लोकतंत्र की बुलंद आवाज थे प्रो. जगदीप छोकर, बहुत से बदलावों को जमीन पर उतारा
By अरविंद कुमार | Updated: September 15, 2025 05:49 IST2025-09-15T05:49:17+5:302025-09-15T05:49:17+5:30
2001 में गरमियों के दिन थे जब मेरे पास उनका फोन आया था, वे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया के साथ कुछ संवाद करना चाहते थे और इसमें मेरी मदद चाहते थे.

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प्रोफेसर जगदीप सिंह छोकर के निधन के बाद देश के विभिन्न इलाकों में बौद्धिक जगत में जैसी प्रतिक्रिया मिली है, वो बताती है कि लोकतंत्र की शुचिता के लिए विभिन्न स्तर पर उनके द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों का दायरा कितना व्यापक था.हालांकि प्रोफेसर छोकर न तो लुटियन दिल्ली की उपज थे न राजनीति विज्ञानी थे. उनकी पृष्ठभूमि अकादमिक थी. पर ‘प्रजा ही प्रभु है’ नारे के साथ देश में लोकतंत्र की एक बुलंद आवाज के रूप में ढाई दशकों के दौरान उन्होंने बहुत से बदलावों को जमीन पर उतारा. शानदार उपलब्धियों के साथ 12 सितंबर को चार बजे उन्होंने अंतिम सांस ली,
पर उसके पहले ही अपनी देह को लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज को दान कर गए. प्रोफेसर जगदीप छोकर लोकतंत्र को उज्जवल बनाने की मुहिम के अग्रणी नायक थे. चुनावों में पारदर्शिता और जागरूकता के प्रसार के साथ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई उल्लेखनीय मामले जीते. अपने अभियान में उनको समझ में आ गया था कि राजनीतिक दल यथास्थितिवादी हैं, वे पारदर्शिता नहीं चाहते.
इसलिए उन्होंने इस काम में आम लोगों को साथ लिया और अदालतों में गए और तथ्यों के साथ मीडिया की मदद से राजनीति में शुद्धता के लिए प्रयास करते रहे. 2001 में गरमियों के दिन थे जब मेरे पास उनका फोन आया था, वे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मीडिया के साथ कुछ संवाद करना चाहते थे और इसमें मेरी मदद चाहते थे.
मैंने प्रेस क्लब मैनेजमेंट की मदद से उनके लिए वहां का मंच उपलब्ध कराया तो वे विख्यात अभिनेता रोशन सेठ के साथ पधारे और चुनिंदा पत्रकारों के साथ अपनी पीड़ा को साझा किया. तब हमें यही लगा था कि जैसे अकादमिक लोगों की आत्माएं किसी विषय में अचानक कुछ समय के लिए जगती हैं, वैसा इनके साथ भी होगा.
पर ऐसा नहीं हुआ, वे लगातार सक्रिय रहे और धीरे-धीरे पूरे देश में उनकी आवाज मुखरित होने लगी. जगदीप छोकर 1985 से नवंबर 2006 तक आईआईएम अहमदाबाद जैसी वैश्विक ख्याति वाली संस्था में प्रोफेसर और कई अहम ओहदों पर रहे. 1999 में अहमदाबाद में ही चंद साथियों के साथ जिस संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की स्थापना की, उसकी आज अलग पहचान है.
इंडिया इलेक्शन वॉच भी किसी परिचय का मोहताज नहीं. इनकी बदौलत ही आम लोगों को देश में आपराधिक छवि वाले और धनशक्ति से संपन्न नेताओं के ब्यौरे तथ्यों के साथ बाहर आने लगे. चुनावों के दौरान शपथपत्र देने वाले नेता अधिक सजग रहते हैं. प्रोफेसर छोकर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर याचना की कि जो उम्मीदवार चुनाव लड़ता है उसे खुद बताना होगा कि उसके खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे हैं, यह दर्शाना जरूरी हो.
लंबी चर्चा चली और सर्वोच्च न्यायालय ने 2003 में जब संसद और विधान मंडलों के सभी उम्मीदवारों के लिए चुनावों में भाग लेने से पहले आपराधिक, वित्तीय और शैक्षणिक पृष्ठभूमि का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया तो यह एक बड़ी विजय थी. चुनाव आयोग में उनको हलफनामा देना जरूरी हो गया. इससे पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी.