ब्लॉग: शांतिनिकेतन ने सिखाया था अनुशासन

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 31, 2023 10:35 AM2023-10-31T10:35:51+5:302023-10-31T10:41:20+5:30

जवाहरलाल नेहरू साल 1934 में कमला नेहरू के साथ शांतिनिकेतन पहुंचे। वहां उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की देखरेख में चल रहे इस स्कूल को देखा और निश्चय किया कि बेटी इंदिरा की शिक्षा और संस्कार के लिए शांतिनिकेतन से अच्छा कोई स्कूल नहीं है।

Blog: Shantiniketan taught discipline | ब्लॉग: शांतिनिकेतन ने सिखाया था अनुशासन

फाइल फोटो

Highlightsजवाहरलाल नेहरू साल 1934 में कमला नेहरू के साथ शांतिनिकेतन पहुंचे थेउन्होंने तय किया कि इंदिरा की शिक्षा के लिए शांतिनिकेतन से अच्छा कोई स्कूल नहीं हो सकता हैउससे पहले इंदिरा गांधी पूना के प्यूपिल स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं

यह 1934 की बात है। जवाहरलालजी श्रीमती कमला नेहरू को साथ लेकर शांतिनिकेतन पहुंचे। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की देखरेख में चल रहे इस स्कूल को देखकर ही उन्होंने निश्चय किया कि बेटी को सही शिक्षा और संस्कार देने के लिए शांतिनिकेतन से अच्छा कोई स्कूल नहीं है।

इससे पूर्व इंदिरा पूना (वर्तमान पुणे) के प्यूपिल स्कूल में पढ़ी थीं। परिवार में बहुत विचार-विमर्श हुआ। कारण यह था कि इंदिरा बचपन से ही बड़े लाड़-प्यार में पली और बड़ी हुई थीं। शांतिनिकेतन में जीवन बड़ा कठोर था। वहां बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होने की, स्वावलंबन पर जीने की शिक्षा दी जाती थी।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पूरी तरह भारतीय वातावरण में इस स्कूल को प्रारंभ किया था। वहां बिल्कुल गुरुकलों जैसा जीवन था। इंदिरा के परिवार वाले सोच रहे थे कि इंदिरा वहां का कठोर जीवन किस तरह जी पाएंगी? पर अंत में जवाहरलालजी की इच्छा ही पूरी हुई।

स्वयं इंदिरा गांधी ने भी पढ़ने के लिए शांतिनिकेतन को पसंद किया. पिता की तरह वह भी चाहती थीं कि जीवन की कठोरताओं का सामना करना आना ही चाहिए। इस जीवन में मनुष्य को बहुत बुरे-भले दिन देखने पड़ते हैं, इसलिए उसे चाहिए कि वह हर हालात का मुकाबला करने के लिए अपने आपको तैयार रखे।

इंदिरा 1934 में शांतिनिकेतन पहुंचीं। वहां न तो नौकर-चाकर थे, न ही कोई खोज खबर लेनेवाला। वहां का जीवन कठोर था। स्वयं को नियमपूर्वक चलाना था। वहां का अनुशासन बड़ा कड़ा था। आरामपरस्ती तोड़ने वाले बहुतेक नियम थे वहां, जिन कमरों में छात्र-छात्राएं रहते थे, वहां कितनी भी गरमी क्यों न हो, पंखे नहीं लगते थे।

सारी पढ़ाई लालटेन की रोशनी में होती थी। हर सुबह स्नान के समय अपने-अपने कपड़े छात्र धोएं, यही नियम था। रसोई से लेकर हर काम में छात्र ही जुटते। उनकी ड्यूटी लगती रहती थी। पर सबके बीच स्नेह था। सब एक-दूसरे से गहरा प्रेम करते थे। मातृभूमि के प्रति लगाव वाली रचनाएं पढ़ाई-सुनाई जाती थीं। देश की आजादी का पाठ मिलता था।

दुबली-पतली इंदिरा ने शांतिनिकेतन के उस नियमबद्ध जीवन के साथ अपने आपको ढालना प्रारंभ किया और कुछ ही दिनों में वह वहां की सभी छात्राओं में सबसे आगे मानी जाने लगीं। उन्होंने शिक्षक-शिक्षिकाओं से गहरा स्नेह कमा लिया। सब उन्हें पसंद करने लगे। सब उनके नाजुक, सुकुमार शरीर के बावजूद समझ गए कि लड़की में कठोरता और साहस भी अद्भुत है।

स्वयं इंदिरा गांधी ने शांतिनिकेतन के उस जीवन काल को लेकर कई बार बाद के जीवन में कहा, ‘मैंने वहीं भारत को देखा, सीखा, उसको समझा और महसूस किया...’

Web Title: Blog: Shantiniketan taught discipline

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