Naxal: नक्सलियों से क्यों बात करे सरकार?, पिछले 24 साल में 4000 आम नागरिक और 2500 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को मार डाला

By विकास मिश्रा | Updated: April 15, 2025 05:13 IST2025-04-15T05:13:33+5:302025-04-15T05:13:33+5:30

Chhattisgarh Naxal: नक्सली नेता रुपेश ने तेलुगू भाषा में पर्चा जारी किया है जिसमें कहा गया है कि वे शांति वार्ता चाहते हैं. वे पूरे देश में हिंसा को स्थाई रूप से रोक देंगे. मगर सवाल है कि सरकार इनसे बात क्यों करे?

Chhattisgarh Naxal Why should government talk Naxalites blog Vikas Mishra last 24 years more than 4000 civilians and 2500 security personnel killed | Naxal: नक्सलियों से क्यों बात करे सरकार?, पिछले 24 साल में 4000 आम नागरिक और 2500 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को मार डाला

सांकेतिक फोटो

Highlightsहाल के महीनों में बड़ी संख्या में उनके संगी साथी मारे गए हैं.नक्सलियों तक पहुंच पाएं जो संगठन में तानाशाही से परेशान हों.अधिकारियों की नियुक्तियां हुईं जो जंगलों में आम लोगों तक पहुंच बना पाएं,

Chhattisgarh Naxal: नक्सलवाद को लेकर सरकारी आंकड़े पर आप नजर डालेंगे तो पिछले 24 साल में कम से कम 4000 आम नागरिकों और 2500 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों को नक्सलियों ने मार डाला है. इन्होंने खुले रूप से सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रखा है लेकिन अब जब सरकार ने पूरी ताकत से प्रहार किया है तो इन्हें शांति की जरूरत महसूस होने लगी है. नक्सली नेता रुपेश ने तेलुगू भाषा में पर्चा जारी किया है जिसमें कहा गया है कि वे शांति वार्ता चाहते हैं. वे पूरे देश में हिंसा को स्थाई रूप से रोक देंगे. मगर सवाल है कि सरकार इनसे बात क्यों करे?

दरअसल नक्सलियों ने शांति वार्ता की यह पहल इसलिए की है क्योंकि हाल के महीनों में बड़ी संख्या में उनके संगी साथी मारे गए हैं. खुद नक्सली मान रहे हैं कि पिछले सवा साल में उनके 400 साथी मारे गए हैं. इसके साथ ही बहुत से नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का कहना है कि नक्सलबाड़ी में जन्मा किसान आंदोलन अब कहीं से भी आंदोलन नहीं रह गया है बल्कि गिरोह के रूप में परिवर्तित हो गया है. सरकार भी यह मानती रही है मगर आदिवासियों को इन नक्सलियों ने इस कदर अपनी ढाल बना रखा था कि सरकार सख्ती करने से पहले कई बार सोचने को मजबूर हो रही थी.

बंगाल से लेकर तेलंगाना तक एक रेड कॉरिडोर इन नक्सलियों ने बना लिया था. छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और तेलंगाना में तो इतने ताकतवर हो गए थे कि विकास का कोई काम होने ही नहीं दे रहे थे. इनका खौफ इतना था कि उद्योगों की स्थापना की बात तो दूर, सड़कें भी नहीं बन पाती थीं. समस्या की गंभीरता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि सड़कें भी सुरक्षाकर्मियों की देखरेख में ही बन पाती थीं लेकिन ये सड़कें भी नक्सली उड़ा देते थे. धीरे-धीरे आम नागरिकों को भी समझ में आने लगा कि ये नक्सली उनके हक के लिए नहीं लड़ रहे हैं बल्कि उनका मकसद कुछ और ही है.

