ब्लॉग: जनसंख्या में युवाओं की बहुतायत है हमारी ताकत
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 20, 2023 03:55 PM2023-04-20T15:55:23+5:302023-04-20T16:07:29+5:30
संयुक्त राष्ट्र के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत की आबादी अब 142.86 करोड़ हो गई है जबकि चीन की आबादी 142.57 करोड़ है।
जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। अब भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश हो गया है। बढ़ती आबादी निश्चित रूप से चिंता का विषय है लेकिन उसकी युवा शक्ति का अगर पूरी तरह से रचनात्मक दोहन किया जाए तो ज्यादा जनसंख्या वरदान भी साबित हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, भारत की आबादी अब 142.86 करोड़ हो गई है जबकि चीन की आबादी 142.57 करोड़ है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या डैश बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों को अगर सकारात्मक नजरिये से देखा जाए तो पता चलता है कि भारत की आबादी का बहुमत युवा है।
अगर उसकी शक्ति का समुचित दोहन राष्ट्र निर्माण में किया जाए तो भारत को विश्वगुरु बनने से कोई रोक नहीं सकता। हालांकि, इतनी बड़ी आबादी के बीच संसाधनों का वितरण बेहद जटिल होता है लेकिन वह असंभव नहीं है।
लगातार बढ़ती जनसंख्या के बावजूद भारत में आर्थिक संसाधनों की पहुंच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो रही है और देश सभी क्षेत्रों में विकास के नए मापदंड स्थापित कर रहा है। भारत की 25 प्रतिशत जनसंख्या शून्य से 14 वर्ष, 18 प्रतिशत 10 से 19 वर्ष तथा 26 प्रतिशत 10 से 24 वर्ष की आयु की है।
65 वर्ष से अधिक आयु अर्थात बुजुर्गों की संख्या महज 7 फीसदी है। 15 से 64 वर्ष की आयु के 68 प्रतिशत लोग हैं। आंकड़ों से साफ है कि भारत युवा शक्ति का अपार भंडार है और यह शक्ति जनसंख्या वृद्धि के होने वाले दुष्परिणामों को कम कर सकती है।
इस बात में कोई शक नहीं कि दुनिया के जिन देशों में जनसंख्या वृद्धि की दर तेज रही है, वे विकास की दौड़ में पिछड़ गए। अमेरिका और यूरोपीय देशों तथा एशिया के जापान जैसे देशों में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में जबदस्त जनजागृति देखी गई। ये देश अपनी आबादी की वृद्धि दर को नियंत्रित करने में सफल रहे।
इससे अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के लिए जरूरी सभी संसाधनों का उचित वितरण एवं इस्तेमाल हो सका और वे तेजी से समृद्ध होते चले गए। भारत और चीन जैसे देशों में जनसंख्या वृद्धि की दर बहुत तेज या यूं कहिए कि बेलगाम रही। इससे वे विकास की दौड़ में पीछे रह गए। चीन ने अस्सी के दशक में जनसंख्या को नियंत्रित करने के उपायों को बेहद सख्ती से लागू किया।
इससे वहां आबादी बढ़ने की रफ्तार कम हो गई और अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ ली। भारत में सत्तर के दशक से ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रशासनिक स्तर पर कदम उठाए जाने लगे थे। भारत में केंद्र तथा राज्य सरकारों ने आबादी नियंत्रण के लिए जनजागृति पर ज्यादा जोर दिया। चीन की तरह हमारे देश में सख्त कदमों पर अमल नहीं किया गया। छोटा परिवार की संकल्पना भारत में अनिवार्य नहीं, स्वैच्छिक रही।
सामाजिक रूढ़ियों ने भी भारत में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों को सफल नहीं होने दिया। ज्यादा बच्चों को वंश वृद्धि तथा परिवार की आर्थिक जरूरतों के लिए आवश्यक समझा गया। पुत्रमोह के कारण परिवारों में तब तक बच्चे पैदा किए जाते रहे जब तक पुत्र का जन्म नहीं हो गया। जनसंख्या नियंत्रण के लिए पिछले दो दशकों में कुछ प्रभावी कदम उठाए गए हैं।
मसलन दो से ज्यादा बच्चों के माता-पिता चुनाव नहीं लड़ सकते। इसके अलावा दो से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ से भी वंचित रखा गया है। इन कदमों के सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं तथा भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिलती दिख रही है।
इसके अलावा शिक्षा का दायरा फैल जाने से छोटे परिवार के फायदे समझ में आने लगे हैं। पिछले दो दशकों में भारत में एक या दो बच्चों वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है। यही नहीं, अनुमान है कि बीस साल बाद जनसंख्या वृद्धि लगभग थम जाएगी और तीस साल बाद आबादी कम होने लगेगी। जनसंख्या घटने या स्थिर होने के नुकसान भी सामने आ रहे हैं।
चीन, स्वीडन, नार्वे, जापान, जर्मनी जैसे अनेक देशों में बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है जिससे अर्थव्यवस्था का विकास प्रभावित होने लगा है। इन देशों में संसाधन प्रचुर हैं, मगर उसका रचनात्मक दोहन आबादी के बुजुर्ग हो जाने के कारण समुचित ढंग से नहीं हो पा रहा है। अब ये देश जनसंख्या वृद्धि के लिए प्रयासरत हैं।
भारत के लिए अच्छा संकेत यह है कि जनसंख्या वृद्धि की दर पर अंकुश लग रहा है तथा युवा व बुजुर्ग आबादी के बीच संख्या के हिसाब से बेहतर तालमेल बन रहा है। भारत में संसाधनों का वितरण और इस्तेमाल भी अच्छे ढंग से होने लगा है। उम्मीद करें कि बढ़ती आबादी बेहतर आर्थिक कदमों की बदौलत बोझ साबित नहीं होगी।