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ब्लॉग: जल-जमीन-जन के लिए खतरा बन रहे कीटनाशक

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: August 24, 2023 09:22 IST

खेती-किसानी में रसायन के इस्तेमाल से किसानों को सांस की बीमारी, कैंसर हो रहा है। यह बात हाल ही में प्रबंधन अध्ययन अकादमी, लखनऊ और हैदराबाद द्वारा हिमाचल प्रदेश में 22 विकास खंडों के किसानों पर हुए सर्वेक्षण से सामने आई है।

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ठळक मुद्देखेती-किसानी में रसायन के इस्तेमाल से किसानों को सांस की बीमारी, कैंसर हो रहा हैयह जानकारी प्रबंधन अध्ययन अकादमी द्वारा हिमाचल प्रदेश के किसानों पर हुए सर्वे में सामने आई हैखेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने वाले 16 फीसदी किसान कैंसर का शिकार हो जाते हैं

खेती-किसानी में रसायन के इस्तेमाल से किसानों को सांस की बीमारी, कैंसर हो रहा है। यह बात हाल ही में प्रबंधन अध्ययन अकादमी, लखनऊ और हैदराबाद द्वारा हिमाचल प्रदेश में 22 विकास खंडों के किसानों पर हुए सर्वेक्षण से सामने आई है। सामने आया कि कीटनाशक इस्तेमाल करने वाले 16 फीसदी किसान कैंसर का शिकार हो जाते हैं।

40 फीसदी किसानों को सिरदर्द और 39 प्रतिशत को उल्टी की शिकायत रहती है। यदि विभिन्न राज्यों के बीते एक महीने के आंचलिक समाचारों पर नजर डालें तो देश के अलग-अलग हिस्सों में कम-से-कम 50 ऐसे मामले सामने आए जब खेतों में छिड़कने वाली दवा किसान की सांस के जरिये शरीर में पहुंची और उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा।

बदलते मौसम में खेती बहुत चुनौती वाला काम है। कम समय में अधिक फसल की चाहत के कारण किसान बीज बाजार से खरीद रहा है और छुपे नाम से बेचे जा रहे  मोडिफाइड बीजों में अलग किस्म के कीटों के भय को देखते हुए किसान समय से पहले और बेशुमार कीड़ा-मार दवा डाल रहा है।

ये छिड़काव के लिए चीन में बने ऐसे पंप का इस्तेमाल करते हैं, जिनकी कीमत कम और गति ज्यादा होती है। किसान नंगे बदन खेत में काम करते हैं, न दस्ताने, न ही नाक-मुंह ढंकने की व्यवस्था। तिस पर तेज गति से छिड़काव वाला चीन निर्मित पंप। दवा का जहर किसानों के शरीर  में गहरे तक समाता है। कई की आंखों पर असर होता है तो कई को त्वचारोग, जिस पर किसान तत्काल ध्यान नहीं देता।

हमारे देश में हर साल कोई दस हजार करोड़ रुपए की फसल खेत या भंडार-गृहों में कीड़ों के कारण नष्ट हो जाती है। इस बर्बादी से बचने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा है। सन्‌ 1950 में देश में जहां 2000 टन कीटनाशक की खपत थी वहीं अब ये बढ़कर 90 हजार टन पर पहुंच गई है।

60 के दशक में देश में जहां 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव होता था वहीं अब 1.5 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है। इसका परिणाम यह है कि भारत में पैदा होने वाले अनाज, सब्जी, फलों व दूसरे कृषि उत्पादों में कीटनाशक की मात्रा तय सीमा से ज्यादा पाई गई है।

ये कीटनाशक जाने-अनजाने में पानी, मिट्टी, हवा, जन-स्वास्थ्य और जैव विविधता को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। इनके अंधाधुंध इस्तेमाल से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है, सो अनेक कीट व्याधियां फिर से सिर उठा रही हैं। कई कीटनाशियों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ गई है और वे दवाओं को हजम कर रहे हैं। इसका असर खाद्य श्रृंखला पर पड़ रहा है और उनमें दवाओं व रसायनों की मात्रा खतरनाक स्तर पर आ गई है।

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