समय पर न्यायदान की दिशा में सुप्रीम कोर्ट की ठोस पहल
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: December 28, 2023 11:53 AM2023-12-28T11:53:45+5:302023-12-28T11:58:29+5:30
भारत की न्यायप्रणाली को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ न्यायदान व्यवस्थाओं में से एक माना जाता है परंतु उसमें कुछ खामियां भी हैं जिन्हें दूर करना बेहद जरूरी है।
भारत की न्यायप्रणाली को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ न्यायदान व्यवस्थाओं में से एक माना जाता है परंतु उसमें कुछ खामियां भी हैं जिन्हें दूर करना बेहद जरूरी है। हमारी न्यायव्यवस्था की सबसे बड़ी कमजोरी न्यायदान में विलंब है। सबसे बड़ी खामी ‘तारीख पे तारीख’ की है अर्थात मुकदमों की सुनवाई बार-बार अगली तारीख के लिए टल जाती है।
इससे न्यायदान में बहुत लंबा समय लग जाता है और कई बार तो तीन-तीन पीढ़ियों तक मुकदमे चलते रहते हैं। मुकदमों के लिए हर बार नई तारीख लेना वकीलों का एक हथियार बन गया है और सुनियोजित तरीके से मुकदमों की तारीखें आगे बढ़वाने का प्रयास किया जाता है। न्याय के लिए पूरा समय और अवसर देने के उद्देश्य से न्यायपालिका भी काफी उदारता बरतती है, जिसका फायदा वकीलों का एक बड़ा वर्ग अनुचित ढंग से उठाता है।
अब सुप्रीम कोर्ट ने न्यायप्रणाली की इस सबसे बड़ी खामी को दूर करने के लिए निर्णायक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने मुकदमों की सुनवाई में स्थगन की मांग करने के लिए कड़े दिशा-निर्देश तैयार करने का फैसला किया है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट मानक परिचालन प्रक्रिया बनाने जा रहा है।
मानक परिचालन प्रक्रिया तैयार करने के लिए बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने न्यायाधीशों की एक समिति गठित की है। इसके पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने 5 और 22 दिसंबर को दो परिपत्र जारी कर मुकदमों की सुनवाई स्थगित करने के संदर्भ में कुछ निर्देश जारी किए थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन को कुछ आपत्तियां थीं। बुधवार को अदालत ने जो समिति गठित की है उसमें ‘तारीख पे तारीख’ की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के संदर्भ में सभी संबंधित पक्षों से सुझाव आमंत्रित किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का उद्देश्य यही है कि जो भी नई व्यवस्था बने, वह पारदर्शी हो और बार-बार तारीख लेने की प्रवृत्ति खत्म हो जाए। हाल ही में सरकार ने तीन पुराने आपराधिक कानूनों की जगह तीन नए कानून लागू किए हैं। इन कानूनों में मुकदमों का निपटारा तीन वर्ष के भीतर करने का प्रावधान किया गया है लेकिन यह तभी संभव है जब ‘तारीख पे तारीख’ की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे।
सुप्रीम कोर्ट की पहल से तीनों नए कानूनों को असरदार बनाने में मदद मिलेगी। भारतीय अदालतों में इस वक्त पौने पांच करोड़ मुकदमे लंबित हैं। इनमें से अधिकांश मुकदमे निचली अदालतों में विचाराधीन हैं। अकेले निचली अदालतों में चार करोड़ से ज्यादा मुकदमों की कार्यवाही चल रही है। जिला और उच्च न्यायालयों में करीब दो लाख मुकदमे ऐसे हैं जो 30 साल से चल रहे हैं। चालीस साल से ज्यादा वक्त से चल रहे मुकदमों की संख्या हजारों में है।
लंबित मुकदमों के मामले में भारत दुनिया में शीर्ष पर है। साल 2018 में नीति आयोग ने अनुमान लगाया था कि मौजूदा दर से अगर मुकदमों का निपटारा जारी रहा तो सारे मुकदमे निपटने में 324 वर्ष लग जाएंगे। 2018 में अदालतों में करीब 3 करोड़ मुकदमे लंबित थे, जो पांच वर्ष में लगभग पौने दो करोड़ बढ़ गए। वर्षों से मुकदमे चलने के कारण कई बार निर्दोष लोगों को वर्षों तक जेल में रहना पड़ता है।
गत वर्ष बिहार में एक आरोपी को 28 साल बाद निर्दोष बरी किया गया। वह हत्या का आरोपी था लेकिन उसके मुकदमे की कार्यवाही बार-बार स्थगन के कारण वर्षों चलती गई और 28 साल बाद उसे न्याय मिला। भारत में 2022 के आंकड़ों के मुताबिक प्रति दस लाख लोगों के लिए सिर्फ 21 न्यायाधीश उपलब्ध थे। मुकदमों की संख्या के बढ़ने के लिए न्यायाधीशों की कमी एक बड़ा कारण हो सकता है लेकिन उससे बड़ा कारण ‘तारीख पे तारीख’ की प्रवृत्ति है।
हमारी न्याय व्यवस्था में सुधार के लिए कई समितियों और आयोगों की रिपोर्ट आई लेकिन उनकी सिफारिशों पर किसी सरकार ने गंभीरता से अमल नहीं किया। सभी सिफारिशों में न्यायदान प्रणाली को सुगम तथा समयबद्ध बनाने पर जोर दिया गया था एवं मुकदमों की सुनवाई लंबित करने की प्रक्रिया को खत्म करने की जरूरत बताई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अब खुद इस दिशा में सार्थक पहल की है। उम्मीद करें कि नए दिशा-निर्देश जल्द तैयार होंगे और ‘तारीख पे तारीख’ के अभिशाप से हमारी न्यायव्यवस्था मुक्त हो जाएगी।