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निशान्त का ब्लॉग : वायु प्रदूषण से प्रभावित हो सकता है मानसून

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: August 28, 2021 12:14 IST

भारत में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का खतरनाक परिणाम स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों पर भी देखने को मिला है . वायु प्रदूषण अब भारत में मानसून की वर्षा को भी प्रभावित कर रहा है.

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ठळक मुद्देभारत में वायु प्रदूषम के कारण मानसून प्रभावित हो रहा है2019 में पीएम 2.5 के कारण 980,000 मौतें हुईवायु प्रदूषण मानसून को अनियमित वर्षा पैटर्न की ओर धकेल रहा है

जहां अब तक वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों को स्थापित किया गया है, वहां अब ताजा अनुसंधान और विशेषज्ञ बताते हैं कि वायु प्रदूषण अब भारत में मानसून की वर्षा को भी प्रभावित कर रहा है.

‘एंथ्रोपोजेनिक एरोसोल्स एंड द वीकनिंग ऑफ द साउथ एशियन समर’ नाम की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण मानसून को अनियमित वर्षा पैटर्न की ओर धकेल रहा है. वायु प्रदूषण से बहुत अधिक परिवर्तनशील मानसून हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप एक वर्ष सूखा पड़ सकता है और उसके बाद अगले वर्ष बाढ़ आ सकती है. यह अनियमित व्यवहार वर्षा में समग्र कमी की तुलना में ‘अधिक चिंताजनक’ है क्योंकि यह अप्रत्याशितता को बढ़ाता है और इन परिवर्तनों के लिए तैयार करने के लिए लचीलापन निर्माण और एडाप्टेशन क्षमता का परीक्षण करता है.

अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट क्लाइमेट चेंज 2021 : द फिजिकल साइंस बेसिस में भी यह चिंता जताई गई है. आईपीसीसी के अनुसार, जलवायु मॉडल के परिणाम बताते हैं कि एंथ्रोपोजेनिक एरोसोल फोर्सिग हाल की ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा में कमी पर हावी रही है. 1951-2019 के बीच देखी गई दक्षिण-पश्चिम मानसून औसत वर्षा में गिरावट आई है. आने वाले वर्षो में यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना है और वायु प्रदूषण का इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहने की आशंका है.

ध्यान रहे कि भारत में पिछले दो दशकों में पार्टिकुलेट मैटर द्वारा प्रेरित वायु प्रदूषण में भारी वृद्धि देखी गई है. द स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 (वैश्विक हवा की स्थिति 2020) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2019 में पीएम 2.5 के कारण 980,000 मौतें देखीं.

सेंटर फॉर एटमोस्फियरिक साइंसेज, आईआईटी दिल्ली में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. दिलीप गांगुली कहते हैं, ‘‘वायु प्रदूषण से पूरे देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में 10 से 15 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है. इस बीच, कुछ स्थानों पर 50 प्रतिशत तक कम बारिश भी हो सकती है. यह मानसून की गतिशीलता को भी प्रभावित करेगा, उदाहरण के लिए इसके ऑनसेट (शुरुआत) में देरी.

वायु प्रदूषण भूमि द्रव्यमान को आवश्यक स्तर तक गर्म नहीं होने देता है. प्रदूषकों की उपस्थिति के कारण भूमि का ताप धीमी गति से होता है. उदाहरण के लिए आवश्यक सतह का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस है, जबकि वायु प्रदूषण की उपस्थिति के परिणामस्वरूप तापमान 38 डिग्री सेल्सियस या 39 डिग्री सेल्सियस तक सीमित हो जाएगा.’’

                                                                                                                                                                                                                                              लेखक- निशान्त

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