धर्मनिरपेक्षता के सामने खतरा
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 30, 2018 05:55 IST2018-07-30T05:55:39+5:302018-07-30T05:55:39+5:30
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सेना में मुसलमानों के लिए आरक्षण मांगा है। ओवैसी ने कहा है कि सेना में मुसलमानों की संख्या कम हो गई है।

धर्मनिरपेक्षता के सामने खतरा
(कुलदीप नैयर)
मुझे याद है कि देश के बंटवारे के बाद राजनीतिज्ञ और राजनयिक सैयद शहाबुद्दीन मुसलमानों का मत व्यक्त करते थे। उन्होंने अलग होने की बात तो नहीं कही, लेकिन देश के भीतर ही मुसलमानों के लिए स्वशासन का सुझाव दिया था। उन्हें किसी ने गंभीरता से नहीं लिया यहां तक कि मुसलमानों ने भी नहीं, क्योंकि बंटवारा दोनों समुदायों के लिए मुसीबत लाया था। अब ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सेना में मुसलमानों के लिए आरक्षण मांगा है। ओवैसी ने कहा है कि सेना में मुसलमानों की संख्या कम हो गई है। लेकिन यह तो होना ही था क्योंकि बंटवारा मजहब के नाम पर हुआ और मुस्लिम सेना पाकिस्तान की तरफ चली गई।
यह सोच गलत है। मुझे याद है कि संविधान सभा आरक्षण - सरदार पटेल ने मुसलमानों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव रखा था - पर बहस कर रही थी तो मुसलमान नेता उठे और उन्होंने कहा कि हमें आरक्षण नहीं चाहिए क्योंकि इसके कारण आगे चलकर पाकिस्तान बना। ओवैसी की शिकायत है कि प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम में साफ तौर पर कहा गया है कि केंद्र सरकार की नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए हर तरह के प्रयास किए जाएंगे, लेकिन बहुत कम किए गए। ओवैसी ने हाल ही में एक जनसभा में इसी बात का ध्यान दिलाया और लोगों ने ठीक ही उनके अर्धसैनिक बलों में भर्ती को धर्म से जोड़ने पर सवाल उठाया।
लेकिन ओवैसी ने अपने बयान का बचाव किया और कहा, ‘‘वे लोग पूरी तरह अनजान और घमंडी हैं और वे पढ़ते नहीं। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या यह मुद्दा प्रधानमंत्री के 15-सूत्री कार्यक्रम से जुड़ा नहीं है? इन 15 कार्यक्रमों में 10 वां कार्यक्रम राज्य तथा केंद्र सरकारों में मुसलमानों के लिए नौकरी की बात करता है। ’’मेरी भावना यह है कि हम पहले भारतीय हैं, फिर हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई। देश के चरित्र को व्यक्त करने के लिए संविधान की प्रस्तावना में ‘सेक्युलर’ शब्द है। इस शब्द को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जोड़ा था। जनता पार्टी ने उस सबको बदल दिया जो उन्होंने जोड़ा था, लेकिन प्रस्तावना को ज्यों का त्यों रहने दिया, बिना संशोधन के।
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