विजय दर्डा का ब्लॉग: मोदीजी की मुस्कान चाहते थे जिनपिंग...!

By विजय दर्डा | Published: September 19, 2022 06:50 AM2022-09-19T06:50:58+5:302022-09-19T06:50:58+5:30

शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारतीय कूटनीति छाई रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक बातें तो की ही, खासतौर पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात न करके स्पष्ट संदेश दे दिया कि भारत चीन की धूर्तता में नहीं फंसने वाला है. जिनपिंग चाहते थे कि मोदीजी के साथ मुस्कुराहट वाली एक तस्वीर हो जाए...!

China President XI jinping was waiting for photo op with PM Narendra Modi at SCO summit | विजय दर्डा का ब्लॉग: मोदीजी की मुस्कान चाहते थे जिनपिंग...!

मोदीजी की मुस्कान चाहते थे जिनपिंग...!

चीन ने चाल तो बड़ी धूर्ततापूर्ण चली थी लेकिन भारत को वह चकमा देने में सफल नहीं हो पाया. भारतीय कूटनीति के महारथियों ने उसकी चाहत पूरी नहीं होने दी. आप जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते थे कि शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुस्कुराते हुए कुछ तस्वीरें हो जाएं, कुछ वीडियो बन जाए. सवाल है, आखिर ऐसा क्यों?

इस क्यों वाले सवाल पर चर्चा से पहले यह जानना जरूरी है कि ये शंघाई सहयोग संगठन आखिर है क्या? पहले इस संगठन का नाम शंघाई-5 था और कजाकिस्तान, चीन, किर्गिजस्तान, रूस और ताजिकिस्तान इसके सदस्य थे. वर्ष 2001 में संगठन में उज्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद इसका नाम शंघाई सहयोग संगठन हो गया. 2017 में भारत और पाकिस्तान भी इसमें शामिल हो गए. 

इस संगठन के उद्देश्यों में शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के साथ ही शांति और सुरक्षा भी शामिल है लेकिन कमाल देखिए कि चीन ही दूसरों की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है.  

तो चलिए अब इस बात की पड़ताल करते हैं कि शंघाई सहयोग संगठन की इस बैठक में चीन की चाल क्या थी. आपको याद होगा कि डोकलाम में चीन के साथ लंबे अरसे तक तनातनी के बाद अचानक मामला सुलझ गया था. दरअसल उस समय चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन आयोजित किया था और वह चाहता था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस सम्मेलन में जरूर शामिल हों. ठीक वही चाल इस बार भी चीन ने चली. 15 और 16 सितंबर को समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक होने वाली थी और 9 सितंबर को अचानक खबर आई कि भारतीय और चीनी कमांडरों की बैठक में लद्दाख के पेट्रोल प्वाइंट 15 से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने को तैयार हो गई हैं. केवल तीन दिनों में सैनिकों के पीछे हटने की भी बात की गई. 

जरा सोचिए कि जो चीन दर्जनों बैठकों के बाद भी एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं था, वह अचानक कैसे तैयार हो गया? भारतीय कूटनीति के महारथियों को यह समझते देर न लगी कि यह भारत को अपने जाल में फंसाने की चीनी चाल है. उसने यह कदम इसलिए उठाया ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समरकंद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने को तैयार हो जाएं. दोनों की मुस्कुराती हुई तस्वीरें हो जाएंगी, वीडियो बन जाएंगे. फिर चीन दुनिया को दिखा पाएगा कि तमाम तरह के विवादों और तनाव के बावजूद भारत के साथ उसके संबंध ठीक ठाक हैं. 

चीन इस बात को लेकर लगातार परेशान रहा है कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान वाले संगठन क्वाड का भारत सदस्य क्यों है? चीन एक तरफ भारत को धमकाने की कोशिश भी करता है और दूसरी तरफ मुस्कुराहट भी बटोरना चाहता है ताकि भारत के नए दोस्तों को धोखा दिया जा सके.

दुनिया के मौजूदा हालात पर यदि आप नजर डालें तो एक बात स्पष्ट है कि चीन के प्रति पूरी दुनिया में नाराजगी बढ़ी है. ताइवान को लेकर अमेरिका के रुख में भी सख्ती दिखाई दे रही है. 

हकीकत यही है कि अपनी करतूतों से चीन खलनायक की भूमिका में पहुंच गया है. श्रीलंका और पाकिस्तान सहित 42 देशों को चीन ने अपने कर्ज के जाल में फंसा रखा है. कर्ज में फंसे देशों के संसाधनों पर वह कब्जा करता जा रहा है. इसके ठीक विपरीत नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की छवि दुनिया में चमक रही है. शक्तिमान देश बनने की सारी संभावनाएं भारत में मौजूद हैं. चीन इस बात को समझता है इसलिए वह भारत को धोखा देने की कोशिशें करता रहता है. उलझाने की कोशिशें करता रहता है. उसे पता है कि यह भारत 1962 का भारत नहीं है इसलिए हमला करने के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता...! धोखा ही उसके लिए माकूल रास्ता है...!

चीन की इस चाल को हमारे प्रधानमंत्री समझ गए इसलिए शी जिनपिंग के साथ मुलाकात की कोई संभावना बनी ही नहीं. चीन के अरमानों पर पानी फिर गया. इसके साथ ही मोदीजी ने मौजूदा वैश्विक समस्याओं को लेकर जो स्पष्टवादी रुख अपनाया उसकी चीन ने या यहां तक कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी कल्पना नहीं की थी. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज भी वहां थे लेकिन उनसे तो मिलने का दूर-दूर तक कहीं सवाल ही नहीं था. 

शंघाई सहयोग संगठन के इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने बड़े साफ शब्दों में पाकिस्तान और चीन की मुखर आलोचना तो की ही, पुतिन के साथ मुलाकात में उन्होंने साफ कहा कि यह युद्ध का समय नहीं है. जब यूक्रेन पर हमले को लेकर चीन पूरी तरह रूस के साथ है तब मोदीजी का यह स्पष्ट रुख पुतिन के लिए भी बड़ा संदेश है. दुनिया भर के मीडिया में मोदीजी के इस संदेश की चर्चा भी हो रही है. 

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पुतिन के साथ जब भी मोदीजी की मुलाकात हुई है तब दोनों नेता तपाक से मिले हैं. गले भी मिले हैं. इस बार बातें तो हुईं लेकिन गले नहीं मिले. क्या यह महज संयोग है या फिर भारत की कूटनीति कि उस राष्ट्रपति से गले मिलने से परहेज किया जाए जिसने एक छोटे से देश पर हमला कर रखा है!

बहरहाल, चीनी चाल विफल हो गई है तो चीन जरूर बौखलाया होगा. अगले धोखे की तैयारी कर रहा होगा. हमें सावधान रहने की जरूरत है.

Web Title: China President XI jinping was waiting for photo op with PM Narendra Modi at SCO summit

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