अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉगः भतीजों के चक्कर में फंसी महाराष्ट्र की राजनीति!

By अमिताभ श्रीवास्तव | Updated: November 24, 2019 07:01 IST2019-11-24T07:01:55+5:302019-11-24T07:01:55+5:30

महाराष्ट्र की राजनीति में भतीजों की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. वह किसी एक दल और एक परिवार तक सीमित नहीं है. वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम में यदि पवार परिवार की कलह सामने आ रही है, तो दूसरे दलों में भी प्यार और तकरार का खेल लंबा चला है.

Amitabh Srivastava's blog: Maharashtra politics caught in the affair of nephews! | अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉगः भतीजों के चक्कर में फंसी महाराष्ट्र की राजनीति!

अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉगः भतीजों के चक्कर में फंसी महाराष्ट्र की राजनीति!

महाराष्ट्र की राजनीति में भतीजों की महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. वह किसी एक दल और एक परिवार तक सीमित नहीं है. वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम में यदि पवार परिवार की कलह सामने आ रही है, तो दूसरे दलों में भी प्यार और तकरार का खेल लंबा चला है. राज्य में सामान्य तौर पर चार परिवारों के भतीजे राजनीति में घुले-मिले दिखाई देते हैं. मराठवाड़ा में मुंडे परिवार, उत्तर महाराष्ट्र में भुजबल परिवार, पश्चिम महाराष्ट्र में पवार परिवार और मुंबई में ठाकरे परिवार में अक्सर चाचा-भतीजों का आपसी तालमेल और संघर्ष देखने को मिला है. मराठवाड़ा के बीड़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे के भतीजे धनंजय मुंडे अपने चाचा से मनमुटाव के बाद पार्टी से अलग हुए और उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में अपनी जगह बनाई. मगर यह अलगाव कभी कम नहीं हुआ है. गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद भी उनकी बेटियों के साथ धनंजय मुंडे का राजनीतिक टकराव देखा गया. यहां तक कि हाल के विधानसभा चुनाव में धनंजय ने अपनी चचेरी बहन पंकजा मुंडे को हराकर ही चैन लिया. हालांकि वह पहले से विधान परिषद के सदस्य हैं. 

बीड़ में ही एक अन्य क्षीरसागर परिवार में चाचा-भतीजे चुनाव में आमने-सामने आए. चाचा जयदत्त क्षीरसागर ने शिवसेना का दामन थामा, जबकि भतीजे संदीप क्षीरसागर राकांपा के पाले से चुनाव में उतरे और जीत दर्ज की. हालांकि क्षीरसागर परिवार का कांग्रेस और उसके बाद राकांपा से लंबा जुड़ाव रहा, मगर दोनों आखिरकार शह और मात के खेल में भिड़ ही गए.

उत्तर महाराष्ट्र में राकांपा के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने पुत्र पंकज और भतीजे समीर को हमेशा ही अपनी छत्रछाया में रखा. समीर भुजबल ने लोकसभा की कमान संभाली तो पंकज ने पिता के साथ राज्य संभाला. उनके परिवार में कभी कोई विवाद सामने नहीं आया. मगर एक समय ऐसा भी आया जब छगन भुजबल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो उनकी जद में भतीजे समीर भी आए और उन्हें चाचा के साथ जेल की हवा भी खानी पड़ी. किंतु पारिवारिक संबंधों में गिरावट नहीं देखी गई.

विदर्भ में नाईक परिवार ने राज्य को दो मुख्यमंत्रियों को दिया. भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक के भतीजे सुधाकरराव नाईक थे. मगर जब बात तीसरी पीढ़ी की चुनावी राजनीति की हुई तो भूतपूर्व मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाईक के भतीजे व मधुकर नाईक के बेटे निलय नाईक ने अपने चाचा मनोहर नाईक पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बगावत की. हाल में उन्होंने भाजपा में प्रवेश कर मनोहर नाईक के बेटे इंद्रनिल नाईक के खिलाफ पुसद से विधानसभा चुनाव लड़ा.

