अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉगः संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रेरणा देंगे अटलजी 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 13, 2019 08:02 IST2019-02-13T08:02:46+5:302019-02-13T08:02:46+5:30

केंद्रीय कक्ष में सबसे अहम स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्न लगा है. ओस्वाल्ड बिर्ले के बनाए इस चित्न का अनावरण 28 अगस्त 1947 को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ.

Arvind Kumar Singh's blog: Atalji will inspire in the Central Hall of Parliament | अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉगः संसद के केंद्रीय कक्ष में प्रेरणा देंगे अटलजी 

फाइल फोटो

संसद के ऐतिहासिक केंद्रीय कक्ष में आज मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के आदमकद तैलचित्न का अनावरण किया. अटलजी ने 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा का सदस्य रहने के साथ अपने लंबे राजनीतिक जीवन में भारतीय संसद पर अमिट छाप छोड़ी. इसी नाते उनकी गरिमा के अनुरूप केंद्रीय कक्ष में हुए शानदार समारोह में यह अनावरण हुआ.

दरअसल केंद्रीय कक्ष में भारत के निर्माताओं और स्वाधीनता संग्राम के चंद दिग्गज लोगों की ही तस्वीरें लगी हैं. संसद के केंद्रीय कक्ष को तीसरा सदन कहा जाता है. इसका गुंबद विश्व के भव्यतम गुंबदों में एक माना जाता है. भारत के इतिहास में इसकी खास जगह है क्योंकि यहीं 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन ने भारत को सत्ता हस्तांतरित की. भारतीय संविधान की रचना भी केंद्रीय कक्ष में ही हुई. तमाम दिग्गज नेताओं की दिनचर्या में इस जगह का अपना अलग महत्व है.

आरंभ में केंद्रीय कक्ष का उपयोग केंद्रीय विधानसभा और राज्यसभा के पुस्तकालय के रूप में होता था. बाद में 1946 में इसका स्वरूप बदला और इसे संविधान सभा कक्ष में बदल दिया गया. 9 दिसंबर 1946 से 24 जनवरी 1950 तक यहीं संविधान सभा की बैठकें हुईं और अहम फैसले लिए गए. बाद में केंद्रीय कक्ष का उपयोग दोनों सभाओं की संयुक्त बैठकें आयोजित करने के लिए किया जाने लगा. लोकसभा के हर आम चुनाव के बाद पहले सत्न के आरंभ होने पर और हर साल पहला सत्न आरंभ होने पर राष्ट्रपति केंद्रीय कक्ष में संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हैं. इसी तरह केंद्रीय कक्ष का उपयोग विदेशी राष्ट्राध्यक्षों द्वारा संसद सदस्यों को संबोधित करने के लिए भी किया जाता है. इस कक्ष में लगे तैलचित्नों का अपना खास इतिहास है.

केंद्रीय कक्ष में भारत के स्वाधीनता आंदोलन और राष्ट्र निर्माण के महान नायकों की तस्वीरें प्रेरणा देती हैं. दिलचस्प बात ये है कि इनमें एकाध अपवाद को छोड़ दें तो बाकी सभी चित्न भेंट में मिले हैं और सरकार का कोई पैसा नहीं लगा है. अटलजी के इस चित्न को भी लोक अभियान संस्था ने भेंट किया है. अटलजी के ही नहीं, अधिकतर चित्नों का अनावरण राष्ट्रपति के हाथ ही हुआ है. भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल में सबसे अधिक तैलचित्न केंद्रीय कक्ष में लगे.

दरअसल केंद्रीय कक्ष या संसद परिसर में कौन सा चित्न या प्रतिमा लग सकती है, इसका फैसला संसद की राष्ट्रीय नेताओं और संसदविदों के चित्नों और प्रतिमाओं को लगाने संबंधी समिति लेती है. लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता वाली इस समिति में दोनों सदनों के प्रमुख दलों के कई बड़े नेता शामिल हैं. अटलजी के तैलचित्न संबंधी फैसला भी इसी समिति ने लिया. समिति ने माना कि वाजपेयी जैसे लोकतंत्न के महारथी के चित्न के बिना संसद का केंद्रीय कक्ष अधूरा है. 

केंद्रीय कक्ष में सबसे अहम स्थान पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्न लगा है. ओस्वाल्ड बिर्ले के बनाए इस चित्न का अनावरण 28 अगस्त 1947 को भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था. ये चित्न भावनगर, गुजरात के ए.पी. पट्टानी ने भेंट किया था. इसी तरह भारत के महान नायक दादाभाई नौरोजी के चित्न का अनावरण तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर ने 13 मार्च 1954 को किया. वहीं महान स्वतंत्नता सेनानी लाला लाजपत राय के चित्न का अनावरण तत्कालीन प्रधानमंत्नी पं. जवाहरलाल नेहरू ने 17 नवंबर  1956 को किया. सतीश गुजराल के बनाए इस चित्न को  द सर्वेन्ट्स ऑफ दि पीपल सोसाइटी ने भेंट किया था.

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के चित्न को तिलक शताब्दी-महोत्सव समिति ने भेंट किया. महान संसदविद् पंडित मोतीलाल नेहरू के चित्न का अनावरण तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 30 मार्च 1957  को किया. वहीं भारत के महान नायक पंडित मदन मोहन मालवीय के चित्न का अनावरण भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 19 दिसंबर 1957 को किया. भारत की एकता के सूत्नधार सरदार वल्लभभाई पटेल के चित्न का अनावरण भी राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 23 अप्रैल 1958 को किया. विख्यात चित्नकार एन. एस. शुभकृष्ण के बनाए इस चित्न को ग्वालियर महाराजा ने भेंट किया था. 

महान साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर और देशबंधु चित्तरंजन दास का चित्न विख्यात चित्नकार अतुल बोस ने बनाया और इनको डॉ. बी.सी. राय ने भेंट किया था. वहीं भारत कोकिला सरोजिनी नायडू का चित्न उन विरले चित्नों में है जिसे लोकसभा सचिवालय ने भेंट किया. चिंतामणि कार के बनाए इस चित्न का अनावरण भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 16 दिसंबर 1959 को किया. इसी दिन मौलाना अबुल कलाम आजाद के चित्न का भी अनावरण हुआ जिसे के. के. हैबर ने बनाया और आजाद चित्न समिति ने इसे भेंट किया. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का चित्न भी केंद्रीय कक्ष में लगा है जिसे एच.एस. त्रिवेदी ने बनाया था. इसका अनावरण तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने किया. वहीं पहले प्रधानमंत्नी पंडित जवाहरलाल नेहरू के चित्न का अनावरण 5 मई 1966 को डॉ. एस. राधाकृष्णन ने किया था.

भारत के इतिहास के तमाम दिग्गजों के बीच काफी महत्वपूर्ण स्थल पर अब अटलजी को भी जगह मिली है. जाहिर है कि इससे भावी पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी.

Web Title: Arvind Kumar Singh's blog: Atalji will inspire in the Central Hall of Parliament

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