अफगानिस्तान में सार्थक पहल, 50 हजार टन गेहूं और डेढ़ टन दवा भारत ने भेजा, पाकिस्तान होकर जाने का रास्ता मिला

By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 14, 2021 05:47 PM2021-12-14T17:47:57+5:302021-12-14T17:49:02+5:30

सारा सामान 500 से ज्यादा ट्रकों में लदकर काबुल पहुंचेगा. सबसे ज्यादा अच्छा यह हुआ कि इन सारे ट्रकों को पाकिस्तान होकर जाने का रास्ता मिल गया है.

Afghanistan India sent 50 thousand tons wheat and one and a half tons medicine found through Pakistan | अफगानिस्तान में सार्थक पहल, 50 हजार टन गेहूं और डेढ़ टन दवा भारत ने भेजा, पाकिस्तान होकर जाने का रास्ता मिला

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अफगानिस्तान-संकट पर पड़ोसी देशों के सुरक्षा सलाहकारों से जो संवाद दिल्ली में कायम किया था. (file photo)

Highlightsइमरान सरकार ने यह बड़ी समझदारी का फैसला किया है. पुलवामा हमले के बाद जो रास्ता बंद किया गया था.अब कम-से-कम अफगान भाई-बहनों की मदद के लिए खोल दिया गया है.

पड़ोसी देशों के बारे में इधर भारत ने काफी अच्छी पहल शुरू की है. अगस्त माह में अफगानिस्तान के बारे में हमारी नीति यह थी कि ‘देखते रहो’ लेकिन मुझे खुशी है कि अब भारत न केवल 50 हजार टन गेहूं काबुल भेज रहा है बल्कि डेढ़ टन दवाइयां भी भिजवा रहा है.

यह सारा सामान 500 से ज्यादा ट्रकों में लदकर काबुल पहुंचेगा. सबसे ज्यादा अच्छा यह हुआ कि इन सारे ट्रकों को पाकिस्तान होकर जाने का रास्ता मिल गया है. इमरान सरकार ने यह बड़ी समझदारी का फैसला किया है. पुलवामा हमले के बाद जो रास्ता बंद किया गया था, वह अब कम-से-कम अफगान भाई-बहनों की मदद के लिए खोल दिया गया है.

हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अफगानिस्तान-संकट पर पड़ोसी देशों के सुरक्षा सलाहकारों से जो संवाद दिल्ली में कायम किया था, वह भी सराहनीय पहल थी. उसका चीन और उसके दोस्त पाकिस्तान ने बहिष्कार जरूर किया लेकिन उसमें आमंत्रित मध्य एशिया के पांचों मुस्लिम गणतंत्नों के सुरक्षा सलाहकारों के आगमन ने हमारी विदेश नीति का एक नया आयाम खोल दिया है.

अब विदेश मंत्नी डॉ. जयशंकर ने आगे बढ़कर इन पांचों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक भी शीघ्र ही बुलाई है. मैं वर्षो से कहता रहा हूं कि मध्य एशिया के ये पांचों पूर्व-सोवियत गणतंत्न सदियों तक आर्यावर्त के अभिन्न अंग रहे हैं. इनके साथ घनिष्ठता बढ़ाना इन विकासमान राष्ट्रों के लिए लाभदायक है ही, भारत के लिए इनकी असीम संपदा का दोहन भारतीयों के लिए करोड़ों नए रोजगार पैदा करेगा और दक्षिण व मध्य एशिया के देशों में मैत्नी की नई चेतना का भी संचार करेगा. इन सारे देशों में पिछले 50 वर्षो में मुझे कई बार रहने का और इनके शीर्ष नेताओं से संवाद करने का अवसर मिला है.

यद्यपि इन देशों में कई दशक तक सोवियत-शासन रहा है लेकिन इनमें भारत के प्रति अदम्य आकर्षण है. तजाकिस्तान ने भारत को महत्वपूर्ण सैन्य-सुविधा भी दे रखी थी. कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति भारत-यात्ना भी कर चुके हैं. अब कोशिश यह है कि इन पांचों गणतंत्नों के राष्ट्रपतियों को 26 जनवरी के अवसर पर भारत आमंत्रित किया जाए.

इस तरह का निमंत्नण देने का प्रस्ताव मैंने नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में एक सभा में उनके प्रधानमंत्नी बनने के पहले भी दिया था. अब क्योंकि पिछले पांच-छह साल से दक्षेस (सार्क) ठप हो गया है, मैंने जन-दक्षेस (पीपल्स सार्क) नामक संस्था का हाल ही में गठन किया है, जिसमें म्यांमार, ईरान और मॉरिशस के साथ-साथ मध्य एशिया के पांचों गणतंत्नों को भी शामिल किया गया है. यदि 16 देशों का यह संगठन यूरोपीय संघ की तरह कोई साझा बाजार, साझी संसद, साझा महासंघ बनवा सके तो अगले दस साल में भारत समेत ये सारे राष्ट्र यूरोप से भी आगे जा सकते हैं.

Web Title: Afghanistan India sent 50 thousand tons wheat and one and a half tons medicine found through Pakistan

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