बिल गेट्स का ब्लॉग: महामारी रोकने के लिए करने होंगे प्रभावी उपाय
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 4, 2020 05:16 IST2020-03-04T05:16:05+5:302020-03-04T05:16:05+5:30
दुनिया को रोगों की निगरानी में भी निवेश करने की आवश्यकता है, जिसमें रोगियों का डाटाबेस बनाना भी शामिल है, जिस तक उन संगठनों की तत्काल पहुंच हो सकेगी जिन्हें इसकी जरूरत होगी और जरूरतमंद देशों को भी इन्हें प्रदान किया सकेगा. सरकारों के पास प्रशिक्षित कर्मचारियों की सूची होनी चाहिए जिसमें स्थानीय से लेकर वैश्विक विशेषज्ञों तक के नाम हों, जो किसी महामारी से निपटने के लिए तुरंत तैयार हों.

बिल गेट्स। (फाइल फोटो)
किसी भी संकट के दौरान नेतृत्व के सामने दो समान रूप से महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती हैं: समस्या को तत्काल सुलझाना और उसे फिर सामने आने से रोकना. कोविड-19 महामारी इसका एक ज्वलंत उदाहरण है. दुनिया में एक तरफ इससे लोगों की जान बचाने की जरूरत है तो दूसरी तरफ इसे फैलने से रोकने के लिए प्रभावी उपाय भी करना है. इसमें पहले हिस्से का दबाव अधिक है लेकिन दूसरा हिस्सा महत्वपूर्ण दीर्घकालिक प्रभाव वाला है.
पिछले हफ्ते से कोविड-19 ने इस तरह का रूप लेना शुरू कर दिया है कि एक बार फिर हम सदी के इस सबसे बड़े रोग के बारे में चिंतित हो गए हैं. मुझे उम्मीद है कि यह उतना बुरा साबित नहीं होगा, लेकिन हमें हर परिस्थिति के हिसाब से तैयारी रखनी चाहिए.
दो कारणों से कोविड-19 इतना खतरनाक लग रहा है. पहला, यह पहले से ही अस्वस्थ बुजुर्गो पर हमला करने के अलावा स्वस्थ वयस्कों को भी मार सकता है. अब तक के आंकड़ों से पता चलता है कि इस वायरस से संक्रमित लोगों की मौत होने का जोखिम एक प्रतिशत के आसपास होता है. यह दर आम मौसमी इंफ्लुएंजा से होने वाली मौतों से कई गुना अधिक है और मरने वालों की दर 1957 में फैली इंफ्लुएंजा महामारी (0.6 प्रतिशत) तथा 1918 की महामारी (दो प्रतिशत) के आसपास है.
दूसरा, कोविड-19 बहुत तेजी से फैलता है. इससे औसत संक्रमित व्यक्ति रोग को दो या तीन अन्य लोगों में फैलाता है. यह दर बहुत अधिक है. इस बात के भी पुख्ता सबूत हैं कि यह उन लोगों द्वारा भी फैलाया जा सकता है जो अभी मामूली रूप से बीमार हैं या जिनमें अभी तक इसके लक्षण नहीं दिख रहे हैं. इसका मतलब है कि कोविड-19 को नियंत्रित कर पाना मध्य-पूर्व में फैले सार्स को रोक पाने की तुलना में बहुत अधिक कठिन होगा, जो केवल उन्हीं लोगों के जरिए फैलता था जिनमें इसके लक्षण नजर आते थे और संक्रमित व्यक्ति से अन्य लोगों में फैलने की उसकी दर भी कम थी. वास्तव में, सार्स की तुलना में सिर्फ एक चौथाई समय में ही कोविड-19 के दस गुना ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं.
अच्छी खबर यह है कि राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर सरकारी तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसियां कोविड-19 के प्रसार को धीमा करने के लिए अगले कुछ हफ्तों में कदम उठा सकती हैं. उदाहरण के लिए, जिन देशों से यह वायरस फैला है, वहां की सरकारें अपने नागरिकों की मदद करने के अलावा निम्न और मध्यम आय वाले देशों की इस महामारी की रोकथाम करने में मदद कर सकती हैं. इन देशों में से अधिकांश की स्वास्थ्य प्रणाली पहले ही बहुत कमजोर है और कोरोना वायरस जैसी महामारी बहुत जल्दी वहां पैर पसार सकती है. गरीब देशों के नागरिकों के पास इससे निपटने के लिए आवश्यक राजनीतिक तथा आर्थिक संसाधन भी नहीं हैं.
अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों की मदद करके हम लोगों की जान बचा सकते हैं और इस वायरस के वैश्विक विस्तार को रोकने में भी मदद कर सकते हैं. (इसी प्रतिबद्धता के चलते मेलिंडा और मैंने हाल ही में कोविड-19 को वैश्विक स्तर पर फैलने से रोकने में मदद के लिए 100 मिलियन डॉलर देने का निश्चय किया है- जो विशेष रूप से विकासशील देशों पर केंद्रित है.
दुनिया को कोविड-19 के उपचार और टीकों पर काम में तेजी लाने की भी आवश्यकता है. वैज्ञानिक वायरस के जीनोम का अनुक्रम करने में सक्षम थे और कुछ ही दिनों में उन्होंने कई तरह के टीकों को विकसित किया. इनमें से आठ टीकों का परीक्षण किया जा रहा है. यदि एक या अधिक टीके जानवरों पर परीक्षण में प्रभावी साबित होते हैं तो जून की शुरुआत तक उन्हें बड़े पैमाने पर तैयार किया जा सकता है. लेकिन हमें बड़े व्यवस्थित बदलाव करने की भी आवश्यकता है, ताकि हम अगली महामारी के आने पर अधिक कुशलता के साथ और प्रभावी ढंग से उससे निपट सकें.
निम्न और मध्यम आय वाले देशों को अपनी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मजबूत करने में मदद देने की जरूरत है. जब आप एक स्वास्थ्य केंद्र का निर्माण करते हैं तो आप महामारी से लड़ने के लिए बुनियादी ढांचे का हिस्सा भी बनते हैं. प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी न केवल टीकाकरण करते हैं, बल्कि वे रोग के पैटर्न की निगरानी भी कर सकते हैं जिससे प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के एक हिस्से के रूप में संभावित प्रकोपों से दुनिया को सचेत किया जा सकेगा.
दुनिया को रोगों की निगरानी में भी निवेश करने की आवश्यकता है, जिसमें रोगियों का डाटाबेस बनाना भी शामिल है, जिस तक उन संगठनों की तत्काल पहुंच हो सकेगी जिन्हें इसकी जरूरत होगी और जरूरतमंद देशों को भी इन्हें प्रदान किया सकेगा. सरकारों के पास प्रशिक्षित कर्मचारियों की सूची होनी चाहिए जिसमें स्थानीय से लेकर वैश्विक विशेषज्ञों तक के नाम हों, जो किसी महामारी से निपटने के लिए तुरंत तैयार हों. साथ ही आपातकालीन स्थिति में सप्लाई किए जाने सामानों की भी सूची होनी चाहिए.
इसके अलावा, हमें एक ऐसी प्रणाली बनाने की जरूरत है, जो सुरक्षित और प्रभावी टीके विकसित कर सके, उन्हें मंजूरी दे सके और तेजी से बढ़ने वाली किसी महामारी की दशा में कुछ ही महीनों में अरबों खुराकों की आपूर्ति कर सके. यह एक कठिन चुनौती है, जिसके सामने तकनीकी, राजनयिक और बजटीय बाधाएं हैं. साथ ही यह सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी की भी मांग करती है. लेकिन इन सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता है. इस संबंध में सरकारों और उद्योगों को एक समझौते पर आने की जरूरत है ताकि महामारी के दौरान टीके और एंटीवायरल की मुनाफाखोरी न की जा सके तथा संक्रमित और जरूरतमंद लोगों को वे किफायती दरों पर उपलब्ध हों. न केवल यह सही काम है बल्कि सही रणनीति भी है और इसी तरह से महामारियों को भविष्य में नियंत्रित किया जा सकता है. यही वे कार्य हैं जो नेतृत्वकर्ताओं को अभी करने चाहिए. बर्बाद करने के लिए समय नहीं बचा है.