लाइव न्यूज़ :

इरिणा लोक यायावरी का ‘डबल डोज’, जगहों की पुकार गूगल गुरु की पहुंच से परे

By सतीश कुमार सिंह | Updated: December 9, 2019 17:03 IST

किताब में चर्चा करते हुए कहा कि बांबे की भागाभागी, महू की मुंहजोरी-बेबाकी, इंदौर की चटोरी जुबान, बनारस में पंडों के तीखे बयान, कलकत्ते का दोपहर में सोना और दिल्ली में ठगी को होना, सब ठहरे इन जगहों का स्थायी भाव।

Open in App
ठळक मुद्देजिक्र किया है कि कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में और हम बौडम फंस गए। बीहड़पन में अपना एक खिंचाव होता है। एक तर कर देने वाला आकर्षण। निरखो तो तरावट जिगर में भी महसूस हो, नजर में भी।

इरिणा लोक एक यात्रा वृत्तांत है। अलग तरह का सफरनामा है। डॉक्टर अजय सोडानी का मन रमण में रमता है। पत्नी के साथ घूमते रहते हैं। देश भर में घूमते रहते हैं। ऐसे जगह पर जहां गूगल गुरु भी नहीं पहुंच पाए। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली से न्यूरोलॉजी विषय में दीक्षित अजय सोडानी वर्तमान में सेम्स मेडिकल कॉलेज, इन्दौर के तंत्रिका-तंत्र विभाग में प्रोफेसर हैं।

यात्रा वृत्तांत का एक गुण यह भी होता है। लिखने वाला हमें उसमें अपने साथ लेकर चलने लगता है। वह खुद भी सफर का साथी बन जाता है और हमें भी अपना साथी बनाता चलता है। कभी हमारे गाइड की तरह, कभी रोचक कहानी सुनाने वाले सफर में साथ चलने वाले किसी सहयात्री की तरह। रहस्य-रोमांच से भरपूर। यह रोमांचक यात्रा लेखक ने पत्नी के साथ की है। 

यात्रा साहित्य में यात्री अपने यात्रा के प्रत्येक स्थल और क्षेत्रों में से उन्हीं क्षेत्रों का संयोजन करता है जिनको वह अद्भुत सत्य के रूप में ग्रहण करता है। बाहरी जगत की प्रतिक्रिया से उसके हृदय में जो भावनाएं उमड़ती है, वह उन्हें अपनी संपूर्ण चेतना के साथ अभिव्यक्त कर देता है।

हिमालय की ना-नुकुर से आजिज़ आ, हमने चम्बल के बीहड़ों में जाने का मन बनाया। जानकारियां जुट गईं, तैयारियाँ मुकम्मल हुईं। किन्तु घर से निकलने के ठीक पहले अनदेखे ‘रन’ का धुँधला-सा अक्स ज़ेहन में उभरा और मैं वशीभूत-सा चल दिया गुजरात की ओर। किसे खबर थी कि यह दिशा परिवर्तन अप्रत्याशित नहीं वरन् सरस्वती नदी की पुकार के चलते है, कि यह असल में ‘धूमधारकांडी’ अभियान की अनुपूरक यात्रा ही है। तो साहेब लोगो, आगे के सफहों पर दर्ज हर हर्फ दरअसल गवाह है उस परानुभूति का जिसके असर में मुझे शब्दों में मंज़र और मंज़रों में शब्द नज़र आए। या यूँ कहूँ कि प्रचलित किसी शब्द में इतिहास या परिपाटी में समूचा कालखंड अनुभूत हुआ। यानी कि यह किताब यायावरी का ‘डबल डोज़’ है।

जगहों की पुकार गूगल गुरु की पहुंच से परे। गूगल मैप के अनुगमन से रास्ते तय होते हैं, जगहें मिलती हैं पर क्या उनसे राबता हो पाता है? जब चित्त संघर्ष, त्याग, आत्मा का अनुगामी हो जाए तब हासिल होती है आलम-ए-बेखुदी। जाग्रत होती हैं सुषुप्त स्मृतियां। खेंचने लगती हैं जगहें। घटित होता है असल रमण। अगस्त दो हज़ार दस में, ऐसी ही आलम-ए-बेखुदी में, हम पहुँचे थे हिमालय में—सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर। परन्तु आन्तरिक जगत् में चपल चित्त अधिक ठहर थोड़े ही सकता है, सो बेखुदी के वे आलम भी अल्पकालिक ही होते हैं। इस वर्ष भी वही हुआ।

