प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः मजबूरी का लाभ उठाकर दवा उद्योग में मुनाफाखोरी

By Prakash Biyani | Updated: July 9, 2020 09:08 IST2020-07-09T09:08:55+5:302020-07-09T09:08:55+5:30

कोरोना महामारी है इसलिए सरकार भी गरीबों को इसे पोलियो ड्राप की तरह उपलब्ध करवाएगी, पर यह आज नहीं 5-10 साल बाद होगा. इस दौरान ओरिजनल और जेनेरिक कोरोना वैक्सीन या मेडिसिन बनाने वाले पैसा कमाएंगे.

Coronavirus crisis: Profit in the pharmaceutical industry by taking advantage of compulsion | प्रकाश बियाणी का ब्लॉगः मजबूरी का लाभ उठाकर दवा उद्योग में मुनाफाखोरी

भारतीय दवा कंपनियां दवाओं के सस्ते जेनेरिक वर्जन्स के लिए मशहूर हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

बहुराष्ट्रीय दवा कंपनी नोवार्टिस ने डॉक्टरों को रिश्वत देकर दवाओं की बिक्री बढ़ाने के मुकदमे को कोर्ट के बाहर सुलझा लेने के लिए 5070 करोड़ देने की पेशकश की है. 2013 में एक अमेरिकन नागरिक ने स्विस दवा कंपनी नोवार्टिस के विरुद्ध मुकदमा दायर किया था. इसमें आरोप लगाया गया था कि कंपनी डॉक्टरों को विदेश यात्रा करवाती है, महंगे स्टार होटल में वे ठहरते हैं, महंगी शराब और खाना उन्हें सर्व किए जाते हैं, गिफ्ट में मोटर कार मिलती है. इसके बदले वे कंपनी की दवा ही पर्ची में लिखते हैं. 2015 में नोवार्टिस ने ऐसे ही एक अन्य मुकदमे को सुलझाने के लिए 3000 करोड़ रुपए दिए थे. महंगी दवा ज्यादा से ज्यादा बेचने के इस ग्लोबल रैकेट से दवा कंपनियां कितना कमाती हैं, इसका अनुमान इस बात से लगा लें कि मुकदमेबाजी और बदनामी से बचने के लिए नोवार्टिस ने अरबों रुपए चुकाए, वह भी एक बार नहीं.

भारतीय दवा उद्योग की एक और सच्चाई है. सारी दुनिया में भारतीय दवा कंपनियां दवाओं के सस्ते जेनेरिक वर्जन्स के लिए मशहूर हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां स्वदेशी दवा कंपनियों को नकलखोर कहती हैं. उन्हें शिकायत है कि वे अरबों रु पया शोध पर खर्च करते हैं, दवा बनाते हैं, ब्रांडिंग और मार्केटिंग करते हैं, फिर मुनाफा कमाते हैं. भारत में नियम है कि दवा का पेटेंट खत्म होने के बाद कोई भी दवा कंपनी बायो-एक्वीवेलेंस स्टडीज (समानार्थक/ वैकल्पिक जैविक अध्ययन) करके और स्टेबिलिटी डाटा (प्रमाणीकरण) प्रस्तुत करके उस दवा का जेनेरिक वर्जन लांच कर सकती है. 

पेटेंट समाप्ति के चार साल बाद तो यह औपचारिकता भी पूरी करना जरूरी नहीं है. विदेशी दवा कंपनियां हमारे देश की दवा कंपनियों से परेशान हैं जो पेटेंट ऑफ होते ही सारी दुनिया में जेनेरिक दवा लांच करके उनके मुनाफे में सेंध लगा देती हैं.

इस चक्रव्यूह के कारण ही जनसाधारण को वाजिब मूल्य पर दवा नहीं मिलती है. कोविड महामारी को ही ले लीजिए. 100 से ज्यादा दवा कंपनियां कोरोना वैक्सीन और मेडिसिन खोज रही हैं. प्रथम आओ प्रथम कमाओ के आधार पर जो दवा कंपनी सबसे पहले वैक्सीन या मेडिसिन लांच करेगी वह उसका मूल्य तय करेगी. कोरोना से डरे हुए लोग मूल्य नहीं पूछेंगे, दवा खरीदेंगे. पेटेंट ऑफ होने के बाद इसका जेनेरिक वर्जन लांच होगा तब जनसाधारण के लिए कोरोना उपचार अफोर्डेबल होगा. 

कोरोना महामारी है इसलिए सरकार भी गरीबों को इसे पोलियो ड्राप की तरह उपलब्ध करवाएगी, पर यह आज नहीं 5-10 साल बाद होगा. इस दौरान ओरिजनल और जेनेरिक कोरोना वैक्सीन या मेडिसिन बनाने वाले पैसा कमाएंगे. इसकी शुरुआत हो गई है. ग्लेनमार्क ने कोरोना मेडिसिन फेविपिराविर को फैबिफ्लू ब्रांड नाम से लांच किया है. इसके 34 टैबलेट के पत्ते की कीमत 3500 रुपए है यानी एक टैबलेट का मूल्य हुआ 103 रुपए. इस दवा का जेनेरिक वर्जन एक चौथाई मूल्य में मिलेगा, पर कब? जवाब है जब बड़ी दवा कंपनियों की जेब भर जाएगी. 

Web Title: Coronavirus crisis: Profit in the pharmaceutical industry by taking advantage of compulsion

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