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ब्लॉग: जानवरों को लेकर जंगल से आती अच्छी खबरें

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 22, 2023 12:53 IST

एशियाई शेरों के एक ही स्थान (जूनागढ़) पर जमाव को लेकर वन्यजीव विशेषज्ञ हमेशा चिंतित रहे हैं। प्रजाति को बचाने के लिए एक नया घर विकसित किया जाना था, ताकि भारत में शेरों की एकमेव प्रजाति को किसी आकस्मिक आपदा का शिकार होने से बचाया जा सके।

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ठळक मुद्दे एशियाई शेर गुजरात के पोरबंदर जिले में पहली बार देखे गएपोरबंदर 10वां जिला है जहां बब्बर शेर देखे गए हैंगुजरात वन विभाग के संरक्षण के प्रयास सफल हो रहे हैं

नई दिल्ली: भारत के जंगलों से हाल ही में सामने आई दो घटनाओं ने मुझे खुशी से भर दिया और मुझे लगता है कि देश भर में बड़ी संख्या में वन्यजीव प्रेमियों ने भी यही महसूस किया होगा। पहला वाकया पिछले महीने हुआ था जब गिर के शेर या एशियाई शेर गुजरात के पोरबंदर जिले में पहली बार देखे गए। इस बात का महत्व इस तथ्य में निहित है कि बड़ी बिल्लियों की यह लुप्तप्राय प्रजाति, जो कभी केवल उस राज्य के जूनागढ़ जिले में पाई जाती थी, अब पूरे सौराष्ट्र क्षेत्र में फैल रही है। पोरबंदर 10वां जिला है जहां बब्बर शेर देखे गए हैं, जिसका मतलब है कि गुजरात वन विभाग के संरक्षण के प्रयास सफल हो रहे हैं।

कई दशक पहले पूर्व जूनागढ़ रियासत के जंगलों में 300 से भी कम शेर पाए जाते थे; 1936 में वे लगभग 80 थे और 1955 की गणना में यह संख्या 290 दर्शाई गई थी। यहां का मुस्लिम राजवंश, भारतीय संघ का हिस्सा बनने से इनकार करते हुए, पाकिस्तान भाग गया था। लेकिन वे एशियाई शेरों के संरक्षक माने जाते थे। जब अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए तो नवाब एमएम खानजी-तृतीय पाकिस्तान चले गए और अंततः जूनागढ़ रियासत को सौराष्ट्र और बाद में बॉम्बे राज्य में मिला दिया गया। प्रारंभिक वन्यजीव लेखन और अभिलेखों से पता चलता है कि जूनागढ़ के शासकों ने शेरों की अच्छी तरह से देखभाल की थी, खासकर जब वन्यजीव प्रबंधन और संरक्षण से संबंधित कानून आज की तुलना में कुछ भी नहीं थे। उन दिनों वन्यजीवों के शिकार पर सख्ती से प्रतिबंध नहीं था। ब्रिटिश अधिकारी और रियासतों के शासक अपने शिकार के शौक के लिए जाने जाते थे।

भारत के विभाजन के बाद, एक वन्यजीव से संबंधित ‘एनजीओ’ ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखा कि चूंकि जूनागढ़ के नवाब ने भारत छोड़ दिया, इसलिए शेर अनाथ हो गए हैं और उन्हें बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। नेहरू ने उनके संरक्षण की गारंटी दी थी। उनकी मृत्यु के एक साल बाद, गिर राष्ट्रीय उद्यान को अधिसूचित किया गया और संरक्षण के प्रयास तेज कर दिए गए।

अब जूनागढ़, राजकोट, भावनगर, बोटाद, अमरेली, सुरेंद्रनगर आदि जिले जंगल के उस राजा के विचरण क्षेत्र हैं, जो बाघ से पहले एक समय हमारा राष्ट्रीय पशु था। एशियाई शेरों के एक ही स्थान (जूनागढ़) पर जमाव को लेकर वन्यजीव विशेषज्ञ हमेशा चिंतित रहे हैं। प्रजाति को बचाने के लिए एक नया घर विकसित किया जाना था, ताकि भारत में शेरों की एकमेव प्रजाति को किसी आकस्मिक आपदा का शिकार होने से बचाया जा सके। इसलिए 1 शेर और 2 शेरनियों को चंद्रप्रभा नदी के तट पर वाराणसी के पास चकिया अभयारण्य में ले जाया गया। जूनागढ़ से चंद्रप्रभा तक 10 दिन की लंबी ट्रेन यात्रा के बाद 2 दिसंबर 1957 को उन्हें जंगल में छोड़ा गया और इस स्थानांतरण में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

1965 तक ये 11 हो गए लेकिन उसके बाद इनका खात्मा हो गया। दूसरे घर की वकालत पुनः वन्यजीव विशेषज्ञों ने की। बहुत बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि कुछ शेरों को मध्यप्रदेश में स्थानांतरित कर दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जबकि मध्य प्रदेश की जीवन रेखा - नर्मदा नदी - गुजरात के बड़े हिस्से को सिंचित करती है, गुजरात ने कभी एक भी जानवर देकर सदाशयता नहीं दिखाई। यह बताने की जरूरत नहीं है कि शेर और पवित्र नर्मदा नदी दोनों राष्ट्रीय संपत्ति हैं।

इस बीच, प्रधानमंत्री की पहल पर अफ्रीका से चीतों को लाया गया और उन्हें कूनो में बसाया गया, जो मूल रूप से शेरों के लिए विकसित किया गया था।अब मानव-वन्यजीव संघर्ष, घटते जंगल और अवैध शिकार आदि जैसी सभी नकारात्मक घटनाओं के बीच, वन्यजीव के मोर्चे पर यह दूसरी अच्छी खबर है कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने कूनो नेशनल पार्क के जंगलों में चीतों को खुला छोड़ने की अनुमति दे दी है। कहा जा सकता है कि यह एक अच्छी व सफल कहानी लिखे जाने की शुरुआत है। चीता भारत से कई वर्ष पहले ही विलुप्त हो चुका था।

पिछले साल नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीतों को लाए जाने के तुरंत बाद, भारत लगभग सभी बड़ी बिल्लियों - शेर, बाघ, तेंदुए, हिम तेंदुए और चीता - के लिए दुनिया में एक आकर्षक अधिवास बन गया है। इन नए मेहमानों को भारतीय मौसम की स्थिति के अनुकूल बनाने के लिए 17 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संरक्षित बाड़ों में छोड़ दिया गया था। लेकिन राजस्थान के करीब स्थित श्योपुर जिले में गर्म मौसम और अन्य स्थानीय परिस्थितियों ने एक के बाद एक पांच चीतों की जान ले ली, जिससे चीतों की संख्या में वृद्धि की परियोजना को थोड़ा झटका लगा।

इस पृष्ठभूमि में, दो खूबसूरत जानवरों को जंगल में छोड़ना एक स्वागत योग्य कदम है। पर्यटकों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए जल्द ही और भी चीतों को छोड़ा जाएगा। बेशक, वन अधिकारियों की जिम्मेदारी अब कई गुना बढ़ गई है। किसी भी कीमत पर चीतों का शिकार नहीं होना चाहिए।

टॅग्स :गुजरातपोरबंदरForest Department
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