ब्लॉग: शहरों में लू के आगे बेबस होती जिंदगी

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: May 30, 2024 12:24 IST2024-05-30T12:13:31+5:302024-05-30T12:24:33+5:30

जैसे ही मई 2024 के आखिर में गर्मियों से जुड़ी मौसमी परिघटना-नौतपा (यानी नौ दिन तक धरती-आकाश को बुरी तरह तपाने वाली गर्मी) की शुरुआत हुई है, देश के शहरों में हाहाकार मच गया है।

Blog: Life becomes helpless in front of heat wave in cities | ब्लॉग: शहरों में लू के आगे बेबस होती जिंदगी

फाइल फोटो

Highlightsमई 2024 के आखिर में गर्मियों से जुड़ी मौसमी परिघटना-नौतपा ने मचाया कई शहरों में हाहाकार गर्मी का आलम यह है कि देश की राजधानी दिल्ली के बहुतेरे इलाकों में पारा 50 डिग्री को छू रहा हैवैज्ञानिक इसे अर्बन हीट आइलैंड का प्रकोप बता रहे हैं, जो शहरों के लिए सामान्य परिघटना हो गई है

जैसे ही मई 2024 के आखिर में गर्मियों से जुड़ी मौसमी परिघटना-नौतपा (यानी नौ दिन तक धरती-आकाश को बुरी तरह तपाने वाली गर्मी) की शुरुआत हुई है, देश के शहरों में हाहाकार मच गया है। देश की राजधानी दिल्ली के बहुतेरे इलाके 50 का पारा छू रहे हैं। सिर्फ दिल्ली ही नहीं, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई सहित 17 शहरों में लोग मारे गर्मी के त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। वैज्ञानिक इसे अर्बन हीट आइलैंड का प्रकोप बता रहे हैं, जो अब शहरों के लिए सामान्य परिघटना हो गई है।

अर्बन हीट आइलैंड का फलसफा कहता है कि शहरों का कृत्रिम विकास इतना ज्यादा हो जाए कि गर्मी से निपटने वाली और उसके असर को कम करने वाली प्राकृतिक व्यवस्था या कवर चौपट हो जाए तो ऐसा ही प्रचंड तापमान सिर चढ़कर तांडव करता है। हरियाली खत्म हो जाने, कांक्रीट के जंगल उग आने, घरों में एयरकंडीशनरों का प्रयोग आम हो जाने, सड़कों पर गर्मी और गैसें उगलती कारों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाने का असर यह होता है कि इन सारे कारकों से पैदा हुई गर्मी शहरों के वातावरण में फंस जाती और मौसम को तीखा गर्म बनाने लगती है।

निश्चय ही, प्रचंड गर्म मौसम में लू का प्रकोप ग्रामीण इलाकों में भी भरपूर रहता है, लेकिन वहां अभी भी मौसम को नम बनाने वाली व्यवस्था पूरी तरह चौपट नहीं हुई है। पेड़ों की छांव कायम है, तालाबों का पानी भी कमोबेश मौजूद है। शहरी लू का एक बड़ा असर सिर्फ यांत्रिक यानी एयर कंडीशनर आदि उपकरणों के अत्यधिक गर्म हो जाने और उनके आग पकड़ लेने तक सीमित नहीं हैं जिनके कारण कई शहरों में अग्निकांड बढ़ गए हैं बल्कि बढ़ते तापमान के साथ इंसानों में सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर की स्थिति पैदा हो गई है।

इसके प्रभाव से लोगों के दिमाग में पाए जाने वाले न्यूरो ट्रांसमीटर में तेजी से बदलाव आते हैं। ये परिवर्तन लोगों को आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाने को प्रेरित करते हैं। वर्ष 2018 में अमेरिकी विश्वविद्यालय स्टैनफोर्ड के शोधकर्ताओं ने गर्म मौसम और बढ़ती आत्महत्या दर के बीच एक मजबूत संबंध पाया था। स्टैनफोर्ड के अर्थशास्त्री मार्शल बर्क के नेतृत्व में किए गए अध्ययन के आधार पर दावा किया गया था कि 2050 तक अनुमानित तापमान वृद्धि से अमेरिका और मैक्सिको में अतिरिक्त 21 हजार आत्महत्याएं हो सकती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूएन-हैबिटेट द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट में बताया गया है कि शहरों की इमारतों व घरों को रौशन करने, उन्हें ठंडा रखने व पानी को शीतल करने के उपकरणों (एयरकंडीशनर, रेफ्रिजरेटर व वॉटर कूलर आदि) के इस्तेमाल और कारों के प्रयोग की वजह से शहरी इलाकों के औसत तापमान में 1 से 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो जाती है।

ये उपकरण अपने आसपास के माहौल में बेतहाशा गर्मी झोंकते हैं जो मई-जून जैसे गर्म महीनों में शहरों को और ज्यादा गर्म कर देते हैं। इसी तरह कारों को चलाने में जलने वाला तेल धुएं के रूप में सिर्फ कार्बन डाई-ऑक्साइड ही वातावरण में नहीं झोंकता है, बल्कि आसपास के तापमान में कुछ और इजाफा करता है।

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