डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉगः भगवान राम की ऐतिहासिकता

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 5, 2020 02:17 PM2020-08-05T14:17:40+5:302020-08-05T14:17:40+5:30

ऋग्वेद में विस्तृत राम कथा तो प्राप्त नहीं होती किंतु इक्ष्वाकु, दशरथ, राम, जनक, अश्वपति तथा पृथ्वी देवी के रूप में सीता जैसे शब्दों के उल्लेख से अनुमान है कि तत्कालीन समय में लोग इन नामों से परिचित थे.

Blog of Dr. Shivakant Bajpai Historicity of Lord Rama | डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉगः भगवान राम की ऐतिहासिकता

पुरातात्विक अनुसंधानों से ऐसा लगता है कि लगभग दस हजार वर्ष पूर्व वहां पर मानवीय गतिविधियां संचालित होती थीं.

Highlightsमहाभारत काल में भी भगवान राम के बारे में पर्याप्त जानकारी लोगों को थी. बौद्ध जातक कथाएं यथा दशरथ जातक में राम कथा का उल्लेख मिलता है.डॉ. वेबर एवं जी. टी. व्हीलर आदि विद्वान इस पर रोम-बौद्ध प्रभाव मानते हैं और उसे इतना प्राचीन नहीं मानते हैं. मैकडोनाल्ड, मोनियर विलियम्स, विंटरनिट्ज, यकोबी तथा सी. वी. वैद्य आदि रामायण/रामकथा का रचनाकाल 1-5वीं-8वीं सदी ईसा पूर्व निर्धारित करते हैं.

भगवान राम की ऐतिहासिकता को लेकर लंबे समय समय से एक दीर्घकालिक बहस विद्वानों के बीच होती रही है और राम मंदिर तथा राम सेतु जैसे मुद्दों ने इस चर्चा को व्यापक बनाने का काम किया है.

यद्यपि ऋग्वेद में विस्तृत राम कथा तो प्राप्त नहीं होती किंतु इक्ष्वाकु, दशरथ, राम, जनक, अश्वपति तथा पृथ्वी देवी के रूप में सीता जैसे शब्दों के उल्लेख से अनुमान है कि तत्कालीन समय में लोग इन नामों से परिचित थे. महाभारत के द्रोणपर्व, आरण्यकपर्व तथा शांतिपर्व में रामकथानक एवं रामोपाख्यान का विवरण मिलता है जिससे यह ज्ञात होता है कि महाभारत काल में भी भगवान राम के बारे में पर्याप्त जानकारी लोगों को थी. बौद्ध जातक कथाएं यथा दशरथ जातक में राम कथा का उल्लेख मिलता है.

इसी प्रकार जैन परंपरा में पउमचरिय सहित अनेक ग्रंथों में राम कथा का व्यापक रूप से उल्लेख मिलता है. और इसी प्रकार दक्षिण भारत के संगम साहित्य विशेषकर ‘पुर नानुरु’ में भी राम कथा की कतिपय घटना का वर्णन किया गया है.

ईस्वी सन् से पहले ही अर्थात प्रभु यीशु से बहुत पहले ही राम का ऐतिहासिक चरित अस्तित्व में था

उपरोक्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि ईस्वी सन् से पहले ही अर्थात प्रभु यीशु से बहुत पहले ही राम का ऐतिहासिक चरित अस्तित्व में था. जिसकी पुष्टि भाषा वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर की है. इसी क्रम में वाल्मीकि कृत संस्कृत रामायण के रचनाकाल के संदर्भ में ए. श्लेगल तथा जी. ग्रोशिये जैसे विद्वान इसका तिथिक्रम 11-12वीं सदी ईसा पूर्व अनुमानित करते हैं वहीं डॉ. वेबर एवं जी. टी. व्हीलर आदि विद्वान इस पर रोम-बौद्ध प्रभाव मानते हैं और उसे इतना प्राचीन नहीं मानते हैं.

