें मनुवाद के समर्थन, अंबेडकरावाद का विरोध, उद्योगपतियों का समर्थन, गरीबों का विरोध जैसी बातें शामिल होती हैं। मगर, जब अरविन्द केजरीवाल ने दो विचारधाराओं की लड़ाई कही है तो उन्होंने केजरीवाल मॉडल बनाम बीजेपी मॉडल को परस्पर आमने-सामने किया है।
इसमें जनकल्याण के लिए सरकारी खजाना बनाम उद्योगपतियों के लिए सरकारी खजाना की लड़ाई को उजागर किया है। इसमें उद्योगपति को फायदा पहुंचाने की बात तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों उठा रही है। लेकिन, फर्क यह है कि राहुल गांधी सत्ता में भागीदारी, जातीय जनगणना, संविधान बचाने जैसे मुद्दों से खुद को जोड़ते हैं जो सैद्धांतिक ज्यादा है। वहीं केजरीवाल जनता को पहुंचाई जा रही सुविधाओं के मॉडल से वोटरों को जोड़ते हैं जो कहीं ज्यादा प्रभावशाली साबित हो सकता है।
बीजेपी के लिए मुश्किल हुआ चुनाव
बीजेपी के लिए दिल्ली का चुनाव निश्चित रूप से मुश्किल हो चला है। बीजेपी के कई नेताओं ने टीवी चैनल पर खुलकर फ्री बीज का विरोध किया है। यहां तक कि संकल्प पत्र में भी ‘जरूरतमंदों’ को फ्री बीज का फायदा देने की बात कही है। अरविन्द केजरीवाल इन बयानों और संकल्प पत्र की बातों को चुनावी मुद्दे से जोड़ते हुए मतदाताओं को आगाह कर रहे हैं कि अगर उन्होंने बीजेपी को वोट किया तो सारे फ्रीबीज उनसे छिन जाएंगे। यह ऐसा दांव है जो दिल्ली की पूरी लड़ाई को आर-पार की लड़ाई बना रहा है।
बीजेपी को इस दांव के समांतर कोई दांव सूझ नहीं रहा है। सच तो यह है कि बीजेपी अब तक चुनावी नैरेटिव भी खड़ा नहीं कर पायी है। वह सिर्फ इस उम्मीद में है कि कांग्रेस कुछ अच्छा कर जाए तो उसकी चुनावी नैया पार लग जाए। लेकिन, अरविन्द केजरीवाल ने विचारधाराओं की लड़ाई के स्तर पर भी कांग्रेस को निहत्था कर दिया है। ऐसे में लड़ाई आमने-सामने की हो गयी लगती है। बीजेपी की मुश्किल बड़ी हो गयी है।
नोटः लेखक के निजी विचार है...