ब्लॉगः कोरोना काल में अनाथ हुए करीब तीन लाख बच्चे, बाल-श्रम रोकना सरकारों की ही जिम्मेदारी नहीं, हमारा भी दायित्व...
By रमेश ठाकुर | Updated: June 12, 2021 17:27 IST2021-06-12T17:25:21+5:302021-06-12T17:27:30+5:30
केंद्र व राज्य सरकारों ने इन अनाथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और 21 वर्ष आयु पूरे होने तक समुचित देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर लिया है.

सामाजिक चेतना, जनजागरण और जागरूकता की आवश्यकता होगी. (file photo)
साल-दर-साल बढ़ती बाल श्रमिकों की संख्या वैसे ही चिंता का विषय बनी हुई थी, कोरोना संकट ने और हवा दे दी. कोरोना काल में अनाथ हुए बच्चों का आंकड़ा भयभीत करता है.
करीब तीन लाख बच्चे अपने मां-बाप के न रहने से अनाथ हुए हैं. गनीमत ये है कि केंद्र व राज्य सरकारों ने इन अनाथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और 21 वर्ष आयु पूरे होने तक समुचित देखरेख का जिम्मा अपने ऊपर लिया है. कोई भी बच्चा दर-दर न भटके, मेहनत मजदूरी व बाल-श्रम से बचे, इसके लिए सरकारों ने जिलाधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी है.
बाल-श्रम रोकना केवल सरकारों की ही जिम्मेदारी नहीं है, हमारा भी मानवीय दायित्व है. ये समस्या किसी एक के बूते नहीं सुलझ सकती, इसके लिए सामाजिक चेतना, जनजागरण और जागरूकता की आवश्यकता होगी. बाल मजदूरी और बाल अपराध को थामने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्नालय, श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग सहित इस क्षेत्न में कार्यरत तमाम संस्थाएं, सरकारी व गैर सरकारी संगठन, एनजीओ को लगना पड़ेगा. बाल-श्रम रोकने में कानूनों की कमी नहीं है, कई कानून हैं.
बाल श्रम (निषेध व नियमन) अधिनियम 1986 के तहत ढाबों, घरों, होटलों में बाल श्रम करवाना दंडनीय अपराध है. बावजूद इसके लोग बच्चों को अपने प्रतिष्ठानों में इसलिए काम दे देते हैं क्योंकि उन्हें कम मजदूरी देनी पड़ती है. वर्ष 1979 में भारत सरकार ने बाल-मजदूरी की समस्या और उससे निजात दिलाने हेतु उपाय सुझाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया था.
समिति ने समस्या का विस्तार से अध्ययन किया और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं. उन्होंने देखा कि जब तक गरीबी बनी रहेगी तब तक बाल-मजदूरी को हटाना संभव नहीं होगा. इसलिए कानूनन इस मुद्दे को प्रतिबंधित करना व्यावहारिक रूप से समाधान नहीं होगा. ऐसी स्थिति में समिति ने सुझाव दिया कि खतरनाक क्षेत्नों में बाल-मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए तथा अन्य क्षेत्नों में कार्य के स्तर में सुधार लाया जाए.
समिति ने यह भी सिफारिश की कि कार्यरत बच्चों की समस्याओं को निपटाने के लिए बहुआयामी नीति बनाए जाने की जरूरत है. उसके बाद अलग मंत्नालय, आयोग, संस्थान और समितियां बनीं, लेकिन बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि जब तक आमजन की सहभागिता नहीं होगी, सरकारी प्रयास भी नाकाफी साबित होंगे.
कोई भी व्यक्ति जो 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे से काम करवाता है अथवा 14 से 18 वर्ष के बच्चे को किसी खतरनाक व्यवसाय या प्रक्रिया में काम देता है, उसे छह महीने से दो साल तक की जेल की सजा हो सकती है और साथ ही बीस हजार से पचास हजार रुपए तक का जुर्माना भी हो सकता है.
इस कानून के अलावा और भी ऐसे अधिनियम हैं (जैसे कि फैक्ट्रीज अधिनियम, खान अधिनियम, शिपिंग अधिनियम, मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम इत्यादि) जिनके तहत बच्चों को काम पर रखने के लिए सजा का प्रावधान है, पर बाल मजदूरी करवाने के अपराध के लिए अभियोजन बाल मजदूर कानून के तहत ही होगा. लेकिन विश्व भर में 21-22 करोड़ बच्चे आज भी श्रम की भट्ठियों में अपना बचपन झोंके हुए हैं.
ये संख्या हिंदुस्तान में पौने दो करोड़ के आसपास है. चाय की दुकानों, ढाबों, छोटे-बड़े होटलों में आज भी आपको ‘छोटू’ ही मिलेंगे. देहरादून हाईवे पर कुछ महीने पहले होटल पर एक दंपति चाय पी रहे थे, चाय देने आया वाला बच्चा सिसक-सिसक कर रो रहा था. दंपति ने उसके रोने की वजह पूछी तो उसने सारा हाल बयां कर दिया.
बच्चे ने बताया कि उसे जबरदस्ती झारखंड से लाया गया है. दंपति ने चुपके से स्थानीय पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने बच्चे को अपने कब्जे में लिया और थाने ले गई. बाद में पता चला कि बच्चा वहां से अपहरण करके लाया गया था और ढाबे वाले को पचास हजार रु. में बेच दिया गया था.