Bihar Chunav: भविष्य की राजनीति तय करेंगे बिहार विधानसभा के चुनाव, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच बार चुनाव जीता, परंतु यह निर्णायक चुनाव होगा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 13, 2025 05:13 IST2025-09-13T05:13:44+5:302025-09-13T05:13:44+5:30

Bihar Chunav: विस्थापन एक ऐसा घाव है, जो भरना ही नहीं चाहता. नीतीश कुमार को अपने दम पर बहुमत लाना होगा, ताकि एनडीए में अपनी पार्टी की प्रासंगिकता बनाए रखें, जिसने उन्हें मुख्यमंत्री प्रस्तावित किया है.

Bihar assembly elections decide future politics Chief Minister Nitish Kumar won election 5 times, but this will decisive election blog Prabhu Chawla | Bihar Chunav: भविष्य की राजनीति तय करेंगे बिहार विधानसभा के चुनाव, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच बार चुनाव जीता, परंतु यह निर्णायक चुनाव होगा

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Highlightsबेरोजगारी बिहार की आत्मा से जुड़ी है, और 75 लाख लोग बिहार से बाहर मेहनत कर जीविका चला रहे हैं.बिहार की राजनीति में बड़ी भूमिका इन दिनों तेजस्वी यादव निभा रहे हैं.चुनाव में उन्हें लालू के बेटे से अलग पहचान साबित करनी होगी.

प्रभु चावला

बिहार में होने वाला चुनाव सिर्फ एक लोकतांत्रिक कवायद नहीं है, इसमें तीन दिग्गजों- नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की राजनीति दांव पर लगी है. दो दल- जदयू और लोजपा अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि शक्तिशाली भाजपा और इंडिया का भंगुर गठबंधन सबसे कठिन लड़ाई में जूझने जा रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पांच बार चुनाव जीता है, परंतु यह उनका निर्णायक चुनाव होगा. उनकी पार्टी का वोट प्रतिशत 2010 के 22.6 फीसदी से घटकर 2020 में 15.7 प्रतिशत रह गया. ढांचागत सुधार, विद्युतीकरण में वृद्धि तथा कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर करने जैसी उनकी उपलब्धियां निर्विवाद हैं, लेकिन अब उन पर थकान भारी पड़ रही है. बेरोजगारी बिहार की आत्मा से जुड़ी है, और 75 लाख लोग बिहार से बाहर मेहनत कर जीविका चला रहे हैं.

विस्थापन एक ऐसा घाव है, जो भरना ही नहीं चाहता. नीतीश कुमार को अपने दम पर बहुमत लाना होगा, ताकि एनडीए में अपनी पार्टी की प्रासंगिकता बनाए रखें, जिसने उन्हें मुख्यमंत्री प्रस्तावित किया है. इससे कुछ स्थानीय भाजपा नेता परेशान हैं, जो बड़ी भूमिका चाहते हैं. बिहार की राजनीति में बड़ी भूमिका इन दिनों तेजस्वी यादव निभा रहे हैं.

इस चुनाव में उन्हें लालू के बेटे से अलग पहचान साबित करनी होगी. इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रहे तेजस्वी अपने मुस्लिम-यादव जनाधार पर निर्भर हैं, जिसके बूते 2020 के चुनाव में 75 सीटें जीत राजद राज्य का सबसे बड़ा दल बनकर उभरा है. एनडीए के मजबूत जातिगत समीकरण को चुनौती देने के लिए तेजस्वी को अब ओबीसी, दलितों और कमजोर तबकों तक पहुंच बनानी होगी.

तेजस्वी के तेज, युवा केंद्रित और तकनीकी दक्षता से लैस चुनाव अभियान का दायरा बढ़ रहा है. एक ओपीनियन पोल के मुताबिक, मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी 36.9 प्रतिशत रेटिंग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 18.4 फीसदी रेटिंग से बहुत आगे है. इसके बावजूद तेजस्वी पर लालू यादव के दौर के जंगल राज का ठप्पा लगा हुआ है. बिहार के रण में राहुल गांधी भी अपनी योग्यता साबित करना चाहते हैं.

वर्ष 2020 में 19 सीटें जीतने वाली कांग्रेस गठबंधन में जूनियर पार्टनर है, फिर भी चुनाव में कांग्रेस की भूमिका बड़ी है. यह चुनाव न केवल इस प्रांत में कांग्रेस की संभावनाओं की परीक्षा है, बल्कि इसमें कांग्रेस का प्रदर्शन इंडिया गठबंधन के संभावित प्रधानमंत्री के रूप में राहुल की नियति भी तय करेगा.

तेजस्वी और कन्हैया कुमार के साथ राज्य पदयात्रा में उन्होंने उन मुद्दों को उभारा, जो युवाओं के मुद्दे हैं. यानी बेरोजगारी, विस्थापन और आर्थिक महत्वाकांक्षा. कांग्रेस का ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ नारा बिहार की हकीकत से जुड़ गया है, जहां के 51.2 फीसदी मतदाताओं ने रोजगार को अपनी प्रमुख प्राथमिकता बताई है. भाजपा के एजेंडे में आदर्शवाद कहीं नहीं है.

एनडीए की चुनावी गाड़ी बिहार में एक असामान्य बाधा का सामना कर रही है : राज्य में एक भी करिश्माई स्थानीय नेता नहीं है. ऐसे में, भाजपा नरेंद्र मोदी की व्यापक लोकप्रियता व चुंबकीय व्यक्तित्व तथा अमित शाह के रणनीतिक कौशल के सहारे आगे बढ़ेगी. वर्ष 2020 के 74 सीटों से आगे बढ़ने के लिए पार्टी मोदी के विकासवादी विमर्श के साथ राजद के दौर में कानून-व्यवस्था की विफलता को याद दिलाएगी.

चुनाव विश्लेषक एनडीए के पक्ष में 48.9 प्रतिशत तथा इंडिया गठबंधन के पक्ष में 35.8 फीसदी समर्थन का आंकड़ा दे रहे हैं. परंतु एनडीए सहयोगियों में सब कुछ ठीक नहीं दिखता. सीटों के मामले में चिराग पासवान की लोजपा और जदयू के बीच मतभेद हैं. चिराग पासवान 20-25 सीट मांग रहे हैं, पर जदयू इतनी सीटें देना नहीं चाहता.

चिराग पासवान बिहार चुनाव में सबसे अप्रत्याशित चेहरे के रूप में सामने हैं. अगर चुनाव में भाजपा और जदयू में से किसी को निर्णायक बहुमत नहीं मिलता तो मुख्यमंत्री के चयन में चिराग की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. बिहार की राजनीति अब भी जातिगत समीकरणों पर निर्भर है. सभी 243 सीटों पर लड़ रही जन सुराज पार्टी जातिगत समीकरणों को महत्व नहीं दे रही.

पर इसके नेता प्रशांत किशोर की मुख्यमंत्री के रूप में रेटिंग मात्र 16.4 फीसदी है. बिहार का चुनाव एनडीए और इंडिया गठबंधन, दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. राज्य के मतदाता सिर्फ अगले मुख्यमंत्री का ही चयन नहीं करेंगे, वे भारत के राजनीतिक भविष्य की भी नींव रखेंगे.

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