मुंबई में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने पहले अपने चाचा से राजनीति के सारे गुण सीखे. उसके बाद पार्टी में खुद का समानांतर दर्जा स्थापित किया. किंतु बाल ठाकरे के अपने उत्तराधिकारी के रूप में उद्धव ठाकरे को कार्याध्यक्ष बनाने के बाद से बात इतनी बिगड़ गई कि राज ठाकरे ने अपनी अलग नई पार्टी बना ली. वह यहीं तक नहीं रुके, बल्कि हमेशा ही अपने पितृदल को चुनौती दी. अलग-अलग मंचों से अपने चचेरे भाई पर टिप्पणी करने में गुरेज नहीं किया. हालांकि निजी दु:ख-सुख में साथ भी दिया. यहां तक कि हाल के विधानसभा चुनाव में भतीजे आदित्य ठाकरे के खिलाफ अपनी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का कोई उम्मीदवार भी खड़ा नहीं किया.

वर्तमान में राकांपा प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार की सबसे बड़ी बगावत सभी के सामने है. हालांकि राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री पवार की महत्वाकांक्षा कभी छिपी नहीं रही. उनका आक्रामक अंदाज पार्टी कार्यकर्ताओं को भाता रहा. मगर इस बात को शरद पवार ने कभी समझा और कभी नासमझी भी दिखाई. जब समझ दिखाई तो उपमुख्यमंत्री बना दिया, लेकिन जब नासमझी दिखाई तो ताजा हालात से दो-चार होना पड़ रहा है. पिछले दिनों अजित पवार ने लोकसभा चुनाव में अपने पुत्र पार्थ पवार को उतारा था, लेकिन उन्हें अपने ही गृह जिले पुणो में बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद भी उनके इरादे सही तरीके से समङो नहीं गए. 

शरद पवार ने दूसरे जिले से अपने नाती रोहित पवार को विधानसभा चुनाव में पार्टी का टिकट देकर और अच्छी तरह से जिता कर जले पर नमक छिड़क दिया, जबकि चुनाव के दौरान ही शरद पवार को यह मालूम था कि अजित रूठ कर अपने विधायक पद से इस्तीफा दे चुके हैं. उस समय तो उन्हें मना लिया गया, किंतु पार्टी में कंधे से कंधा मिलाकर चलने का अवसर नहीं दिया गया. हाल की सरकार गठन की सरगर्मियों के बीच भी अजित पवार गुट नेता होने के बावजूद अक्सर हाशिए पर दिखे. पार्टी के अन्य नेता छगन भुजबल, नवाब मलिक, प्रफुल्ल पटेल, सुप्रिया सुले, जितेंद्र आव्हाड़ आदि मोर्चो पर दिखाई दिए. लिहाजा हाल की परिस्थितियों के बाद बगावत के रूप में ताजा नतीजा अपेक्षित ही है.

दरअसल महाराष्ट्र में हर नेता ने अपने उत्तराधिकारी को अपने रिश्ते से चुना. अनेक नेताओं ने अपने भतीजों को प्राथमिकता दी, किंतु समय आने पर उन्हें खून के रिश्ते के आगे मजबूर होना पड़ा. वहीं चाचा-भतीजों के राजनीतिक रिश्तों में इतनी खटास आ चुकी है कि अब कितनी भी चाशनी मिला दी जाए, उसे कम नहीं किया जा सकता है. इसी बात के मद्देनजर राजनीतिक दलों को भविष्य के परिणामों से निपटने के लिए नए रास्ते तलाशने होंगे. ताजा मामले में शायद राकांपा भी अपना मार्ग बनाएगी और वास्तविकता को स्वीकार करेगी, क्योंकि नैसर्गिक तौर पर अतीत के सापेक्ष ‘क्यों भई चाचा.हां, भतीजा..’ अनंत काल तक चल नहीं सकता.

Web Title: Amitabh Srivastava's blog: Maharashtra politics caught in the affair of nephews!

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