Almora Bus Accident: सड़क हादसे में 36 लोगों की जान?, सड़क सुरक्षा को लेकर सवाल एक बार फिर से ताजा

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 6, 2024 18:16 IST2024-11-06T18:15:44+5:302024-11-06T18:16:35+5:30

Almora Bus Accident: वाहनों के रखरखाव और ट्रैफिक नियमों के पालन पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है, लेकिन मैदानी इलाकों में भी सड़क हादसों के लिए प्राय: मानवीय चूक या लापरवाही के ही जिम्मेदारी होने की बात सामने आती है.

Almora Bus Accident 36 people lost their lives in road accident Questions regarding road safety are fresh once again | Almora Bus Accident: सड़क हादसे में 36 लोगों की जान?, सड़क सुरक्षा को लेकर सवाल एक बार फिर से ताजा

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Highlightsपौड़ी और अल्मोड़ा के संबंधित क्षेत्र के एआरटीओ को निलंबित कर दिया गया है.दुर्भाग्यजनक ही है कि सारी कमियां दुर्घटना होने के बाद ही उजागर होती हैं. बसों का सही ढंग से रखरखाव नहीं होने पर इस तरह के हादसे होने की आशंका ज्यादा होती है.

Almora Bus Accident: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुए भयावह सड़क हादसे में 36 लोगों के जान गंवाने के बाद देश में सड़क सुरक्षा को लेकर पुराना सवाल एक बार फिर ताजा हो गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हालांकि कुमाऊं मंडल के आयुक्त को इस घटना की मजिस्ट्रेट जांच कराने के निर्देश दिए हैं और हादसे के कारणों के बारे में इस जांच के निष्कर्ष सामने आने पर ही ठोस तौर पर कुछ कहा जा सकता है, लेकिन प्रारंभिक तौर पर यही जानकारी सामने आ रही है कि पौड़ी से रामनगर जा रही बस में क्षमता से अधिक यात्री सवार थे, जिससे पहाड़ी इलाके में एक संकरे मोड़ पर ड्राइवर बस पर नियंत्रण नहीं रख पाया और वह गहरी खाई में जा गिरी. कहा जाता है कि बस की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी. संभवत: इसीलिए पौड़ी और अल्मोड़ा के संबंधित क्षेत्र के एआरटीओ को निलंबित कर दिया गया है.

यह दुर्भाग्यजनक ही है कि सारी कमियां दुर्घटना होने के बाद ही उजागर होती हैं. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी में, जहां सड़कें संकरी और घुमावदार होती हैं, बसों का सही ढंग से रखरखाव नहीं होने पर इस तरह के हादसे होने की आशंका ज्यादा होती है. खड़ी ढलानों से बस के नीचे की तरफ आने पर कई बार ब्रेक फेल होने का भी डर रहता है, इसलिए वहां तो वाहनों के रखरखाव और ट्रैफिक नियमों के पालन पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होती है, लेकिन मैदानी इलाकों में भी सड़क हादसों के लिए प्राय: मानवीय चूक या लापरवाही के ही जिम्मेदारी होने की बात सामने आती है.

त्यौहारों के सीजन में तो ट्रेनों में भारी भीड़ होने के चलते लोगों को मजबूरन बसों का सहारा लेना ही पड़ता है और बस मालिकों द्वारा इसका नाजायज फायदा भी उठाया जाता है. ओवरलोडिंग तो आम बात है, निर्धारित मानकों  के हिसाब से सभी बसों में पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं होतीं. सिर्फ बसों ही नहीं बल्कि आटोचालकों, दुपहियासवारों समेत अन्य वाहन चालकों द्वारा भी ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाना जैसे आम बात हो चली है. ले-देकर सिर्फ कारचालकों को ही यातायात नियमों का पालन करते देखा जा सकता है. हालांकि उसमें भी कुछ उद्दंड चालक होते हैं लेकिन वे अपवादस्वरूप ही देखने में आते हैं.

बेशक, कई बार खराब सड़कें भी हादसों के लिए जिम्मेदार होती हैं, ब्रेक, टायर जैसी चीजों में समस्या के कारण भी दुर्घटनाएं होती हैं लेकिन दुर्घटना होने के बाद इन कारकों को  जिम्मेदार ठहराने के बजाय संबंधितों द्वारा अगर पहले ही इन पर ध्यान देकर आवश्यक कदम उठाए जाएं तो जन-धन हानि से बचा जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि सड़क हादसों के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन है और इन हादसों में कुल मारे गए व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक रही है. यहां तक कि ब्राजील, पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे कई देश भी इस मामले में भारत से बेहतर हालत में हैं. जाहिर है कि यह एक ऐसी चुनौती है जिससे सरकारों और नागरिकों को मिलकर निपटना होगा. 

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