आलोक मेहता का ब्लॉग: अंधविश्वास के फेर में पड़ते समाज के महारथी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 30, 2019 07:13 AM2019-11-30T07:13:56+5:302019-11-30T07:13:56+5:30
राजनीति के अलावा खेल जगत में भी सट्टे के साथ ज्योतिष पर भरोसा करने वाले खिलाड़ी और उनके सलाहकार दुनिया भर में मिल जाते हैं
महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक के दौरान सुप्रीम कोर्ट से एक टीवी समाचार चैनल के वरिष्ठ संवाददाता संभावनाओं का जिक्र करते हुए यह भी बता रहे थे कि शपथ ग्रहण के दौरान राहुकाल होने से सरकार अधिक समय नहीं टिकेगी. उलटफेर होने के बाद मुलाकात होने पर उन्होंने फिर से ध्यान दिलाया कि देखिए हमने ठीक ही बताया था.
यह पहला अवसर नहीं है जब कोई पत्नकार या राजनेता ज्योतिष का हवाला देकर राजनीतिक निष्कर्ष निकाल रहे हों. इस घटना से मुङो इंदिरा गांधी और जनता पार्टी की सरकार के दौरान एक बड़े अखबार में मेरे संपादक मनोहर श्याम जोशी के पास उन दिनों मिलने के लिए आने वाले ज्योतिषियों के साथ होने वाली बातचीत का स्मरण हुआ. उन दिनों उस अखबार और समूह की एक पत्रिका में समय-समय पर ज्योतिष विशेषांक भी निकला करते थे और नेताओं के अलावा बड़ी संख्या में पाठकों की भी दिलचस्पी होती थी.
असल में मजा तब आता था जब उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख ज्योतिषी दफ्तर आते और जोशीजी पहले मुङो बुलाकर राजनीति के गलियारों में हो रही गतिविधियों का हालचाल पूछते और फिर पंडित ज्योतिषीजी को बताते कि आप अब दो-चार नेताओं के पास जाकर कह सकते हैं कि आप प्रधानमंत्नी बन सकते हैं. पंडितजी इसी फार्मूले पर कुछ नेताओं से मिलकर आते और कुछ कथा कहानी हमें भी बता जाते.
बाद में ज्योतिषी महाराज की लोकप्रियता और बढ़ गई और दिल्ली दरबार में उनकी दान-दक्षिणा में भी अच्छी बढ़ोत्तरी हो गई. यों इससे भी बड़े खिलाड़ी एक तांत्रिक स्वामी होते थे. पहले वह बिहार के एक वरिष्ठ सांसद के बंगले पर नौकर हुआ करते थे. एक-डेढ़ साल बाद अचानक वो चले गए. एक साल बाद इस रूप में प्रकट हुए कि उन्होंने पहाड़ों में जाकर तपस्या से तंत्न सीख लिया है.
सांसद महोदय ने उन्हें कुछ बड़े मंत्रियों के पास भेजा और वह एक-दूसरे की बातों को अपने ढंग से सलाह के रूप में बताने लगे. उनकी दुकान चल गई और एक वरिष्ठ मंत्नी ने इंदिरा गांधी ही नहीं ब्रिटेन की प्रधानमंत्नी मारग्रेट थैचर तक से मिलवा दिया. बाद में बहुत विवादास्पद रहे और जेल जाना पड़ा. अनुभव यह बताता है कि उनके चक्कर में कई नेताओं को मुसीबत ङोलनी पड़ी. वह स्वयं अपना भविष्य न बता सके और न ही ठीक कर सके.
दूसरी तरफ ऐसे विद्वान ज्योतिषी भी रहे जो कोई लाभ पाए बिना मुफ्त में अपने ज्ञान के आधार पर कुछ सही सलाह देते रहे हैं. वे आज भी किसी साधारण बस्ती में चौथी मंजिल पर रहकर ज्ञान दान करते हैं. मतलब यह कि सत्ता के गलियारे में ज्योतिषी हो अथवा सलाहकार, गलत होने पर परिणाम खतरनाक होते हैं.
राजनेता ही नहीं बड़े अधिकारी, उद्योगपति और युवा प्रबंधक भी ज्योतिष अथवा अपने सलाहकारों के कारण गलत निर्णय कर जाते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि कई प्रगतिशील समङो जाने वाले वरिष्ठ नेता अंधविश्वास के कारण तंत्न-मंत्न करने से नहीं चूकते. प्रधानमंत्नी पद के एक दावेदार उज्जैन की क्षिप्रा नदी में देर रात को खड़े रहकर प्रार्थना करते रहे और प्रधानमंत्नी पद तो नहीं मिला लेकिन उनके पैर की हालत बहुत खराब हुई और देश-विदेश में ऑपरेशन कराने पड़े.
जनता पार्टी के राज में तो प्रधानमंत्नी पद के कई दावेदार थे और प्रगतिशील समाजवादी पृष्ठभूमि होते हुए भी तंत्न-मंत्न करवाने में लगे रहते थे. लगभग 20 वर्ष पहले एक कांग्रेसी नेता को मुख्यमंत्नी बनने का अवसर मिला और उनके ज्योतिषी ने उन्हें यह समझा दिया कि यह तो बहुत छोटा पद है आपको तो प्रधानमंत्नी बनना है. इस चक्कर में उन्होंने अपने सत्ता काल में हरसंभव दांव-पेंच किए लेकिन प्रधानमंत्नी बनना दूर रहा, पहले मुख्यमंत्नी का पद गया और चुनाव हारते चले गए. कॉर्पोरेट जगत में भी ऐसे ही कुछ बड़े उद्योगपति ज्योतिष अथवा गलत सहयोगी और सलाहकार होने से हाल के वर्षो में गंभीर आर्थिक संकट में फंस गए.
राजनीति के अलावा खेल जगत में भी सट्टे के साथ ज्योतिष पर भरोसा करने वाले खिलाड़ी और उनके सलाहकार दुनिया भर में मिल जाते हैं. गनीमत यह है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ देश-दुनिया में नई पीढ़ी की अधिक आबादी अंधविश्वास से बचने लगी है. चिकित्सा के क्षेत्न में तंत्न-मंत्न और जादू-टोने से इलाज के फार्मूले कुछ इलाकों में भोले-भाले लोगों को अवश्य भ्रमित करते हैं और सरकारों को बड़े-बड़े विज्ञापन देकर यह समझाना पड़ता है कि ऐसे नीम-हकीम से दूर रहा जाए.
इस संदर्भ में लगभग 30 वर्ष पहले एक डॉक्टर को एक कथित पत्नकारनुमा ज्योतिषी ने लाखों रुपए की अंगूठी दिलाकर ठग लिया था. डॉक्टर को डर दिखाया था कि वह तत्काल यह अंगूठी नहीं लेगा तो तीन दिन में उसकी मृत्यु हो जाएगी. बाद में पोल खुलने पर मामला पुलिस तक गया और किसी वरिष्ठ प्रबंधक ने बीच-बचाव कर परिचित डॉक्टर के पैसे वापस दिलवाए.
इसलिए आश्चर्य नहीं कि मीडिया जगत में भी कुछ ऐसे गलत सलाह देने और मानने वाले हैं. बहरहाल हाल के वर्षो में विभिन्न क्षेत्नों में आधुनिक दृष्टि और दूरगामी हितों को समझने वाले लोग बढ़ते जा रहे हैं. इसलिए विश्वास किया जाना चाहिए कि गलत सलाह देने वालों से समाज और सत्ता का बचाव हो सकेगा.