ब्लॉग: आखिरकार मध्य प्रदेश में कांग्रेस नया चेहरा आगे लाई
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 18, 2023 09:59 AM2023-12-18T09:59:20+5:302023-12-18T09:59:49+5:30
यदि सत्ता पक्ष से नए उम्मीदवार की उम्मीद की जा सकती है तो विपक्ष से क्यों नहीं।
आखिरकार मध्यप्रदेश में कांग्रेस आलाकमान को चुनाव हारने के बाद समझ आ ही गई। पिछले कई दशकों से अपने पुराने नेताओं पर भरोसा कर रही पार्टी लगातार चुनाव हार रही थी और अपने वरिष्ठ नेताओं से पीछा नहीं छुड़ा पा रही थी।
बावजूद इसके कि राज्य में बरसों से जिन नेताओं के नाम पर गुटबाजी होती आ रही थी, जब चुनाव आते थे तो उनको ही आगे किया जाता था। बीते कुछ साल से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के अनेक इलाकों का दौरा कर जमीनी हकीकत को जानने का प्रयास किया।
इसमें उन्हें युवाओं का अच्छा समर्थन मिला। यही वजह है कि वह देर-सबेर ही सही, मगर युवा आकांक्षाओं के अनुसार निर्णय ले रहे हैं। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए अध्यक्ष बनाए गए हैं। हालांकि वह ताजा विधानसभा चुनाव हार गए हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व उनकी क्षमताओं को दरकिनार करना नहीं चाहता।
वह पिछली कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और राज्य में राहुल गांधी के बड़े समर्थकों में से एक गिने जाते हैं। राऊ के पूर्व विधायक 50 वर्षीय पटवारी के साथ आदिवासी नेता उमंग सिंघार को मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष का नेता, वहीं हेमंत कटारे को उपनेता बनाया गया है।
इन नियुक्तियों से कांग्रेस ने ओबीसी, ब्राह्मण और आदिवासी समीकरण को साधने की कोशिश की है। पटवारी मालवा-निमाड़ क्षेत्र से हैं और इलाके में राज्य की 66 सीटें हैं। इसी परिक्षेत्र से विधानसभा में विपक्ष के नेता बनाए गए उमंग सिंघार भी हैं, जिन्होंने धार जिले की गंधवानी सीट जीती है। ध्यान देने योग्य यह है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी इसी अंचल से आते हैं।
चुनाव के दौरान पटवारी को कांग्रेस के चुनावी अभियान का सह-अध्यक्ष बनाया गया था। उनकी जन-आक्रोश रैलियों में अच्छी खासी भीड़ भी जुट रही थी। उन्हें भाजपा सरकार को घेरने के लिए भी जाना जाता है। साफ है कि कांग्रेस का यह फैसला काफी सोच-समझ के बाद लिया गया है। इसमें कोई एक सोच नहीं, बल्कि कई बातों को रेखांकित करने की कोशिश की गई है।
हालांकि यहां पार्टी पर यह भी लोकोक्ति लागू होती है कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। यदि कांग्रेस की ओर से इतनी गंभीरता विधानसभा चुनाव के पहले दिखाई जाती तो शायद परिणाम कुछ और सामने आते, किंतु पराजय ही सही, कहीं न कहीं पार्टी ने यह मान लिया है कि बूढ़े घोड़ों पर दांव लगाने से चुनाव जीते नहीं जा सकते हैं। यदि सत्ता पक्ष से नए उम्मीदवार की उम्मीद की जा सकती है तो विपक्ष से क्यों नहीं।
अब उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस अपने नए नेतृत्व के साथ संगठन की मजबूती की ओर ध्यान देगी और गुटबाजी से परे जनता के समक्ष एक सक्षम विकल्प देने के लायक बनेगी।