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आलोक जोशी का ब्लॉगः आईएस की लिप्तता को बेवजह तूल न दें

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 4, 2019 03:40 IST

कामचलाऊ हथियारों और सलाफी विचारधारा से प्रभावित स्थानीय लोगों के इस्तेमाल से बेहतर खुद को छिपा लेने का आईएसआई के पास और क्या तरीका हो सकता है? एक ऐसा कदम जिसमें पाकिस्तान का हाथ होने का कोई ठोस सबूत हाथ न लगे. 

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ठळक मुद्देप्रचार तो यह किया जाना चाहिए कि हालांकि आईएस खत्म होने को है, लेकिन गुमराह युवाओं को हथियारबंद करके भारत के खिलाफ उकसाने के लिए उसकी विचारधारा का इस्तेमाल किया जा रहा है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह दोनों ही इस बात को जानते हैं कि युवकों को, खासतौर पर जम्मू-कश्मीर में, कट्टरपंथ और उग्रवाद की ओर मोड़ने के लिए आईएस को केवल एक ब्रांड की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है.

उत्तर प्रदेश और दिल्ली से एनआईए द्वारा कट्टरपंथी आतंकियों के एक समूह की गिरफ्तारी राहत देने वाली खबर है. देशी हथियारों के साथ-साथ विस्फोटकों का पकड़ा गया जखीरा उनके इरादों को जाहिर करने के लिए पर्याप्त है. गिरफ्तारी और बरामदगी का सिलसिला गोपनीय जानकारी से संभव हुआ दिखता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुरक्षा एजेंसियों की आतंकी समूह पर तकरीबन चार महीने से नजर थी. एनआईए ने तभी दखल दिया जब ऐसा लगने लगा कि अब यह समूह किसी हमले को अंजाम देने वाला है.

भारत के लिए यह कार्रवाई दो सकारात्मक खुलासों की वजह से महत्वपूर्ण है- पहला, यह हमारी केंद्रीय एजेंसियों और राज्यस्तरीय पुलिस बलों के बीच विकसित बेहतरीन तालमेल का परिचायक है. दूसरा, आतंकियों द्वारा कामचलाऊ हथियारों पर निर्भरता से यह साफ संकेत मिलता है कि अत्याधुनिक हथियार हासिल करना अब भी उनके लिए मुश्किल है. हालांकि इस समूह को आईएस से प्रभावित बताया जाना चिंता का सबब है. हालिया वक्त में आईएस के कमजोर पड़ जाने की खबरों के लिहाज से यह प्रासंगिक और हैरान कर देने वाला है.

हर लिहाज से आईएस बिखरता जा रहा है, मगर इसकी चरम कट्टरपंथी सलाफी विचारधारा नहीं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शायद अपने हितों के मद्देनजर इस समूह पर जीत का ऐलान किया है. संभव है कि ऐसा सीरिया से अमेरिकी सेना को हटाए जाने को तर्कसंगत बताने के लिए किया गया हो. वैसे सलाफी विचारधारा से प्रभावित दुनिया के अन्य समूह मानते हैं कि इस विचारधारा में एकाकी और गुमराह युवाओं को प्रभावित करने की ताकत अब भी बाकी है. आईएस न सही, लेकिन इसी विचारधारा के साथ कोई अन्य समूह उठ खड़ा होगा.

कहने का तात्पर्य यह कि अमेरिका के आईएस को खत्म कर देने के दावे को इस विचारधारा का खात्मा मानने की भूल नहीं करना चाहिए. आईएस के खात्मे के निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जांच के पूरे परिणाम आने का इंतजार किया जाए तो यह ज्यादा विवेकपूर्ण फैसला होगा. दुनिया के तमाम देश सब्र से नतीजे का इंतजार करने और पुष्टि के बाद ही यकीन का तरीका अपनाते हैं. ऐसे में बेहतर यही होगा कि ऐसा कोई निष्कर्ष न निकाला जाए जो उसके अपने हितों को ही नुकसान पहुंचाए. ताजा मामले में यह सार्वजनिक ऐलान कि पकड़ा गया समूह आईएस से प्रभावित है, हमारे हितों के लिए नुकसानदेह है.

हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की पुरानी रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती रही हैं कि पाकिस्तान की आईएसआई को लोगों को गुमराह करने में महारत हासिल है. अफगानिस्तान का इस्लामिक स्टेट ऑफ खोरासान प्रॉविंस (आईएसकेपी) इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. अफगान तालिबान में जो सत्ता संघर्ष मुल्ला उमर की मौत और मुल्ला अख्तर मंसूर की पदोन्नति से शुरू हुआ था, उसमें बाद में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी), द इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान (आईएमयू) और अल कायदा से दूर हुए आतंकी भी जुड़ गए थे. कुछ ही वक्त में आईएसआई ने हक्कानी नेटवर्क के जरिये इसे हथिया सा लिया.

इसीलिए यह देख हैरत नहीं होती कि आईएसकेपी पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के आर-पार सबसे सक्रिय समूह है जिसे पाक में कई जगह सुरक्षित ठिकाने उपलब्ध हैं. यही वजह है कि लगता है एनआईए ने जिन्हें पकड़ा है वह दरअसल आईएसआई समर्थित किसी ऐसे ही संगठन या फिर उसी के सदस्य हों. कामचलाऊ हथियारों और सलाफी विचारधारा से प्रभावित स्थानीय लोगों के इस्तेमाल से बेहतर खुद को छिपा लेने का आईएसआई के पास और क्या तरीका हो सकता है? एक ऐसा कदम जिसमें पाकिस्तान का हाथ होने का कोई ठोस सबूत हाथ न लगे. 

आईएसआई ने यही तरीका 2014 में अपनाया था जब इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) समाप्ति की कगार पर था. जब आतंकियों की नई फसल का अकाल पड़ा तब खबरें आई थीं कि आईएसआई आईएस और इराक में खलीफा राज के लिए लड़ने के नाम पर खाड़ी देशों में मौजूद भारतीय मुस्लिम युवकों की बड़े पैमाने पर भर्ती कर रहा है. मोसूल जाने का रास्ता कराची से निकाला गया था. एक बार युवकों की ट्रेनिंग होने के बाद उन्हें पाकिस्तान में बचे इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों के अधीन काम करने के लिए मजबूर कर दिया जाता था.

इसकी वजह से आईएम में तनाव बढ़ा और कई ने पलायन भी कर दिया था. इसलिए एक बड़े हमले को टालने में कामयाबी हासिल करने वाली हमारी सुरक्षा एजेंसियां अगर गुमराह करने वाला प्रचार करेंगी तो यह उनके लिए नुकसानदेह होगा. प्रचार तो यह किया जाना चाहिए कि हालांकि आईएस खत्म होने को है, लेकिन गुमराह युवाओं को हथियारबंद करके भारत के खिलाफ उकसाने के लिए उसकी विचारधारा का इस्तेमाल किया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री राजनाथ सिंह दोनों ही इस बात को जानते हैं कि युवकों को, खासतौर पर जम्मू-कश्मीर में, कट्टरपंथ और उग्रवाद की ओर मोड़ने के लिए आईएस को केवल एक ब्रांड की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. भारतीय एजेंसियों को चाहिए कि वह कट्टरपंथ को फलने-फूलने ही न दें और उसके लिए ऐसे प्रचारतंत्र से बचें जो गलत हो और देश के हितों के खिलाफ हो. 

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