ब्लॉग: 'वैक्सीन मैत्री’ पर सवाल, भारत की वसुधैव कुटुंबकम की भावना को कमजोर करता है
By विवेकानंद शांडिल | Updated: May 30, 2021 11:49 IST2021-05-30T11:41:16+5:302021-05-30T11:49:27+5:30
बात कोरोना वैक्सीन की किल्लत की है तो ये दुनियाभर के देशों की है। भारत अब भी वैक्सीनेशन के मामलें में दुनियाभर के देशों से अवव्ल है। भारत में 21 करोड़ से ज्यादा लोगों को टीका लगाया जा चुका है।

'वैक्सीन मैत्री’ पर सवाल उठना कितना जायज? (फाइल फोटो)
कोरोना की पहली लहर से ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। कोरोना की पहली वेव से भारत काफी हद तक खुद को बचा पाने में सफल रहा था और दुनिया भर में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में कसीदें पढ़े जा रहे थे तब भी राहुल पीएम मोदी के हर फैसले को कठघरे में खड़े कर रहे थे।
बिडंबना देखिये कि जो राहुल कोरोना की पहली वेव में लॉकडाउन को कोरोना के खिलाफ समाधान नहीं बताकर इसका विरोध कर रहे थे वही राहुल कोरोना की दूसरी वेव में लॉकडाउन लगाने की मांग करते नजर आये।
हालांकि पहली लहर में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल केंद्र के साथ बड़े ही तालमेल के साथ काम करते नजर आये लेकिन दूसरी वेव में उनका तेवर भी राहुल की तरह दिख रहा है। दिल्ली में कोरोना की रफ्तार पर ब्रेक लगते ही केजरीवाल पीएम मोदी पर और ज्यादा मुखर हो रहे हैं।
अब दोनों ही कोरोना की दूसरी वेव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक तौर से जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वैक्सीन की किल्लत के लिए मोदी सरकार के ‘वैक्सीन मैत्री’ और ढुलमुल रवैये को जिम्मेदार बता रहे।
अब सवाल है कि कोरोना की पहली वेव में तो लॉकडाउन का फैसला केंद्र ने लिया था लेकिन दूसरी वेव में लॉकडाउन का फैसला तो राज्यों पर छोड़ दिया गया था। तो फिर देरी किससे हुई?
बात वैक्सीन की किल्लत की है तो ये दुनियाभर के देशों की है। भारत अब भी वैक्सीनेशन के मामलें में दुनियाभर के देशों से अवव्ल है। अमेरिका के बाद भारत ने अब तक सबसे ज्यादा लोगों को वैक्सीनेट किया है। हाल ही में 130 दिनों में 21 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट कर वैक्सीनेशन की स्पीड के मामलें में भारत ने ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया।
चीन को छोड़ दे भारत की आबादी तो अन्य विकसित देशों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। ऐसे में अगर भारत दिसबंर तक हर किसी को वैक्सीनेट कर लेता है तो फिर भारत पीछे कैसे हुआ?
केंद्र सरकार ने दिसंबर तक 216 करोड़ वैक्सीन उत्पाद के जरिये हर भारतीय को वैक्सीनेट करने का रोडमैप सार्वजनिक कर दिया है। ऐसे में राहुल – केजरीवाल का देश में वैक्सीन की किल्लत बताकर भारत की ‘वैक्सीन मैत्री’ पर सवाल उठाना महज राजनीतिक लगता है।
भारत ने कुल 6.63 करोड़ वैक्सीन का निर्यात किया। उसमें 5 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन बनने से पूर्व हुए करार के तहत देशों को दिया। इस पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं था।
वहीं, करीब सवा करोड़ वैक्सीन की डोज केंद्र सरकार ने पड़ोस के मुल्कों को दिया। इतनी वैक्सीन तो हम बर्बाद कर चुके हैं। सिर्फ जनवरी से अप्रैल तक ही अलग – अलग राज्यों में 44 लाख टीके की डोज बर्बाद हो चुके हैं। पिछले एक महीने से ज्यादा समय में इस बर्बादी का आंकड़ा और बड़ा है।
वसुधैव कुटुंबकम की सोच
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ।।
यानि हर कोई सुखी रहे, रोगमुक्त रहें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े. ये भारत की भावना है। इसी भावना के साथ भारत सदियों से जीते आया है।
संकट में होते हुए भी मदद करना नहीं छोड़ते यही हमारे संस्कार रहे हैं। रामायण में जब भगवान राम, मां सीता की खोज में सुग्रीव से मिलते हैं तो इस दौरान भगवान राम सुग्रीव को पहले उसके कष्टों से मुक्ति दिलाकर ही उन्हें साथ में लेकर लंका की ओर कूच करते हैं।
केंद्र सरकार की ‘वैक्सीन मैत्री’ भी भारतवर्ष की उसी भावना का आदर है। वैक्सीन की किल्लत के लिए ‘वैक्सीन मैत्री’ पर सवाल उठाना महज पीएम मोदी के नेतृत्व को कमजोर दिखाने को कोशिश है और ये भारत की वसुधैव कुटुंबकम व सर्वे भवन्तु सुखिनः...वाली भावना को भी कमजोर करता है।