गौरीशंकर राजहंस का ब्लॉग: भगवान राम और अयोध्या के बारे में ओली का बेतुका प्रलाप
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: July 20, 2020 05:55 IST2020-07-20T05:55:21+5:302020-07-20T05:55:21+5:30
अब प्रधानमंत्री केपी ओली कह रहे हैं कि राम का जन्म नेपाल में हुआ था और भारत में स्थित जिस अयोध्या की बात सारी दुनिया करती है वह नेपाल में थी, न कि भारत में। भारत ने इस मामले में ओली के बयान का विरोध किया है।

सांकेतिक तस्वीर (File Photo)
नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने नेपाल और भारत के संबंधों को बिगाड़ने की पूरी तरह ठान ली है. पहले तो उन्होंने भारत के उस भूभाग को जो सदियों से भारत का अंग था, उसे जबरन नेपाल के नक्शे में जोड़कर नेपाल की संसद से पास करवा लिया है.
इसका नेपाल के मधेशियों और भारत की जनता में कड़ा विरोध हो रहा है. भारत सरकार ने भी अपना पक्ष रखा है और ओली के इस कुकृत्य की निंदा की है.
अब प्रधानमंत्री ओली कह रहे हैं कि राम का जन्म नेपाल में हुआ था और भारत में स्थित जिस अयोध्या की बात सारी दुनिया करती है वह नेपाल में थी, न कि भारत में. या तो ओली को नेपाल और भारत के भौगोलिक, ऐतिहासिक और पौराणिक संबंधों की कोई समझ नहीं है या वे जान-बूझकर नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं भड़का रहे हैं.
कई वर्ष पहले तुलसी गिरि नाम के एक नेपाली प्रधानमंत्री हुए थे, जिनका लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई थी. परंतु उन्होंने नेपाल की जनता को भारत के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया था.
जब नेपाल की जनता ने, खासकर मधेशियों ने तुलसी गिरि की बेतुकी बातों का घोर विरोध किया तो वे दुम दबाकर बैठ गए.
हाल के वर्षो में नेपाल में घोर उथल-पुथल हुई है. राजशाही को हटाकर साम्यवादियों ने शासन पर कब्जा कर लिया. परंतु अधिकतर साम्यवादी मंत्री भारत के मित्र बने रहे और उन्होंने बार-बार इस बात को दोहराया कि नेपाल और भारत के बेटी-रोटी के संबंध हैं, अत: दोनों देशों में कोई कटुता आ ही नहीं सकती है.
परंतु लगता ऐसा है कि ओली चीनी आकाओं की गोद में बैठ गए हैं और चीन ओली को समय-समय पर भारत के खिलाफ उकसाता रहता है.
ओली की पार्टी के सह-अध्यक्ष प्रचंड हैं. उन्होंने ओली की बातों का घोर विरोध किया है और यह भी कहा है कि जब उनकी पार्टी की अगली बैठक होगी तब ओली को बाध्य किया जाएगा कि वे अपने पद से त्यागपत्र दे दें.
ऐसा हो पाता है या नहीं, यह कहना कठिन है. परंतु ओली का नेपाल और भारत दोनों में कड़ा विरोध और आलोचना हो रही है.
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने भी ओली का घोर विरोध करते हुए कहा कि यदि ओली की बात मानी जाए तो एक अलग रामायण लिखनी होगी जिसे पढ़कर लोग बैठे-बैठे ही स्वर्ग चले जाएंगे.
कहना नहीं होगा कि नेपाल और भारत के संबंध सदियों पुराने हैं. हर वर्ष भारत के अयोध्या से एक बड़ी बारात नेपाल के मिथिला क्षेत्र के जनकपुर में जाती है और लोग श्रद्धापूर्वक राम और सीता का विवाह देखते हैं.
यह भी कहा जाता है कि जनकपुर को भारत के पंडितों ने इतना पवित्र बताया है कि वहां सालभर शादी-विवाह होते रह सकते हैं और ये विवाह बहुत शुभ होंगे.
नेपाल और भारत के बीच बहुत बड़े स्तर पर व्यापार होता है और इस व्यापार में भारत का हिस्सा 60 प्रतिशत है. यह तो सर्वविदित है कि नेपाल चारों तरफ से जमीन से घिरा हुआ है और उसका अपना कोई बंदरगाह नहीं है.
इसलिए नेपाल का आयात-निर्यात कोलकाता बंदरगाह से ही होता है. जब-जब नेपाली राजनेताओं ने भारत को आंख दिखाने का कार्य किया, तब-तब भारत ने कोलकाता बंदरगाह से नेपाल का आयात-निर्यात बंद कर दिया. इससे रातोंरात नेपाल रास्ते पर आता रहा.
कहने का अर्थ है कि नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री को पिछले अनुभव से सीख लेनी चाहिए और भारत में दुर्भावना फैलाने के प्रयास नहीं करने चाहिए.
प्रतिमाह हजारों लोग रोजी-रोटी की तलाश में नेपाल से भारत आते हैं और प्राय: उनको जीविका का साधन मिल ही जाता है. परंतु अब जब बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों की बहुतायत है, नेपाल से आने वाले लोगों को रोजगार मिलने में बड़ी कठिनाई होगी. ऐसे में नेपाल सरकार को चाहिए कि वह भारत के साथ मित्रवत संबंध रखे.