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ऋतुपर्ण दवे ब्लॉग: ट्रेन के सभी यात्रियों की पहचान का बने तंत्र

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: June 17, 2023 13:59 IST

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में कई लोगों की मौत हो गई जिसके शवों की पहचान कर पाना तक मुश्किल हो गया है। अभी तक कई शवों की पहचान नहीं हो पाई है।

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ठळक मुद्देबालासोर ट्रेन हादसे में कई शवों की अभी तक पहचान नहीं हुई 2 जून को बालासोर में तीन ट्रेने आपस में टकरा गई इस हादसे में हजारों लोग जख्मी हो गए थे

बालासोर रेल हादसे में मरने वाले अनेक रेल यात्रियों की पहचान नहीं हो पाने से सवाल खड़ा हो गया है कि क्या जनरल टिकट पर यात्रा करने वाले यात्रियों की पहचान का भी कोई तरीका टिकट पर नहीं होना चाहिए?

भारत में रेल दुर्घटनाओं के आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर हादसे आउटर के बाद मुख्य ट्रैक के लूप ट्रैकों पर बंटी शाखाओं में होते हैं. रेल हादसे के बीच नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी सीएजी की वो रपट सुर्खियों में है।

जिसमें 2017-18 से 2020-21 के बीच खराब ट्रैक रखरखाव, ओवरस्पीडिंग और मैकेनिकल फेल्योर ट्रेनों के डिरेलमेंट के प्रमुख कारण गिनाए गए. ट्रैक के रखरखाव की कमी का कारण ट्रैक नवीनीकरण हेतु समुचित पैसा नहीं होना बताया गया।

 कहीं पूरे पैसे का इस्तेमाल भी नहीं हुआ. आग, मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग पर दुर्घटनाएं भी रेल हादसों की वजहें रहीं. पूरे रेलवे नेटवर्क में ढेरों पद खाली हैं।

ट्रैक सुरक्षा जैसे विभागों में कर्मचारियों की कमी चिंताजनक है. आम धारणा बन रही है कि सरकार का ध्यान अभिजात्य वर्ग पर है. आम लोगों की जनरल रेलगाड़ियों और पटरी पर किसका ध्यान है? आम सवारी गाड़ियों का परिचालन-संचालन ठीक नहीं है।

 मेमू, डेमू और जनशताब्दी ट्रेनों की बातें भूलकर चुनिंदा प्रीमियम गाड़ियों व स्टेशनों पर सुविधा से 140 करोड़ की आबादी वाले देश में 90 प्रतिशत लोगों का कोई सरोकार है ही नहीं।

दुर्घटनाग्रस्त ट्रेनों में आरक्षित यात्रियों का लेखा-जोखा तो होता है लेकिन जनरल बोगियों में कितने लोग कहां-कहां से थे, कैसे पता चलेगा? सरकारी आंकड़े और वास्तविक आंकड़ों की जंग पहले की दुर्घटनाओं की तरह न कभी खत्म हुई, न होगी।

ऐसे हालात में जनरल बोगियों के सफर में भी पहचान पत्र की अनिवार्यता जरूरी है। यात्री अपनी पहचान के साथ ही सवार हो, हर टिकट पर पहचान, मोबाइल नंबर और गाड़ी का विवरण हो।

 दुर्भाग्यजनक स्थितियों में वास्तविक आंकड़ों और पहचान का ये बेहतर तरीका होगा जिससे परेशान परिजनों, बेसुध घायलों, मारे गए लोगों की पहचान हो सकेगी. इससे टिकट खिड़की पर थोड़ा वक्त जरूर लगेगा लेकिन जान, जहान और पहचान के लिए ऐसा करने में बुराई क्या है?

टॅग्स :ओड़िसारेल हादसाभारतीय रेल
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