विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनतंत्न में उदारवादियों के सामने चुनौती 

By विश्वनाथ सचदेव | Published: January 3, 2019 03:55 PM2019-01-03T15:55:04+5:302019-01-03T15:55:04+5:30

सन 2018 में जारी की गई पियू की इस रिपोर्ट के अनुसार सन 2017 में 55 प्रतिशत अर्थात् आधे से अधिक भारतीयों ने ऐसी शासन व्यवस्था को पसंद किया था जिसका ताकतवर नेता संसद अथवा अदालतों के हस्तक्षेप के बिना निर्णय ले सके.

challenge to liberals in democracy and bjp narendra modi | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनतंत्न में उदारवादियों के सामने चुनौती 

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: जनतंत्न में उदारवादियों के सामने चुनौती 

हाल ही में आए पांच राज्यों के चुनाव-परिणामों से भाजपा को थोड़ा धक्का अवश्य लगा है और पार्टी का नेतृत्व जनमत के बदलते रूप से स्वाभाविक रूप से चिंतित है, पर पार्टी इस बात पर संतुष्टि अनुभव कर सकती है कि प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई है. 

लगभग छह-सात महीने पहले अमेरिका की एक विश्वसनीय मानी जाने वाली संस्था पियू  द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी. पांच राज्यों में चुनाव इस सर्वेक्षण के बाद के हैं, लेकिन इन परिणामों के आधार पर भाजपा को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता. यह एक स्थापित तथ्य है कि देश में भाजपा के बढ़े हुए समर्थन का एक बड़ा कारण नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता भी थी और अमेरिकी संस्था का सर्वेक्षण भाजपा के लिए कुल मिलाकर भरोसा देने वाला ही है. लेकिन जनतंत्न में विश्वास रखने वालों के लिए इस सर्वेक्षण में कुछ ऐसी बातें भी हैं जो चिंता का कारण होनी चाहिए. 

इसमें सबसे प्रमुख तथ्य यह है कि भारत की जनता का भरोसा आज भी किसी ताकतवर हस्ती में है. वैसे भी व्यक्ति पूजा हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है, लेकिन जनतंत्न में व्यवस्था के बजाय व्यक्ति में इस तरह का विश्वास होना बहुत अच्छी बात नहीं है. निश्चित रूप से किसी भी राजनीतिक दल में नेतृत्व की विशिष्ट भूमिका होती है, लेकिन किसी व्यक्ति विशेष में बढ़ता विश्वास कुल मिलाकर जनतंत्न के लिए बहुत अच्छी बात नहीं मानी जा सकती. व्यक्ति जब राजनीतिक दल या विचारधारा से बड़ा बन जाता है तो इसका अर्थ जनतांत्रिक मूल्यों का कमजोर होना ही माना जाना चाहिए.    

बहरहाल सन 2018 में जारी की गई पियू की इस रिपोर्ट के अनुसार सन 2017 में 55 प्रतिशत अर्थात् आधे से अधिक भारतीयों ने ऐसी शासन व्यवस्था को पसंद किया था जिसका ताकतवर नेता संसद अथवा अदालतों के हस्तक्षेप के बिना निर्णय ले सके. इसका अर्थ यह है कि आधे से अधिक भारतीय यह मानते हैं कि संसद और अदालतें विकास की गति को रोक रही हैं अथवा धीमा कर रही हैं. 

यह सही है कि जो संसदीय प्रणाली हमने अपनाई है, उसमें विकास की गति धीमी होती है, निर्णय लेने में देरी होती है, सत्तारूढ़ दल अथवा व्यक्ति को सत्ता में बने रहने के लिए कुछ अथवा कई समझौते भी करने पड़ते हैं. लेकिन इसके बजाय किसी एक ताकतवर व्यक्ति के हाथों में शासन तंत्न का होना किसी भी दृष्टि से जनतांत्रिक मूल्यों-आदर्शो के अनुरूप नहीं हो सकता.

पियू  के इस सर्वेक्षण में कुछ और बातें भी उभर कर आई हैं जिन पर गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है. इस रिपोर्ट के अनुसार 53 प्रतिशत भारतीयों ने सैनिक सत्ता में विश्वास प्रकट किया है. यह सचमुच चिंता की बात है कि इस विश्वव्यापी सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि अन्य किसी भी देश की तुलना में भारत में निरंकुश शासन को अधिक पसंद किया गया है. 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दो-तिहाई भारतीय यह मानते हैं कि देश में शासन चलाने का बेहतर तरीका विशेषज्ञों के हाथ में सत्ता सौंपना होगा. पियू  के इस सर्वेक्षण में यह जानने की कोशिश की गई थी कि ताकतवर व्यक्ति की सत्ता, सैनिक शासन और विशेषज्ञों के शासन में विश्वास जताने वाले लोग, किस राजनीतिक विचारधारा या पार्टी के साथ जुड़े हैं और सर्वेक्षण के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर है - भाजपा.  

आज देश में अधिकांश राज्यों में और केंद्र में भाजपा का शासन है. यह सही है कि भाजपा को यह सफलता मात्न 31 प्रतिशत वोटों के आधार पर मिली थी, लेकिन इससे इतना तो पता चल ही जाता है कि जनता का रुझान किस तरफ है. जनतांत्रिक व्यवस्था और मूल्यों में विश्वास करने वालों का इस रुझान पर चिंतित होना स्वाभाविक है. 

चिंता की बात यह नहीं है कि कोई एक व्यक्ति देश में सर्वाधिक ताकतवर बन रहा है, और चिंता इस बात की भी नहीं होनी चाहिए कि कोई दल विशेष किसी और बड़े दल से देश को विहीन करना चाहता है. आज एक दल सत्ता में है कल दूसरा हो सकता है. वस्तुत: चिंता इस बात की होनी चाहिए कि देश में जनतंत्न विरोधी सोच पनप रही है. 

ऐसा नहीं है कि यह प्रवृत्ति सिर्फ हमारे भारत में ही है. अमेरिका, रूस, ब्राजील जैसे देशों में भी इस सोच के बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं. यह स्थिति वस्तुत: कट्टरवाद के पनपने की है. उदार सोच के व्यक्तियों को इस बात पर चिंतित होना चाहिए कि यह प्रवृत्ति आखिर क्यों बढ़ रही है?  

जिस जनतांत्रिक व्यवस्था को हमने अपने देश के लिए अपनाया है, उसे सबसे कम खामियों वाली शासन व्यवस्था माना गया है. अपनी सारी कमियों के बावजूद जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए, यह शासन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें किसी एक व्यक्ति अथवा सोच के डंडे से जनसामान्य को हांका नहीं जाता. ऐसे में आज जो चुनौती उदारवादियों के सामने है वह यह सिद्ध करने की है कि जनतंत्न आज भी विकास की सर्वाधिक कारगर व्यवस्था है. सामूहिक विवेक में विश्वास ही जनतंत्न का आधार और उसकी ताकत है. आवश्यकता इस विवेक को जागृत रखने की है. इसमें भरोसा रखने की है.

Web Title: challenge to liberals in democracy and bjp narendra modi

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