लोगों का मोहभंग हो रहा था लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इस कुचक्र से निकलें कैसें. इसी बीच जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो इस समस्या को जड़ से समाप्त करने की जिम्मेदारी गृह मंत्री अमित शाह को सौंपी गई. उन्होंने प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भरोसे में लिया और नक्सली इलाके में ऐसे अधिकारियों की नियुक्तियां हुईं जो जंगलों में आम लोगों तक पहुंच बना पाएं,

उन नक्सलियों तक पहुंच पाएं जो संगठन में तानाशाही से परेशान हों. इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया गया कि नक्सलियों को पैसा कहां से मिल रहा है. एक आकलन है कि नक्सली हर साल ठेकेदारों और उद्योगपतियों से करीब डेढ़ हजार करोड़ रुपए की वसूली करते हैं. आशंका यह भी रही है कि इनके संबंध माओवादी विचारधारा से जुड़े उग्रवादी संगठनों से भी रहे हैं और वहां से भी विदेशी फंडिंग हो रही थी.

धन के इस प्रवाह की नकेल कसी गई. पैसे की कमी का सीधा असर हथियारों की आपूर्ति पर पड़ा. नक्सलियों की कमर तोड़ने की इस योजना को बिना किसी हो-हल्ले के क्रियान्वित किया गया. बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी आई. लोगों को लगने लगा कि सरकार उनके लिए काम कर रही है.  केंद्र और राज्य सरकारों के बीच गजब का समन्वय हुआ और उसका प्रतिफल अब देखने को मिल रहा है.

अधिकृत आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2018 में देश के 126 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे जो अप्रैल 2024 में घट कर केवल 38 रह गए. अब यह संख्या केवल 20 रह गई है. यदि नक्सलियों की सबसे अधिक हिंसा वाले जिलों की बात करें तो इनकी संख्या 12 से घटकर केवल 6 रह गई है. जिसमें छत्तीसगढ़ के चार जिले बीजापुर, कांकेर, नारायणपुर और सुकमा, झारखंड का एक पश्चिमी सिंहभूम और महाराष्ट्र का गढ़चिरोली शामिल है. गढ़चिरोली के विकास की जिम्मेदारी तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुद ली है!

दूसरे राज्यों में भी प्रमुख मंत्रियों को विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई है. यदि हम हिंसा की घटनाओं पर नजर डालें तो वर्ष 2010 में नक्सलियों ने हिंसा की 1936 वारदातें की थीं जो 2024 में घटकर 374 रह गईं. यानी 81 प्रतिशत की कमी आई. आम लोगों तक सरकार की पहुंच और भटके हुए युवाओं तक बात पहुंचाने का ही नतीजा है कि पिछले 10 वर्षों में 8 हजार से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली ही सुरक्षाकर्मियों को बता रहे हैं कि नक्सलियों को किस तरह मात दी जा सकती है. और सचमुच हमारे सुरक्षा बल अब नक्सलियों को नेस्तनाबूद करने की योजना क्रियान्वयन के अंतिम चरण में हैं.

छत्तीसगढ़ का अंतिम नक्सली किला भी ढहने को है तो नक्सली नेता रुपेश का शांति प्रस्ताव निश्चित रूप से एक छलावा है. बंदूक हाथ में लेकर कोई शांति वार्ता की बात कैसे कर सकता है. दरअसल नक्सली चाहते हैं कि शांति वार्ता के नाम पर उन्हें थोड़ा वक्त मिल जाए ताकि वे अपनी टूटी हुई कमर ठीक कर सकें और नए सिरे से आतंक फैला सकें.

उनकी चालाकी इस बार काम नहीं आने वाली है. गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद की मौत की तारीख मुकर्रर कर दी है. अब नक्सलियों के सामने दो ही रास्ते हैं. या तो तत्काल समर्पण करें या फिर नक्सलवाद की कब्र में दफन हो जाएं!

Web Title: Chhattisgarh Naxal Why should government talk Naxalites blog Vikas Mishra last 24 years more than 4000 civilians and 2500 security personnel killed

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