एन. के. सिंह का ब्लॉगः प्रधानमंत्री का सख्त संदेश कितना असरकारी होगा?
By एनके सिंह | Published: July 5, 2019 02:59 PM2019-07-05T14:59:13+5:302019-07-05T14:59:13+5:30
भारत अपने समुन्नत प्रजातंत्न और संस्कृति के लिए जाना जाता है. लिहाजा प्रजातंत्न के इस नए फॉर्मेट पर दुनिया के राजनीति-शास्त्न के लोग अभी विश्लेषण करेंगे कि भारत ने दुनिया को अंकगणित, बीजगणित, खगोल-शास्त्न, संस्कृत जैसी भाषा और गीता जैसे आध्यात्मिक ग्रंथ ही नहीं दिए, बल्किअब वह एक नया प्रजातंत्न लेकर आ रहा है- ‘दे दनादन’ प्रजातंत्न!
अच्छा लगा जब देश के प्रधानमंत्नी और लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी ने अधिकारियों के खिलाफ सरेआम सड़क पर ‘पहले आवेदन, फिर निवेदन और फिर दे दनादन’ रणनीति के तहत ‘बैटिंग’ कर न्याय दिलाने वाले युवा पार्टी विधायक को भाजपा संसदीय दल की बैठक में सख्त चेतावनी दी. प्रधानमंत्नी के इस सख्त संदेश से सत्ता के नशे में चूर तमाम विधायक और सांसदों को संदेश गया है, वैसे ही जैसे साध्वी सांसद को गया था.
घटना के दिन अपनी प्रतिक्रि या में इस युवा विधायक ने प्रशासनिक सक्षमता व शुचिता बहाल करने की इस नई विधा की व्याख्या की कि क्यों उसने ‘सड़क पर न्याय’ की नई पद्धति अपनाई. दरअसल वह पहली बार विधायक बना यानी कानून बनाने की ताकत मिली. लेकिन यह ताकत तो संस्थागत है और तमाम जटिलताओं से और लंबे काल से गुजर कर मुकम्मल होती है. तो क्या यही उचित था कि संस्थागत शक्ति के अमल की रफ्तार बढ़ा कर विधानसभा जाने की जगह सीधे सड़क पर ही कानून बनाया जाए और जो उसका पालन न करे उसे वहीं सजा दे दी जाए?
भारत अपने समुन्नत प्रजातंत्न और संस्कृति के लिए जाना जाता है. लिहाजा प्रजातंत्न के इस नए फॉर्मेट पर दुनिया के राजनीति-शास्त्न के लोग अभी विश्लेषण करेंगे कि भारत ने दुनिया को अंकगणित, बीजगणित, खगोल-शास्त्न, संस्कृत जैसी भाषा और गीता जैसे आध्यात्मिक ग्रंथ ही नहीं दिए, बल्किअब वह एक नया प्रजातंत्न लेकर आ रहा है- ‘दे दनादन’ प्रजातंत्न!
क्या मोदी की इस सख्त टिप्पणी के बाद स्थिति बदलने जा रही है? शायद पार्टी स्तर पर सोच पनपे. आज जब ऐसा लगता है कि मोदी एक स्वस्थ प्रशासन देना चाह रहे हैं ऐसे में ये घटनाएं उस ऐतिहासिक खतरे की और इंगित करती हैं जिसमें पार्टी के द्वितीयक और तृतीयक स्तर के नेता सत्ता उन्माद में ऐसा व्यवहार करने लगते हैं जो समाज को डराता है और तब आती है लोकप्रिय नेता की भूमिका.
अगर उसने सही समय पर सख्ती नहीं अपनाई तो दल को लालू, मुलायम और मायावती की पार्टी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. और यह जन-अविश्वास इतना तेज फैलता है कि राजद के नेता लालू यादव को पता भी नहीं चलता कि जब उनका विधायक बलात्कार में जेल की सजा काटने लगता है और तब भी उसकी पत्नी को संसद का टिकट दे दिया जाता है तो स्वयं यादव समाज भी डरने लगता है. उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी झंडा लगाए एक गुंडानुमा व्यक्ति जब सरेआम थानेदार की वर्दी उतरवाने की धमकी देता था तो भी आम लोग डरते थे और यादवों को भी उनमें रॉबिनहुड नहीं दिखता था.
प्रधानमंत्नी का यह सख्त संदेश शायद देश की विधानसभाओं के 4000 से ज्यादा विधायकों और 800 के करीब सांसदों को ही नहीं पार्टी के पूरे कैडर और आम जनता को भी सुकूनबख्श लगा होगा.