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अश्विनी महाजन का ब्लॉग: उम्मीद से कम, फिर भी बेहतर होगी देश की अर्थव्यवस्था

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: May 25, 2021 14:48 IST

रिजर्व बैंक के आकलन का आधार यह है कि पिछले वर्ष लॉकडाउन देशव्यापी था। इस वर्ष यह केवल उन्हीं स्थानों में ज्यादा हुआ है जहां महामारी का प्रकोप है।

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पिछले वर्ष की महामारी ने जहां देश में स्वास्थ्य संकट खड़ा किया था, वहीं लोगों की आमदनियों, रोजगार, उत्पादन, निर्यात समेत सभी आर्थिक संकेतक कोरोना की पहली लहर से प्रभावित हुए थे। अचानक लगे लॉकडाउन से घबराकर मजदूरों के पलायन की त्रसदी ने देश को झकझोर कर रख दिया था। देशव्यापी लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों में एकदम ठहराव ला दिया था। उपभोग (खासतौर पर गैरजरूरी उपभोग) में खासी कमी आ गई थी। 

रोजगार के अवसर खासे घटे थे। प्राइवेट नौकरियों में से लोगों को या तो निकाल दिया गया था अथवा उनके वेतन में 25 प्रतिशत से 60-70 प्रतिशत तक की कमी कर दी गई थी। अधिकांश फैक्ट्रियां बंद हो गई थी। निर्माण (कंस्ट्रक्शन) पर विराम लग गया था। सेवा क्षेत्र भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। अस्पतालों में अति आवश्यक इलाज के अतिरिक्त कोई काम नहीं था। स्वरोजगार में लगे अनेक लोग, दुकानदार, रेहड़ी, पटरी, खोमचा वाले, चाय की दुकान वाले, रेस्टॉरेंट, होटल इत्यादि में संलग्न लोगों के व्यवसाय लगभग बंद हो गए थे। लॉकडाउन की अवधि भी बहुत अधिक थी और उसके खुलने की गति भी काफी धीमी थी।

इन सबका असर सरकारी आमदनी पर भी पड़ा और उसमें भारी कमी आई। गौरतलब है कि आने वाली महामारी की जब आहट भी नहीं थी, फरवरी 2020 को प्रस्तुत बजट में 2020-21 के लिए केंद्र सरकार का कर राजस्व 20।21 लाख करोड़ रुपए प्रस्तावित किया गया। जबकि 2021 में प्रस्तुत बजट में संशोधन कर राजस्व को घटाकर 15।55 लाख करोड़ रुपए करना पड़ा था। एक तरफ घटता राजस्व तो दूसरी ओर महामारी से निपटने के लिए चिकित्सा पर ज्यादा खर्च, 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्य सामग्री, गांव में रोजगार सृजन पर ज्यादा खर्च समेत सरकार के बढ़ते खर्च के कारण बजट भी गड़बड़ा गया और राजकोषीय घाटा जो जीडीपी के 3।5 प्रतिशत के बराबर परिकलित था, संशोधित अनुमानों में बढ़कर 9।5 प्रतिशत तक पहुंच गया।

इन सब कारणों से वर्ष 2020-21 के लिए जीडीपी 8 प्रतिशत सिकुड़ गई। भारत द्वारा शेष दुनिया से कहीं बेहतर ढंग से निपटने और टीकाकरण की उम्मीदों और वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही (जनवरी से मार्च 2021) के दौरान अर्थव्यवस्था में हुए सुधार से यह उम्मीद बन गई थी कि 2021-22 के नए वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था द्रुतगति से बढ़ेगी। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने इस वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ को 13।8 प्रतिशत से अधिक अपेक्षित किया था। रेटिंग एजेंसियां भी उसी अनुसार भारत की रेटिंग बेहतर कर रही थीं।लेकिन अप्रैल 2021 में आई महामारी की दूसरी लहर की भयावहता एक बार फिर हमें सोचने के लिए मजबूर कर रही है कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से और सिकुड़ जाएगी? 

यह सही है कि महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश में एक बड़ा स्वास्थ्य संकट खड़ा किया है। बीमारी की भयावहता भी ज्यादा है, मृत्यु भी पहले से ज्यादा हो रही है। लेकिन इसका कितना असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा इसके बारे में अर्थशास्त्रियों का मत यह है कि पिछले साल की तुलना में अर्थव्यवस्था बेहतर कर सकती है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चाहे महामारी की भयावहता बढ़ी हो लेकिन अर्थव्यवस्था पिछले साल से बेहतर रहेगी। 

हालांकि अर्थव्यवस्था में बेहतरी के पूर्व अनुमान अब लागू नहीं रहेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी की दूसरी लहर में हालांकि स्वास्थ्य संकट और आर्थिक संकट बढ़ा है लेकिन अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव इतना भयावह नहीं होगा। भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर ने इस वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित जरूर किया है, लेकिन ध्वस्त नहीं। इसलिए इसका प्रभाव उतना भयावह नहीं होगा जितना पिछले वर्ष हुआ था। 

रिजर्व बैंक की सोच का दूसरा कारण यह है कि पिछले वर्ष ‘वर्क फ्राम होम’ पद्धति को अपनाने में जितना समय लगा था, लोग पहले से ही इसके अभ्यस्त हो चुके हैं। ऑनलाइन डिलीवरी की व्यवस्था और डिजिटल भुगतान भी पहले से ही दुरुस्त हो चुका है। रिजर्व बैंक ने अपने सुरक्षा उपायों को बढ़ाया है ताकि लोगों को कठिनाइयां कम हों। कुल मिलाकर पहली तिमाही (अप्रैल से जून 2021) में वार्षिक आधार पर 6।4 प्रतिशत ग्रोथ आकलित की गई है।

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