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मु़ख्तार खान पटेल का ब्लॉग: अधिकार की लड़ाई का प्रतीक है मजदूर दिवस

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 1, 2020 09:35 IST

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ठळक मुद्देजागरूकता के अभाव में मजदूर दिवस की महत्ता गौण होती जा रही है.कभी काम के लिए तो कभी सफर में, हर दिन लटकते हैं मजदूर

मु़ख्तार खान पटेल 

अपने अधिकारों के लिए गरीब-मजदूरों व अन्य मेहनतकश वर्ग की लड़ाई दुनिया भर में आगे बढ़ी है. इसलिए मजदूर दिवस अधिकार की लड़ाई का प्रतीक है. परिश्रम के अलावा और कोई रास्ता नहीं, श्रम करो, शर्म नहीं. श्रम शक्ति के ये प्रेरक नारे हैं. जो आज भी लोगों को उत्प्रेरित करते हैं. श्रमिकों के लिए यह नारा काफी महत्वपूर्ण है. जिस पर अमल किया जाए तो पूरा परिवार खुशहाल रहेगा. आज 1 मई, मजदूर दिवस को लोग भूलने लगे हैं जबकि, यह तारीख श्रमिकों को चट्टानी एकता का संदेश देती हैं. जागरूकता के अभाव में मजदूर दिवस की महत्ता गौण होती जा रही है. श्रमिक संगठनों के अभाव में ऐसी स्थिति बनी है. 

मजदूरों को नहीं मालूम मजदूर दिवस 

मजदूर दिवस पर भी मजदूरों ने दो जून की रोटी कमाने की मजबूर हैं. कहने को तो आज विश्व मजदूर दिवस है लेकिन, जिनका दिन है उन्हें ही इसकी जानकारी नहीं है. आज भी विभिन्न स्थानों पर मजदूरी कर रहे लोग देखे जा सकते है. काम ढूंढ़ने के लिए हर दिन भीगना व तपना पड़ता है. मजदूरों को ग्रामीण इलाकों से शहर में आकर मजदूरी करने वाले मजदूरों को केवल काम करने की परेशानी नहीं है बल्कि, उन्हें काम ढूंढ़ने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. हर दिन की यही कहानी है. 

कभी काम के लिए तो कभी सफर में, हर दिन लटकते हैं मजदूर

शहर में हर दिन मजदूरों के मामले में सुरक्षा मानकों का उल्लंघन किया जा रहा है. अक्सर इमारतों के निर्माण के क्रम में यह देखा जा रहा है. खास कर इमारतों की पेंटिंग के काम में मजदूरों को लटक कर काम करना पड़ता है. सुरक्षा बेल्ट के बिना ही मजदूर रस्सी के सहारे लटक कर काम करते दिखते हैं. उन्हें काम करानेवाले ठेकेदारों की ओर से सुरक्षा बेल्ट तक उपलब्ध नहीं कराया जाता है, जबकि सुरक्षा मानक में इसका उल्लेख है कि किसी भी हाल में बिना सुरक्षा बेल्ट के काम नहीं कराया जाए. 

यह स्थिति सरकारी कामों में भी देखने को मिल रही है. इसका नतीजा है कि अक्सर दुर्घटनाएं होती है और मजदूरों को जान से हाथ धोना पड़ता है. बिजली मिस्त्री को भी अक्सर बिना सुरक्षा कवच के पोल पर चढ़ा दिया जाता है. यानी काम के लिए हर दिन मजदूर अपनी जान की रिस्क लेते हैं. हर शाम लटक कर करते हैं यात्रा हर दिन शाम ढलने के बाद शहर के सारे इलाकों के मिनीडोर में भी ऐसा दृश्य देखा जा सकता है. मिनीडोर में धक्का-मुक्की एवं थोड़ी-सी जगह में बैठ कर जैसे-तैसे यात्रा करते हैं. कई तो लटकी हुई स्थिति में रहते हैं. 

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