उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉगः कृषि क्षेत्र पर मंडराता संकट

By उमेश चतुर्वेदी | Published: April 14, 2020 05:03 PM2020-04-14T17:03:08+5:302020-04-14T17:03:08+5:30

सामान्य दिनों में अब तक ये फसलें या तो घरों में आ चुकी होतीं या फिर खलिहानों तक पहुंच गई होतीं. लेकिन व्यापक महाबंदी के चलते तैयार फसलें घरों को तो छोड़िए, खलिहान तक पहुंचने की बाट जोह रही हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ से खड़ी फसलों में आग लगने की खबरें भी सामने आने लगी हैं.

Blog of Umesh Chaturvedi: Crisis on agricultural sector | उमेश चतुर्वेदी का ब्लॉगः कृषि क्षेत्र पर मंडराता संकट

राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे ऐसी कार्ययोजना बनाएं, जिससे किसान खेतों में खड़ी फसल घर ला सकें. 

Highlightsयह जांच का विषय है कि खेतों में तैयार खड़ी फसल में जान-बूझकर आग लगाई गई या असावधानीवश लगी.बैसाख के सूरज की तपती गर्मी से पक और सूख चुकी फसलों को खाक करने के लिए कई बार असावधानी की एक तीली भी बड़ा जरिया बन जाती है.

कोरोना की वजह से वैश्विक महाबंदी से जूझ रहे माहौल में उत्तर भारत एक और समस्या से जूझ रहा है. खेती-किसानी केंद्रित उत्तर भारत के खेतों में खड़ी गेहूं, चना, मसूर, अरहर, सरसों और अलसी की फसलें कुछ ज्यादा ही पक चुकी हैं.

सामान्य दिनों में अब तक ये फसलें या तो घरों में आ चुकी होतीं या फिर खलिहानों तक पहुंच गई होतीं. लेकिन व्यापक महाबंदी के चलते तैयार फसलें घरों को तो छोड़िए, खलिहान तक पहुंचने की बाट जोह रही हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ से खड़ी फसलों में आग लगने की खबरें भी सामने आने लगी हैं.

यह जांच का विषय है कि खेतों में तैयार खड़ी फसल में जान-बूझकर आग लगाई गई या असावधानीवश लगी. हालांकि यह भी सच है कि बैसाख के सूरज की तपती गर्मी से पक और सूख चुकी फसलों को खाक करने के लिए कई बार असावधानी की एक तीली भी बड़ा जरिया बन जाती है.

ऐसे में संबंधित राज्य सरकारों पर जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे ऐसी कार्ययोजना बनाएं, जिससे किसान खेतों में खड़ी फसल घर ला सकें. 24 मार्च को महाबंदी होने के बाद से महानगरों और औद्योगिक इलाकों से जिन दिहाड़ी मजदूरों ने अपने गांवों का रुख किया, उनमें से ज्यादातर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं.

महाबंदी के बाद कितने मजदूर अपने घरों को लौटे हैं, इसकी ठीक-ठीक जानकारी हासिल कर पाना मुश्किल है. लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में केंद्र सरकार ने माना है कि छह लाख लोगों को तमाम शिविरों में रखा गया है. मोटा अनुमान यही है कि लाखों लोग अपने गांवों को लौट गए हैं. लेकिन महाबंदी के चलते खेतों में उनमें से काम करने वाले कम ही लोग तैयार हैं.

यह विडंबना ही है कि गांवों में मजदूरों की बाढ़ होने के बावजूद खेतों में काम करने वालों का अभी टोटा पड़ा हुआ है. वहीं पंजाब और हरियाणा के खेतों में भी काम करने वाले मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के ही ज्यादातर होते हैं. लेकिन वे भी महाबंदी के बाद घरों को लौट गए हैं. इसलिए पंजाब और हरियाणा के किसानों के सामने दोहरी चुनौती है. फसल काटने की मंजूरी हासिल करना और मजदूर खोजना.

Web Title: Blog of Umesh Chaturvedi: Crisis on agricultural sector

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