डॉ. विशाला शर्मा का ब्लॉग: प्रगतिशील चेतना के जनक राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: April 30, 2020 14:45 IST2020-04-30T14:45:50+5:302020-04-30T14:45:50+5:30
तुकड़ोजी महाराज की आदर्श ग्राम की कल्पना में सर्वप्रथम स्त्री-पुरु ष समानता और स्त्री स्वतंत्रता महत्वपूर्ण बिंदु थे. उनका मानना था कि परिवार रूपी रथ के दोनों पहिए मजबूत होना आवश्यक है, तभी संसार रूपी गाड़ी सुख से चल सकती है.

जयंती विशेष: तुकड़ोजी महाराज (फाइल फोटो)
जाति, वर्ग, पंथ, धर्म से परे प्रगतिशील चेतना के जनक और मराठी भाषा में लिखित ‘ग्रामगीता’ के रचयिता राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज सृजन के साथ क्रांति का शंखनाद करते हैं. दहेज प्रथा, पशुहत्या बंदी, व्यसन मुक्ति, अंधश्रद्धा, अशिक्षा के विरुद्ध राष्ट्र को जगाने और नेतृत्व कर आजीवन इस मशाल को प्रज्ज्वलित रखने का संकल्प भारतवासियों से लेते हैं. अपने संदेशों को जनता तक पहुंचाने के लिए वे लोक भाषा और राष्ट्र भाषा का प्रयोग करते हैं.
मानव मूल्य नागरिकों को प्रिय रहे और राग-द्वेष निशेष हो जाए. भारत गांव का देश है और गांव के विकास से ही देश का विकास संभव है. गांव में जाति के नाम पर होने वाले संघर्ष, भेदभाव, कुप्रथाएं, अंधविश्वास जब तक समाप्त नहीं होंगे, भारत का विकास संभव नहीं है. आपने अपनी भावनाओं द्वारा आकाश की ऊंचाइयों को ही नहीं नापा अपितु संवेदना की यथार्थ भूमि पर खड़े होकर ज्ञान, कर्म और भक्ति के मार्ग पर चलते हुए कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया. जातिगत, वंशगत, धर्मगत फैले जाल को अदम्य साहस के साथ तीखी आलोचना कर उच्च वर्ग की मान्यताओं पर कठोर प्रहार किया है.
उन्होंने सपनों के समाज की उन्नति के लिए गांव में ज्ञान के साथ भक्ति की धारा को प्रवाहित किया और उस भक्ति की धारा में जनमानस इस तरह रच-बस गया कि अपने इस राष्ट्रसंत के वचनों को शिरोधार्य किया. इस महान योगी ने भजन, अभंग, सामाजिक एवं राष्ट्रीय विषयों पर लेख लिखकर अपनी कलम के द्वारा कुंठित समाज का पथ प्रदर्शन किया. उनके साहित्यिक योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है. ईश्वर की सर्व व्यापकता, आंतरिक मूल्यों का जागरण, भाईचारे की भावना, मन की पवित्रता और समाज सेवा के लिए समर्पण के बीज समाज में बोने का कार्य तुकड़ोजी महाराज के द्वारा किया गया. उनके द्वारा लिखित ‘ग्रामगीता’ गांव के विकास के साथ-साथ स्वस्थ समाज की कल्पना है. ग्रामीण पुनर्निर्माण का स्वप्न उनके जीवन का ध्येय था.
तुकड़ोजी महाराज की आदर्श ग्राम की कल्पना में सर्वप्रथम स्त्री-पुरु ष समानता और स्त्री स्वतंत्रता महत्वपूर्ण बिंदु थे. उनका मानना था कि परिवार रूपी रथ के दोनों पहिए मजबूत होना आवश्यक है, तभी संसार रूपी गाड़ी सुख से चल सकती है. प्रयागराज के कुंभ मेले में सहभागी होकर आपने अपने भजन, भाषण और साहित्य द्वारा जनसेवा की. आपने कहा कि जनसेवा ही ईश्वर की सेवा है और यह संदेश आपने उन साधुओं को दिया था जो उस कुंभ मेले में पुण्य और मोक्ष प्राप्ति हेतु सहभागी हुए थे. उनके द्वारा श्रम की महत्ता को प्रतिष्ठित किया गया. धार्मिक कट्टरता, रूढ़िवादी विचारधारा के विरुद्ध इस देश को अपना ईश्वर मानने वाले तुकड़ोजी महाराज ने विसंगतियों और कुरीतियों के विरुद्ध चेतना का संवहन कर समाज को नई दिशा प्रदान की.