वहीं मैकडोनाल्ड, मोनियर विलियम्स, विंटरनिट्ज, यकोबी तथा सी. वी. वैद्य आदि रामायण/रामकथा का रचनाकाल 1-5वीं-8वीं सदी ईसा पूर्व निर्धारित करते हैं. सामान्यत: रामायण में घटी घटनाओं का पारंपरिक तिथिक्रम लगभग सात हजार वर्ष पूर्व स्वीकार किया जाता है और यह असंभव भी नहीं लगता क्योंकि रामायण में घटी घटनाओं का मुख्य केंद्र स्थल गंगाघाटी में हुए पुरातात्विक अनुसंधानों से ऐसा लगता है कि लगभग दस हजार वर्ष पूर्व वहां पर मानवीय गतिविधियां संचालित होती थीं.

यही नहीं बल्कि महाभारतकाल को उत्खनन में मिलने वाले गैरिक मृदभांडों से जोड़ा जाता है. अभी हाल ही में हरियाणा के सोनौली नामक ग्राम में हुए पुरातात्विक उत्खनन में प्राप्त हुआ रथ कर्ण के रथ के नाम से मीडिया की सुर्खियों में बना था.

इसके पीछे भी यही कारण था कि वहां से महाभारतकालीन गैरिक मृदभांड पात्र परंपरा प्राप्त हुई थी जिसकी तिथि लगभग 1900 ईसा पूर्व ज्ञात हुई है अर्थात आज से लगभग 4000 वर्ष पहले. इसी प्रकार रामायण के पुरातात्विक प्रमाणों की खोज के लिए सुविख्यात पुराविद प्रो. बी. बी. लाल ने 1977-86 के मध्य रामायणकालीन स्थलों, अयोध्या, भारद्वाज आश्रम, चित्रकूट, ऋंगबेरपुर आदि का पुरातात्विक अन्वेषण कार्य किया है.

राम कथा से संबंधित प्राचीनतम दृश्य फलक द्वितीय-प्रथम सदी ईसा पूर्व का है जिसमें रावण द्वारा सीता के हरण का दृश्य अंकित है यह टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) का बना हुआ है तथा कोशांबी (उत्तरप्रदेश) से प्राप्त हुआ था और वर्तमान में इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शित है.

इसी प्रकार प्रथम सदी ईस्वी की भगवान राम की एक अन्य टेराकोटा प्रतिमा है जिस पर राम अभिलेख उत्कीर्ण है और यह प्रतिमा लॉस एंजिल्स के कंट्री आर्ट संग्रहालय में संरक्षित है. इसी क्रम में नागाजरुनी कोंडा (आंध्रप्रदेश) से प्राप्त भरत मिलाप का प्रस्तर फलक भी महत्वपूर्ण है जो कि तीसरी सदी ईस्वी का है.

इसी श्रृंखला में नाचरखेड़ा (हरियाणा) से प्राप्त तीन अभिलखित टेराकोटा का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें राम, लक्ष्मण की जटायु से भेंट, सुवर्ण मृग तथा हनुमानजी द्वारा अशोक वाटिका उजाड़ने का दृश्य अंकित है और इनकी तिथि लगभग चौथी सदी ईस्वी है.

इसी प्रकार मध्य प्रदेश के नाचना कुठारा से प्राप्त पांचवीं सदी ईस्वी का प्रस्तर फलक जिसमें रावण द्वारा सीता से भिक्षा मांगने का कथानक अंकित है, अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसी मंदिर के समकालीन महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा के कैलाशनाथ गुफा मंदिर में तो लगभग संपूर्ण रामायण का ही उत्कीर्णन किया गया है. इसके अतिरिक्त राम सेतु की व विभिन्न स्नेतों द्वारा जारी तिथियां, प्लेनिटोरियम सॉफ्टवेयर द्वारा निर्धारित की गई भगवान राम की जन्मतिथि जैसे तथ्य भी भगवान राम की ऐतिहासिकता को ही प्रमाणित करते हैं.

Web Title: Blog of Dr. Shivakant Bajpai Historicity of Lord Rama

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे