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अरविंद कुमार सिंह का ब्लॉग: निजीकरण के सहारे रेलवे की रफ्तार बढ़ाने की कोशिश

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 2, 2020 05:30 IST

पिछले बजट में वित्त मंत्नी ने साफ संकेत दिया था कि भारतीय रेल जिन गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है, उसे दूर करने के लिए 2030 तक करीब 50 लाख करोड़ रु. की दरकार है. लेकिन इसका खास रास्ता पीपीपी होगा, इसका संकेत इस बजट से साफ दिख रहा है.

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संसद में वर्ष 2020-21 का आम बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण ने साफ संकेत दिया है कि अब भारतीय रेल के उद्धार का सहारा पीपीपी ही रह गया है. बजट में वित्त मंत्नी ने कहा कि स्टेशनों के पुनर्विकास की चार परियोजनाओं और 150 यात्नी गाड़ियों का प्रचालन पीपीपी मॉडल पर होगा. लेकिन कुल मिलाकर रेलवे के लिए आवंटित बजट से इसके भविष्य की बेहतर दिशा नहीं दिखती. हालांकि हाल के सालों में भारतीय रेल ने कुछ क्षेत्नों में बेहतरीन काम किया है लेकिन उसकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं.

पिछले बजट में वित्त मंत्नी ने साफ संकेत दिया था कि भारतीय रेल जिन गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है, उसे दूर करने के लिए 2030 तक करीब 50 लाख करोड़ रु. की दरकार है. लेकिन इसका खास रास्ता पीपीपी होगा, इसका संकेत इस बजट से साफ दिख रहा है.

रेलवे के बाबत आम बजट में वित्त मंत्नी ने पुरानी बातों को दोहराया. उन्होंने कहा कि नई सरकार बनने के बाद सौ दिनों में 550 स्टेशनों पर वाईफाई सुविधाएं चालू करने के साथ मानव रहित रेल फाटकों को समाप्त कर दिया. इसी तरह 27 हजार किमी लंबी रेल लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है.

रेलवे भूमि पर रेल ट्रैक के साथ बड़ी सोलर पॉवर क्षमता स्थापित करने का प्रस्ताव भी विचाराधीन है और स्टेशनों के पुनर्विकास की चार परियोजनाओं और 150 यात्नी गाड़ियों का प्रचालन पीपीपी मॉडल पर करने की दिशा में सरकार आगे बढ़ी है.

मुंबई-अहमदाबाद के बीच हाईस्पीड ट्रेन के कामों में तेजी लाई जाएगी. साथ ही वित्त मंत्नी ने यह भी बताया कि 18,600 करोड़ लागत की 148 किमी लंबी बेंगलुरु उपनगरीय परियोजना के लिए भारत सरकार 20 फीसदी इक्विटी प्रदान करेगी. इसी तरह एक बड़ा बंदरगाह कार्पोरेट करके उसे स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया जाएगा और जल परिवहन की दिशा में भी सरकार ध्यान देगी.

बेशक 2020-21 में परिवहन अवसंरचना के लिए सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रु. का प्रस्ताव रखा है. इसमें से रेलवे के हिस्से में 72,216 करोड़ रु. और सड़क परिवहन के हिस्से में 91,823 करोड़ रु. आ रहा है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भारतीय रेल किन चुनौतियों से जूझ रही है.

भारतीय रेल का परिचालन अनुपात 2020-21 के दौरान 96.2 फीसदी के करीब रहेगा जो 2019-20 में 97.4 फीसदी तक था. इस बार इसका आधिक्य 6500 करोड़ रुपये आंका गया है और इससे साफ है कि आंतरिक संसाधनों से विकास की कोई खास गुंजाइश रेलवे के पास नहीं है.

2020-21 में रेलवे की कुल प्राप्तियां 2,25,613 करोड़ होंगी जबकि कार्यकारी व्यय 2,16,713 करोड़ रुपए होगा. रेलवे की यात्नी यातायात से आय करीब 61 हजार करोड़ रुपये और माल यातायात से आय 1,47,000 करोड़ रुपये आंकी गई है.

इस तरह रेलवे विकास परियोजनाओं के लिए कई क्षेत्नों में निजी निवेश पर आश्रित हो रही है. रेलवे को पिछले साल सरकार ने 65,873 करोड़ की बजटीय सहायता दी थी. इस बार रेलवे मंत्नालय ने एक लाख करोड़ रुपये की मांग की थी लेकिन उसे वित्त मंत्नालय से 72,216 करोड़ रुपये मिला.

उदारीकरण के बाद भी अभी रेल परिवहन और डाक क्षेत्न में सरकारी एकाधिकार बना रहा है. रेलवे की ट्रेड यूनियनें बहुत मजबूत हैं. दूसरा, निजी क्षेत्न इसमें खास दिलचस्पी नहीं ले रहा था. कई परियोजनाओं को रेलवे ने पीपीपी के लिए खोला लेकिन उसके नतीजे उत्साहजनक नहीं मिले. सबसे सफल कहानी खानपान सेवाओं की मानी जा सकती है, जिसकी सबसे अधिक शिकायत सुनने को मिल रही है. इसी तरह निजी क्षेत्न के लिए रेल डिब्बों और कोचिंग डिपो की मशीनी धुलाई और साफ-सफाई के ठेके भी निजी क्षेत्न को दिए गए.

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