उनका प्रबल विश्वास है कि इतिहास की पोथियों से गुम देश की आत्मा दन्तकथाओं एवं जनश्रुतियों में बसती है। लोककथाओं से वाबस्ता सौंधी महक से मदहोश अजय अपनी जीवन-संगिनी के संग देश के दूर-दराज़ इलाकों में भटका करते हैं। बहुधा पैदल। यदा-कदा सड़क मार्ग से। पुस्तक का प्रकाशन ‘सार्थक’ सीरीज के अंतर्गत किया है, जो राजकमल प्रकाशन का एक उपक्रम है पाठकों से सीधे जुड़ने का।

अक्सर बीहड़, जंगल तथा नक्शों पर ढूंढे नहीं मिलने वाली मानव बस्तियों में। उनको तलाश है विकास के जलजले से अनछुए लोकों में पुरा-कथाओं के चिह्नों की। इसी गरज के चलते वे तकरीबन दो दशकों से साल-दर-साल हिमालय के दुर्गम स्थानों की यात्राएं कर रहे हैं। अब तक प्रकाशित : एक कथा संग्रह अवाक् आतंकवादी; दो यात्रा-आख्यान दर्रा-दर्रा हिमालय व दरकते हिमालय पर दर-ब-दर; मिर्गी रोग को लेकर एक लम्बी कहानी टेक मी आऊट फॉर डिनर टु नाइट।

गुजरात में स्थित कच्छ के रण का सजीव वर्णन किया गया है। लेखक अजय सोडानी ने अपने इस यात्रा-वृतांत में कच्छ के बारे में कई ऐसे अनछुए तथ्यों का उल्लेख किया है, जिनके बारे में आम लोगों को बहुत कम सूचनाएं उपलब्ध हैं। किताब में कच्छ के लोक जीवन, भौतिक उपलब्धियों, लोगों के रहन-सहन और खानपान से लेकर कला और संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक ने केवल शहरों पर ही नहीं लिखा है, बल्कि वह सुदूर स्थित गांवों के सुख-दुख से भी संवाद करता हुआ नजर आता है।

कुछ किताब के अंश पढ़िए

किताब में चर्चा करते हुए कहा कि "बांबे की भागाभागी, महू की मुंहजोरी-बेबाकी, इंदौर की चटोरी जुबान, बनारस में पंडों के तीखे बयान, कलकत्ते का दोपहर में सोना और दिल्ली में ठगी को होना, सब ठहरे इन जगहों का स्थायी भाव। किताब के जरिए देश के बारे में अहम जानकारी पेश की है। जिक्र किया है कि कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में और हम बौडम फंस गए। हाल यह है कि बाय पास पर चलने में भी पसीने निकल जाते हैं, जो शहर में घुस जाएं तो बाहर निकलने में हमारा मलीदा बनना तय जानिए। पैदल चलने वालों के तो हाल ही मत पूछिए, पैर सड़क पर तो जान हथेली पर।"

जिक्र करते हुए लिखा है कि "इस बीहड़पन में अपना एक खिंचाव होता है। एक तर कर देने वाला आकर्षण। निरखो तो तरावट जिगर में भी महसूस हो, नजर में भी। सर पर मटकी, कमर पर गगरी। बलखाती पनिहारिन को देख हिया में जो हिलोर होए वो नलके से जल भरती आतिशी बाला को देख थोड़े ही होती है। रस शोधक विकास यंत्र में इसकी पिराई हो चुकी, इधर की वसुधा अब रसहीन है।"

"जगजीत सिंह की रेशमी आवाज कार में गूंजने लगी। ...भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी। लगा कार पर सिवराहट की आत्मा सवार हो गई, मरे मानुस की सुन मत लीजो प्रभु जी। वरना हमारी यात्रा तो यहीं फुस्स, शुक्र है भगवान ने जिंदों की सुनी। सीडी अटक गई, सिवराहट कार से बाहर।"

