ब्लॉग :गंभीर समस्याओं और चुनौतियों से जूझती हमारी रेल सेवा
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: September 24, 2024 10:04 IST2024-09-24T10:03:22+5:302024-09-24T10:04:19+5:30
ऐसा भी महसूस होने लगा है कि ट्रेनों को समय पर चलाने की बुनियादी जरूरत की उपेक्षा हो रही है. इस वक्त आठ हजार किमी लंबी रेल पटरियों का रख-रखाव नहीं हो पा रहा क्योंकि रेलवे के पास पर्याप्त मानव संसाधन नहीं है.

भारतीय रेलवे इन दिनों गंभीर समस्या से जूझ रही है
भारतीय रेलवे इन दिनों गंभीर समस्या से जूझ रही है. इससे रेलवे की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं और ट्रेन से सफर करने वाले लाखों यात्री बुरी तरह परेशान हो रहे हैं. रेलवे पटरियों पर आए दिन कोई न कोई भारी सामान मिलने तथा फिश प्लेटें उखड़ी हुई दिखने से यह संदेह पैदा होने लगा है कि आतंकवादी किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने की फिराक में तो नहीं हैं. दूसरी ओर देश के सभी हिस्सों में ट्रेन सेवाएं बुरी तरह लड़खड़ा गई हैं.
आप कोई कार्यक्रम निर्धारित कर ट्रेन में यात्रा कर नहीं सकते क्योंकि समय पर आपके गंतव्य तक ट्रेन के पहुंचने की कोई गारंटी नहीं है. भारतीय रेल सेवा किसी वक्त लेटलतीफी के लिए कुख्यात थी. लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक में ट्रेनों के परिचालन में काफी सुधार हुआ तथा महत्वपूर्ण ट्रेनों के समय पर पहुंचने का लक्ष्य 97 प्रतिशत तक हासिल होने लगा था. मधु दंडवते, माधवराव सिंधिया, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, राम नाईक, लालू प्रसाद यादव, सुरेश प्रभु और पीयूष गोयल के दौर में नई ट्रेनें भी चलीं, रेल लाइनों का विस्तार भी हुआ और ट्रेनों की समयबद्धता बनी रही. पिछले चार वर्षों से लगता है सारी व्यवस्था ही गड़बड़ा गई है.
ट्रेनों में यात्रियों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लग रहे हैं, ट्रेनों के आवागमन का समय बेहद अनिश्चित हो गया है तथा छोटी-बड़ी रेल दुर्घटनाओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. मोदी सरकार इस बात का पूरा प्रयास कर रही है कि भारतीय रेलवे गति तथा आधुनिक सुविधाओं के मामले में विकसित देशों की रेलसेवा की बराबरी कर ले. ‘वंदे भारत’ भारतीय रेलवे में गति तथा सुविधाओं के मामले में नए युग की शुरुआत है. अहमदाबाद तथा मुंबई के बीच बुलेट ट्रेन चलने का सपना भी जल्दी ही साकार होने जा रहा है. देशभर में छोटी लाइनों को बड़ी लाइनों में बदलने का काम लगभग पूरा हो गया है. ट्रेन दुर्घटना होने पर रेल यातायात को बाधित न होने देने के लिए महत्वपूर्ण रेलखंडों पर अतिरिक्त लाइनें बिछाई जा रही हैं.
इन सबके बावजूद ऐसा भी महसूस होने लगा है कि ट्रेनों को समय पर चलाने की बुनियादी जरूरत की उपेक्षा हो रही है. इस वक्त आठ हजार किमी लंबी रेल पटरियों का रख-रखाव नहीं हो पा रहा क्योंकि रेलवे के पास पर्याप्त मानव संसाधन नहीं है. ट्रेनों की लेटलतीफी से यात्री जिस तरह परेशान हैं, उससे यह धारणा और मजबूत हो रही है कि ट्रेनों को समय पर चलाने के लिए किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई है. किसी दौर में यह जवाबदेही मंडल रेल प्रबंधकों की तय की गई थी और उनसे रेलवे बोर्ड तथा रेल मंत्रालय जवाब मांगता था. अब लगता है कि जवाबदेही का जमाना इतिहास के पन्नों में गुम हो गया. हमारी रेल सेवा पिछले कुछ महीनों से आतंकवादी साजिश की आशंका से भी जूझ रही है. देश के विभिन्न हिस्सों में रेल पटरियों में कहीं बिजली के खंभे, कहीं बड़े-बड़े पत्थर, कहीं सिलेंडर मिल रहे हैं तो कहीं विस्फोटक हाथ लगे हैं.
आतंकवाद अब देश में दम तोड़ने लगा है. राष्ट्रविरोधी ताकतें देश में अस्थिरता तथा अशांति फैलाने के लिए तरह-तरह की साजिशें आज भी रच रही हैं. लेकिन उनके मंसूबे नाकाम हो रहे हैं. पिछले दो महीनों में विभिन्न राज्यों में रेलवे पटरियों पर बड़ी दुर्घटनाओं को अंजाम देने में सक्षम वस्तुएं मिलने से संदेह होने लगा है कि आतंकवादी ट्रेनों को निशाना बनाने की साजिश तो नहीं रच रहे हैं. हमारा रेलवे नेटवर्क दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक है. इतने विशाल नेटवर्क का रखरखाव किसी चुनौती से कम नहीं है. इसीलिए आतंकवादियों के लिए ट्रेन एक आसान निशाना हो सकती है. रेल कर्मचारियों की मुस्तैदी से फिलहाल कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई है लेकिन सरकार को ट्रेनों की सुरक्षा और रेल पटरियों के रखरखाव को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी.