सारंग थत्ते का ब्लॉगः वायुसेना को तत्काल लड़ाकू विमानों की जरूरत

By सारंग थत्ते | Updated: January 24, 2019 20:14 IST2019-01-24T20:14:45+5:302019-01-24T20:14:45+5:30

लड़ाकू जहाजों की कमी को दूर करने के लिए 2017 में रक्षा मंत्रलय ने एकल इंजिन के लड़ाकू जहाज की खरीद के लिए फिर से रिकवेस्ट फॉर प्रपोजल मंगाए थे. लॉकहीड मार्टिन का एफ-16 और स्वीडन की साब कंपनी का ग्रिपेन-ई  ही इस दौड़ में बचे हुए थे.

Blog of Sarang Thatta: Air Force needs urgent fighter planes | सारंग थत्ते का ब्लॉगः वायुसेना को तत्काल लड़ाकू विमानों की जरूरत

फाइल फोटो

साठ के दशक में भारतीय वायुसेना को लगभग 64 स्क्वाड्रन की जरूरत थी और मंजूरी भी मिली थी, लेकिन वक्त के साथ सरकारें बदलीं और हमारी वायुसेना की स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 44 पर आकर टिक गई. आज वायुसेना के पास सिर्फ 31 स्क्वाड्रन हैं जो इस भूभाग को संभालने के लिए काफी नहीं है. पाकिस्तान के पास 24 स्क्वाड्रन हैं लेकिन चीन का हाथ उसके सर पर मौजूद है.

लड़ाकू जहाजों की कमी को दूर करने के लिए 2017 में रक्षा मंत्रलय ने एकल इंजिन के लड़ाकू जहाज की खरीद के लिए फिर से रिकवेस्ट फॉर प्रपोजल मंगाए थे. लॉकहीड मार्टिन का एफ-16 और स्वीडन की साब कंपनी का ग्रिपेन-ई  ही इस दौड़ में बचे हुए थे. इस तरह सिर्फ दो ही उम्मीदवार मैदान में थे और अब यह कहा जा सकता है कि निर्णय लेने के लिए किसी भी किस्म के व्यवधान से बचना चाह रही थी सरकार इसलिए इस एकल इंजिन के 1.15 लाख करोड़ रुपए के टेंडर से लड़ाकू जहाज बनाने की योजना को इमर्जेन्सी ब्रेक लगा दिया गया था. 2018 में एक बार पुन: भारतीय वायुसेना की जरूरत को ध्यान में रखते हुए दो इंजिन के जहाजों को भी अब एक नए टेंडर के दायरे में लिया गया.

इस पर अभी अंतिम फैसला आना बाकी है—खोज -बीन जारी है. अब तक सात कंपनियों ने रक्षा मंत्रलय की नई रणनीतिक साङोदारी नीति के तहत 110 हवाई जहाज के निर्माण की पुष्टि की है, जिसमें भारतीय कंपनियां भी पार्टनर होंगी.  ऐसा माना जा रहा है कि जहां एक तरफ वायुसेना और रक्षा मंत्रलय अपनी तरफ से इन सातों कंपनियों की जानकारी की बारीकी जांच में जुटी हुई है, लेकिन इसका कोई जल्द निर्णय आने की उम्मीद नहीं है. 

 इन सभी पहलुओं से आगे यदि हम सोचें, तो अगले साल मार्च तक अंतिम निर्णय आने की उम्मीद की जा सकती है. तब तक यह जंग चलती रहेगी. लेकिन इस सब के बीच अपनी उम्र के आखरी पड़ाव पर पहुंचे हुए मिग लड़ाकू जहाजों को कुछ और समय तक सेवा में रखना ही होगा अन्यथा वायुसेना की स्क्वाड्रन संख्या कम होती हुई 29 तक पहुंच जाएगी. जो हमारी काबलियत का सबसे निम्न स्तर होगा-जो राष्ट्रीयहित में नहीं कहलाएगा. 

इस सबके अलावा यह भी समझना होगा कि इस समय दो मोर्चो की लड़ाई के लिए 32 स्क्वाड्रन भी काफी नहीं होंगे और जिस तरह के तेवर चीन आए दिन दिखाता रहता है,  इस समय स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स अर्थात् मोतियों की माला में उसने कई राष्ट्रों के बंदरगाहों पर अपनी पनडुब्बियों के रखरखाव की तैयारिओं को पूर्णता दे दी है. उसने दक्षिण चीनी समुद्र में अपने बलबूते पर द्वीपों को किलों में तब्दील कर दिया है. कहने को यह संकेत कुछ अच्छे नहीं है लेकिन भारतीय वायुसेना की जरूरत के लिए यदि हमें और 8 से 10 साल इंतजार करना पड़ेगा तो यह राष्ट्रहित में कतई नहीं होगा. युद्धक विमानों की कमी अब आंखों को खलने लगी हैं और चिंताजनक विषय से आगे के समीकरण में राजनीति और रणनीति को समेट रही है.

Web Title: Blog of Sarang Thatta: Air Force needs urgent fighter planes

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