"बोले तो बजूकाओं से मेरा पुराना राबता है, लगे मानो झांकती हो पुरानी तस्वीर कोई, दराज में बरसों से बिछे पेपर के नीचे से। जाने कैसा कैसा होने लगता है इन्हें देखते ही। इनके पास पहुंचते ही कान घनघनाते लगते हैं। मुझे सुन पड़ती है-कहीं से आती एक आवाज-वॉकी-टॉकी पर कोई कुछ कहता हो जैसे। मानो कोई पुकारता हो मुझे, मेरे ही भीतर से! जब से रह गुजर के गिर्द चन्द्र बिजूका नजर आने लगे हैं, अंतस-स्वर तेज से तेजतर होता जाता है। कुछ वक्त लगा बूझने में कि यह पुकार उन स्मृति द्वीपों से उठ रही है-बिजूकाओं के पूर्वजों की बस्तियां हैं जहां। इन आवाजों से बचना मुश्किल। थमने के इसरार को नजरअन्दाज करना गौर मुनासिब। वैसे भी इस सफ़र का मकसद ही स्मृति-द्वीपों की तलाश हैं, बाहर से भीतर की राह ढूंढना है। सो थमा।"

संस्कृति की लीक पर उल्टा चलूं तो शायद वहां पहुंच सकूं जहां भारतीय जनस्मृतियां नालबद्ध हैं। वांछित लीक के दरस हुए दन्तकथाओं तथा पुराकथाओं में और आगाज़ हुआ हिमालय में घुमक्कड़ी का। स्मृतियों की पुकार ऐसी ही होती है। नि:शब्द। बस एक अदृश्य-अबूझ खेंच, अनिर्वचनीय कर्षण। और चल पड़ता है यायावर वशीभूत...दीठबन्द...।

किताब : इरिणा लोक

लेखक : अजय सोडानी

प्रकाशन : सार्थक (राजकमल प्रकाशन का एक उपक्रम)

टॅग्स :पुस्तक समीक्षागुजरातमध्य प्रदेशमुंबई
Open in App

संबंधित खबरें

भारत2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, 2025 तक नेता प्रतिपक्ष नियुक्त नहीं?, उद्धव ठाकरे ने कहा-प्रचंड बहुमत होने के बावजूद क्यों डर रही है सरकार?

भारतIndiGo Crisis: इंडिगो ने 5वें दिन की सैकड़ों उड़ानें की रद्द, दिल्ली-मुंबई समेत कई शहरों में हवाई यात्रा प्रभावित

ज़रा हटकेVIDEO: AAP विधायक गोपाल इटालिया पर जूता फेंका, देखें वायरल वीडियो

भारतBhavnagar Complex Fire: आग ने कई अस्पतालों को अपनी चपेट में लिया, चादरों में लिपटे बच्चों को खिड़कियों से बचाया गया, देखें भयावह वीडियो

भारतGujarat: भावनगर में पैथोलॉजी लैब में भीषण आग, बुजुर्गों और बच्चों को बचाने का रेस्क्यू जारी; दमकल की टीमें मौजूद

भारत अधिक खबरें

भारतकथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा जयपुर में बने जीवनसाथी, देखें वीडियो

भारतजीवन रक्षक प्रणाली पर ‘इंडिया’ गठबंधन?, उमर अब्दुल्ला बोले-‘आईसीयू’ में जाने का खतरा, भाजपा की 24 घंटे चलने वाली चुनावी मशीन से मुकाबला करने में फेल

भारतजमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मानित, सीएम नीतीश कुमार ने सदस्यता अभियान की शुरुआत की

भारतसिरसा जिलाः गांवों और शहरों में पर्याप्त एवं सुरक्षित पेयजल, जानिए खासियत

भारतउत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोगः 15 विषय और 7466 पद, दिसंबर 2025 और जनवरी 2026 में सहायक अध्यापक परीक्षा, देखिए डेटशीट