विजय दर्डा का ब्लॉग: चिंतन से ज्यादा चिंता करने की जरूरत!

By विजय दर्डा | Updated: May 23, 2022 10:47 IST2022-05-23T10:46:41+5:302022-05-23T10:47:23+5:30

उदयपुर के शिविर में भाग लेने के लिए राहुल गांधी यदि ट्रेन से पहुंचे तो उद्देश्य स्पष्ट था कि वे लोगों से कनेक्ट करना चाहते थे। सुबह पांच बजे तक हर स्टेशन पर उनका स्वागत हो रहा था और वे कार्यकर्ताओं से मिल भी रहे थे। यह अच्छी बात है लेकिन उदयपुर की स्थानीय कांग्रेस कमेटी के नेताओं के इस सवाल का क्या जवाब है कि आलाकमान ने उनसे मुलाकात क्यों नहीं की?

congress needs to think more than doing chintan shivir | विजय दर्डा का ब्लॉग: चिंतन से ज्यादा चिंता करने की जरूरत!

विजय दर्डा का ब्लॉग: चिंतन से ज्यादा चिंता करने की जरूरत!

Highlightsएक सवाल यह भी है कि इतने बड़े चिंतन शिविर में कांग्रेस ने अपने मंत्रियों और सांसदों को क्यों नहीं बुलाया?केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और महाराष्ट्र में वह सत्ता में भागीदार है।

उदयपुर में जिस दिन कांग्रेस का तीन दिवसीय नवसंकल्प चिंतन शिविर समाप्त हुआ, उसी दिन अहमदाबाद में भाजपा का दो दिवसीय चिंतन शिविर प्रारंभ हुआ। इन दोनों चिंतन शिविरों को लेकर चर्चाएं स्वाभाविक हैं। लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला हर व्यक्ति चाहता है कि विपक्ष मजबूत हो लेकिन एक तरफ भाजपा में चौबीस घंटे, सातों दिन बिना थके सक्रिय रहने वाले नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ समर्पित टीम है जो हर पल रणनीति पर काम करती रहती है तो दूसरी ओर कांग्रेस की स्थिति क्या है? 

सबके मन में सवाल है कि उदयपुर में कांग्रेस के तीन दिवसीय नवसंकल्प चिंतन शिविर से संदेश क्या निकला है? देश भर में फैले कार्यकर्ताओं के बीच क्या ऊर्जा का संचार हुआ है? आने वाले विधानसभा चुनावों में या फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस क्या तैयारी कर रही है? आखिर कांग्रेस को पूर्णकालिक अध्यक्ष कब मिलेगा? ऐसे बहुत सारे सवाल जवाब की उम्मीद में हवा में तैर रहे हैं।

चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस का नारा है- ‘भारत जोड़ो!’ जब यह नारा सामने आया तो अपनी पूरी उम्र पार्टी को समर्पित कर देने वाले एक बहुत पुराने कांग्रेसी ने मुझसे कहा कि पहले अपने घर को तो जोड़ो! भारत खुद-ब-खुद जुड़ जाएगा! आपकी पार्टी तो जुड़ी हुई है नहीं, देश की बात करने का मतलब क्या है? जी-23 के नेता जब पार्टी को बेहतर बनाने की बात करते हैं तो उन्हें विद्रोही मान लिया जाता है। मतलब की बात तो यह है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है और ये भूमिका निभाने का नैतिक दायित्व कांग्रेस का है। 

वह देश की सबसे पुरानी और लंबे समय तक देश का नेतृत्व करने वाली पार्टी रही है। चिंतन शिविर में असली चर्चा तो इसी बात पर होनी चाहिए थी कि जनता के मिजाज को कांग्रेस क्यों नहीं समझ पा रही है। मतदाता उस पर विश्वास क्यों नहीं कर पा रहा है? क्या चूक हो गई कि पार्टी आम जनता से कट गई। जनता से कट जाने की बात राहुल गांधी खुद भी कह रहे हैं। चिंतन शिविर में इस बात को लेकर खास चिंता होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा कोई रोड मैप सामने नहीं आया कि जनता से कैसे जुड़ेंगे? जन भावनाओं को कैसे समझेंगे और अपनी बात कैसे समझाएंगे?

उदयपुर के शिविर में भाग लेने के लिए राहुल गांधी यदि ट्रेन से पहुंचे तो उद्देश्य स्पष्ट था कि वे लोगों से कनेक्ट करना चाहते थे। सुबह पांच बजे तक हर स्टेशन पर उनका स्वागत हो रहा था और वे कार्यकर्ताओं से मिल भी रहे थे। यह अच्छी बात है लेकिन उदयपुर की स्थानीय कांग्रेस कमेटी के नेताओं के इस सवाल का क्या जवाब है कि आलाकमान ने उनसे मुलाकात क्यों नहीं की? जरा सोचिए कि उदयपुर के कांग्रेसियों को कितनी निराशा हुई होगी? ऐसी निराशा ही उत्साह खत्म करती है। 

एक सवाल यह भी है कि इतने बड़े चिंतन शिविर में कांग्रेस ने अपने मंत्रियों और सांसदों को क्यों नहीं बुलाया? केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है और महाराष्ट्र में वह सत्ता में भागीदार है। उसके पास केवल 53 सांसद हैं, फिर भी सबको नहीं बुलाया गया? राजस्थान के मंत्रियों को भी नहीं बुलाया! शिविर के लिए 450 नेताओं को बुलाया था जिसमें 430 शामिल हुए। उनमें आधे से अधिक युवा थे जो राहुल गांधी के समर्थक हैं। शेष वो लोग थे जो कांग्रेस में विभिन्न पदों पर लंबे समय से विराजमान हैं। 

Web Title: congress needs to think more than doing chintan shivir

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