ब्लॉगः राजनीति का धर्म के साथ घालमेल खतरनाक, हेट स्पीच रोकने के लिए बनाना होगा तंत्र
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 5, 2023 03:42 PM2023-04-05T15:42:59+5:302023-04-05T15:45:20+5:30
अभी महीने भर पहले भी हेट स्पीच से भरे टॉक शो और रिपोर्ट प्रसारित करने पर टीवी चैनलों को जमकर फटकार लगी। साल भर नहीं हुए कि दूसरी बार इसी 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हेट स्पीच के मामलों में त्वरित कार्रवाई करने में राज्यों की विफलता पर चिंता जताना बड़ी बात है।
ऋतुपर्ण दवे: बढ़ते नफरती भाषणों को लेकर सर्वोच्च अदालत की बार-बार की टिप्पणियां अपने में काफी अहम हैं। सुप्रीम कोर्ट की चिंता साफ-साफ टीवी डिबेट्स और दूसरे पब्लिक प्लेटफॉर्म के जरिए संवेदनशील मुद्दों पर असंवेदनशीलता की तरफ इशारा भी है। सुप्रीम कोर्ट का नफरत भरे भाषणों को गंभीर करार देने का हालिया वाकया नया नहीं है। अक्तूबर 2022 में भी सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के पुलिस प्रमुखों को औपचारिक शिकायतों का इंतजार किए बिना आपराधिक मामले दर्ज करके नफरत भरे भाषणों के अपराधियों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर तुरंत कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
अभी महीने भर पहले भी हेट स्पीच से भरे टॉक शो और रिपोर्ट प्रसारित करने पर टीवी चैनलों को जमकर फटकार लगी। साल भर नहीं हुए कि दूसरी बार इसी 29 मार्च को सुप्रीम कोर्ट द्वारा हेट स्पीच के मामलों में त्वरित कार्रवाई करने में राज्यों की विफलता पर चिंता जताना बड़ी बात है। जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ का सवाल कि अब हम कहां पहुंच गए हैं? गंभीर है। अदालत ने कहा कि कभी हमारे पास नेहरू, वाजपेयी जैसे वक्ता थे जिन्हें सुनने दूर-दराज से लोग आते थे। कोर्ट ने राज्यों से पूछा कि समाज में हेट स्पीच के अपराध को कम करने के लिए एक तंत्र क्यों नहीं विकसित कर सकते? राजनेता धर्म का उपयोग करते हैं, धर्म और राजनीति जुड़ गए हैं। इन्हें अलग करने की जरूरत है।
यकीनन राजनीति का धर्म के साथ घालमेल खतरनाक है। सुप्रीम कोर्ट की मंशा के अनुरूप फटकारों से देश में दरारें पटने लग जातीं और पुराना भाईचार लौट आता तो कितना अच्छा होता। काश! कानून बनाने वाले माननीय कानून का अनुपालन कराने वाली देश की सर्वोच्च संस्था के दर्द और इशारों को समझ पाते।