ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने वाली सराहनीय पहल
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 5, 2025 07:15 IST2025-07-05T07:14:07+5:302025-07-05T07:15:35+5:30
शहरीकरण अच्छी बात है लेकिन इस चक्कर में गांवों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.

ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने वाली सराहनीय पहल
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि भारत का हृदय गांवों में बसता है और गांवों के विकास के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना अधूरी है. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का भी मानना था कि एक विकसित गांव एक विकसित राष्ट्र की नींव है.
दुर्भाग्य से आजादी के बाद गांवों के विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया, जिसका ज्वलंत प्रमाण किसानों की आत्महत्याएं हैं. पिछले सिर्फ तीन महीनों में ही महाराष्ट्र में 767 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. ऐसे परिदृश्य में ‘लोकमत सरपंच अवार्ड’ एक नई उम्मीद जगाता है. लोकमत मीडिया समूह की ओर से गुरुवार को मुंबई में राज्य के 24 जिलों से चयनित 13 ग्राम पंचायतों के सरपंचों को ‘लोकमत सरपंच अवाॅर्ड’ से सम्मानित किया गया.
इस अवसर पर ग्रामीण विकास मंत्री जयकुमार गोरे ने इन पुरस्कार विजेता ग्राम पंचायतों को 25-25 लाख रुपए की विकास निधि दिए जाने की घोषणा भी की. निश्चित रूप से अगर गांवों का विकास होगा तो किसानों की हालत सुधरेगी. यह विडंबना ही है कि पूरे देश का पेट भरने वाले किसान कई बार अपने परिवार का ही पेट भरने में असमर्थ होते हैं और निराशा के चरम क्षणों में उनको अपनी जान देने के अलावा कोई उपाय नहीं सूझता. फसल अच्छी हो चाहे खराब, दोनों ही स्थितियों में किसानों की हालत में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.
बम्पर पैदावार होने पर फसल के दाम इतने गिर जाते हैं कि किसानों को माटी मोल अपनी उपज बेचनी पड़ती है. टमाटर जैसी जल्दी खराब होने वाली सब्जियों के बारे में तो हम प्राय: हर साल सुनते हैं कि भारी पैदावार होने पर भाव इतने गिर जाते हैं कि किसान उसे बाजार तक ले जाने का खर्च भी कई बार नहीं निकाल पाते या खराब होने पर अपनी पूरी पैदावार ही फेंकनी पड़ती है.
आलू-प्याज की भारी पैदावार होने पर भाव गिरने से कई किसान उसे खेत से खोदकर निकालते ही नहीं, यूं ही छोड़ देते हैं, क्योंकि खर्च ही नहीं निकल पाता! इसीलिए गांवों में जो भी काम करने लायक युवा होते हैं, उनमें अधिकतर शहरों का रुख कर लेते हैं. क्षमता से अधिक जनसंख्या हो जाने से शहरों पर भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का बोझ बढ़ता है. कोरोना काल में शहरों से अपने गांवों की ओर लौटने वालों का जो तांता लगा था, वह दृश्य अपनी कहानी खुद कहता है.
इसीलिए डॉ. कलाम का कहना था कि शहरों को गांवों में ले जाकर ही ग्रामीण पलायन को रोका जा सकता है. अर्थात ग्रामीण क्षेत्रों में अगर कल-कारखाने लगाए जाएं तो युवा अपनी खेती का भी काम संभाल सकते हैं और उद्योग-धंधों में काम करके अतिरिक्त आय भी अर्जित कर सकते हैं. शहरीकरण अच्छी बात है लेकिन इस चक्कर में गांवों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.
बाकी सारी उपभोक्ता वस्तुओं के बिना भी हमारा काम चल सकता है लेकिन अनाज के बिना नहीं चल सकता. इसलिए लोकमत मीडिया समूह के ‘लोकमत सरपंच अवॉर्ड’ की तरह ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन देने वाली और भी पहल होनी चाहिए, ताकि गांवों की बिगड़ती हालत को सुधारा जा सके.